कॉलेजियम प्रक्रिया में असहमति के कारणों पर गौर करने की जरूरत: पूर्व न्यायाधीश ए एस ओका
कॉलेजियम की सिफारिशों पर न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना की कड़ी असहमति के बावजूद दो उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों को उच्चतम न्यायालय में पदोन्नत किये जाने के एक दिन बाद, उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश ए एस ओका ने बुधवार को कहा कि कॉलेजियम में किसी भी असहमति पर गौर किये जाने की जरूरत है।
![]() पूर्व न्यायाधीश ए एस ओका |
न्यायमूर्ति ओका उड़ीसा उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एस मुरलीधर द्वारा संपादित पुस्तक “(इन)कम्प्लीट जस्टिस? द सुप्रीम कोर्ट एट 75” के विमोचन के अवसर पर वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह के एक प्रश्न का उत्तर दे रहे थे।
जयसिंह ने न्यायमूर्ति मुरलीधर और न्यायमूर्ति ओका तथा राजनीतिक विज्ञानी गोपाल गुरु वाले पैनल से कॉलेजियम की कार्यप्रणाली के बारे में पूछा, जो 'गोपनीयता' में काम करता है और वह ऐसे समय में 'भारत के भावी प्रधान न्यायाधीशों के चयन के मानदंड' के बारे में जानना चाहती थीं, जब उच्चतम न्यायालय की एकमात्र महिला न्यायाधीश द्वारा असहमति जताई गई है।
ओका ने कहा, "यह सवाल बेहद चिंताजनक है, लेकिन मैं कहता रहा हूं कि हमें पारदर्शिता को परिभाषित करना होगा। आपका कहना सही है कि जब एक न्यायाधीश असहमति जताता है, तो हमें पता होना चाहिए कि वह असहमति क्या है- इसमें कुछ भी गलत नहीं है। आपको यह आलोचना करने का हक़ है कि वह असहमति सार्वजनिक क्यों नहीं है।"
ओका ने स्पष्ट किया कि यदि कॉलेजियम के विचार-विमर्श और विवरण को सार्वजनिक किया जाता है, तो इससे उन वकीलों की गोपनीयता प्रभावित हो सकती है, जिन्होंने कॉलेजियम द्वारा विचार किए जाने के लिए सहमति दी है।
उन्होंने कहा, "अगर कॉलेजियम 10 या 15 वकीलों पर विचार करता है, जिनमें से 10 मामलों पर विचार किया जाता है और पांच की सिफ़ारिश नहीं की जाती, तो क्या हमें उन लोगों की निजता की चिंता नहीं है जिन्होंने स्वेच्छा से सहमति दी है? उन्हें वापस जाकर वकालत करनी होगी।"
कर्नाटक उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि एक बार जब ये मामले सार्वजनिक हो जाते हैं, तो इन व्यक्तियों का पिछले तीन वर्षों का वेतन भी सार्वजनिक हो जाता है। उन्होंने कहा, "इसलिए हमें इसे गोपनीयता के साथ संतुलित करना होगा।"
प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई की अध्यक्षता वाले पांच सदस्यीय कॉलेजियम ने 25 अगस्त को बंबई उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति विपुल पंचोली के नामों की पदोन्नति के लिए सिफ़ारिश की।
यदि नियुक्तियां होती हैं, तो न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की सेवानिवृत्ति के बाद अक्टूबर 2031 में पंचोली प्रधान न्यायाधीश बनने की दौड़ में शामिल हो जाएंगे।
सूत्रों ने बताया कि न्यायमूर्ति नागरत्ना ने पंचोली की अपेक्षाकृत कम वरिष्ठता, जुलाई 2023 में गुजरात से पटना उच्च न्यायालय में उनके स्थानांतरण पर सवाल और उच्चतम न्यायालय में प्रतिनिधित्व में क्षेत्रीय असंतुलन की चिंताओं का हवाला देते हुए सिफारिश का विरोध किया।
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