उर्दू : समान तासीर है हिन्दी-उर्दू की

Last Updated 28 Aug 2025 12:14:31 PM IST

इधर देखने में आ रहा है कि अपने को उर्दू का सबसे बड़ा प्रवक्ता बताने वाले कुछ विद्वान कहते मिल जाते हैं कि अब भारत में उर्दू का कोई मुस्तकबिल (भविष्य) नहीं है। क्या इस तरह की कोई बात है? कतई नहीं।


उर्दू : समान तासीर है हिन्दी-उर्दू की

बीते दिनों पटना में भारत में उर्दू इतिहास, वर्तमान और भविष्य पर चर्चा हुई। निष्कर्ष यह निकला कि उर्दू का भारत में रोशन भविष्य है। यह एक भाषा होने के साथ-साथ, तहजीब, परंपरा और प्यार की भाषा भी है, जो भारत की कोख से जन्मी है, और हर भारतीय भाषा, क्षेत्र, समाज, धर्म और संस्कृति की सुगंध शामिल है इसमें। 

यह भारत की आत्मा से जुड़ी भाषा है। यह विकसित भारत की भाषा है। अगर बात हिन्दी और उर्दू के संबंधों की करें तो हिन्दी और उर्दू, दोनों ही हिन्दुस्तानी भाषा की दो प्रमुख शाखाएं हैं। दोनों व्याकरणिक संरचना और मूल शब्दावली में लगभग समान हैं, लेकिन लिपि, शब्दावली का चयन और सांस्कृतिक प्रभावों के कारण अलग-अलग पहचान रखती हैं। सिनेमा और मीडिया में भी दोनों भाषाएं एक-दूसरे की पूरक के रूप में दिखाई देती हैं, जैसे बॉलीवुड फिल्मों में हिन्दी-उर्दू का मिश्रित प्रयोग। हालांकि, राजनीतिक और सांप्रदायिक कारणों ने इन भाषाओं को अलग करने की कोशिश की, फिर भी इनके साझा मूल और सांस्कृतिक विरासत ने इन्हें एक-दूसरे से जोड़े रखा।

हिन्दी और उर्दू का यह अनोखा रिश्ता भारतीय उपमहाद्वीप की सांस्कृतिक विविधता और एकता का प्रतीक है। उर्दू के साथ नाइंसाफी यह हुई कि इसे मुसलमानों की भाषा समझ लिया गया। विभाजन और पाकिस्तान बनने का जिम्मेदार तक समझ लिया गया, जो गलत है। उर्दू के गैर-मुस्लिम लेखकों और शायरों की भी कोई कमी नहीं है। इनमें फिराक गोरखपुरी, कृष्ण चंदर, मोहिंदर सिंह बेदी, राजेंद्र सिंह बेदी, जगन्नाथ आजाद, कृष्ण बिहारी नूर, गोपी चंद नारंग शामिल हैं।

क्या केंद्र की मौजूदा सरकार देश में उर्दू के हक में काम कर रही है? इस बारे में सहमति थी कि मोदी सरकार ने उर्दू से जुड़ी संस्थाओं और संस्थानों को अपने राष्ट्र विकास मंत्र, ‘सब का साथ, सब का विकास, सब का विश्वासऔर सब का प्रयास’ से जोड़ा है जिसका जीता जगता उदाहरण नेशनल काउंसिल फॉर प्रमोशन ऑफ उर्दू लैंग्वेज का पटना में अंतरराष्ट्रीय स्तर का त्रि-दिवसीय समागम-उर्दू भाषा का भविष्य, विकसित भारत 2047-था। 

देखिए, उर्दू भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर का अनमोल रत्न है, जो इस देश की मिट्टी से उपजी है और इसके लोगों के दिलों में बसी है। यह भाषा न केवल शब्दों का समूह है, बल्कि ऐसी सांस्कृतिक धारा भी है जो विभिन्न समुदायों को प्रेम और भाईचारे के सूत्र में बांधती है। उर्दू की मधुरता, शायरी, गजलें और कविताएं भारतीय साहित्य और कला को अनूठा आयाम प्रदान करती हैं। यह भाषा भारत की गंगा-जमुनी तहजीब का प्रतीक है, जो हिन्दू-मुस्लिम एकता और सौहार्द का संदेश देती है।

उर्दू का जन्म भारत की मिट्टी में हुआ, और यह संस्कृत, प्राकृत, फारसी, अरबी और तुर्की जैसी भाषाओं के मेल से विकसित हुई। इसकी उत्पत्ति दिल्ली और इसके आसपास के क्षेत्रों में हुई, जहां इसे ‘हिन्दवी’ या ‘देहलवी’ के रूप में जाना जाता था। समय के साथ, उर्दू ने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई और आज भारत की प्रमुख भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त है। भारत के संविधान में उर्दू को 22 अनुसूचित भाषाओं में शामिल किया गया है, जो इसकी महत्ता को दर्शाता है। 

उर्दू की सबसे बड़ी खूबसूरती इसकी समावेशी प्रकृति में निहित है। उर्दू ने हमेशा से सभी को गले लगाया है, और इसे हिन्दुस्तान के हर कोने में प्रेम मिला है। चाहे उत्तर प्रदेश की गलियों में गूंजती गजलें हों, हैदराबाद की दक्कनी उर्दू हो, या कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक के साहित्यिक समारोह हों, उर्दू हर जगह अपनी छाप छोड़ती है। इसकी शायरी और साहित्य में वह जादू है, जो सुनने वाले को भावनाओं के सागर में डुबो देता है।

मिर्जा गालिब, दाग देहलवी, मीर तकी मीर और फैज अहमद फैज जैसे शायरों ने उर्दू को ऐसी ऊंचाई दी, जो विश्व साहित्य में बेमिसाल है। उर्दू को बढ़ावा देने के लिए भारत में कई संस्थान और संगठन काम कर रहे हैं। उर्दू अकादमियां, साहित्यिक समारोह और स्कूलों में उर्दू की पढ़ाई इस भाषा को जीवित और समृद्ध रखने में योगदान दे रही हैं। ईमानदारी की बात तो यह है कि जहां-जहां कोई उर्दू बोलता है, वहां-वहां हिन्दुस्तान बोलता है।

राजा राम मोहन रॉय, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा, मुरली मनोहर जोशी आदि सभी मदरसों के छात्र रहे हैं। उर्दू ने विकसित और सुरक्षित भारत के लिए ‘चमन’, ‘गुलजार’, ‘गुलशन’, ‘बाग-ओ-बहार’, ‘गुल-ए-बहार’ आदि शब्दों का प्रयोग किया है। कुल मिला कर कहा जा सकता है कि उर्दू का वर्तमान और भविष्य रोशन है। हां, अब उर्दू के दोस्तों और दुश्मनों की पहचान करना लाजिमी है।

विवेक शुक्ला


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