ओवर टूरिज्म : बदतर होते हालात

Last Updated 19 Aug 2025 01:39:33 PM IST

नि:स्संदेह टूरिज्म हो या ओवर टूरिज्म इससे देशों, राज्यों, नगरों या गांवों की आर्थिकी बढ़ने की संभावनाएं रहती ही है। किन्तु इसके बावजूद पूरे विश्व में सभी देश, सभी शहर या स्थानीय वासी ओवरटूरिज्म से खुश नहीं हैं।


ओवर टूरिज्म : बदतर होते हालात

विशेषकर यूरोप में लोकप्रिय पर्यटक महानगरों नगरों में अतिशय पर्यटन का विरोध हो रहा है। भारतीय पर्यटक नगरी में पर्यटकों की भारी भीड़ से, उनके व्यवहार से, जामों से और उनके कारण बढ़ते उपभोक्ता सामग्रियों व कूड़ा कचरे के अंबार से देर-सबेर भारत भी ओवरटूरिज्म के विरोध से अझूता नहीं रहेगा। यूरोप में भी ओवर टूरिज्म का विरोध करने वाले प्रदर्शनकारियों का कहना है कि इससे घरों के किराये बढ़ गए हैं, हमारी गलियां भीड़ भरी हो गई हैं और स्थानीय संस्कृति का क्षरण हो रहा है। यही सब भारत में भी अत्याधिक पर्यटनग्रस्त प्रमुख पर्यटक नगरियों के नागरिक भी अनुभव कर रहे हैं। 

भारत में ओवर टूरिज्म की कीमत स्थानीय लोग जाम में फंस हर काम में अतिरिक्त समय लगा दे रहे हैं।  आने-जाने में देरी से जरूरी काम भी छूट जाते हैं या उन्हें टालना पड़ता है। इससे आर्थिक हानि भी हो जाती है। तनाव अलग से  पैदा होता है।  ये वह लागत है जो पर्यटन से बढ़े राजस्व का ढिंढोरा पिटते सरकारों या हितधारकों के आकलन में नहीं होता है। किन्तु जिसे हर अपने गांव-शहर के ओवर टूरिज्म से पिसा स्थानीय नागरिक चुका रहा है। 

हर काम के लिए घर से पहले निकलने और देरी से घर पहुंचने की मजबूरी रहती है। इसमें घर के कई ओवर टूरिज्म की मुख्य पहचान हम भारी जाम से करते हैं। देहरादून मसूरी जाम में इसी  माह एक प्र्यटक की मौत हुई, परन्तु ऐसी घटनाएं अन्यत्र से भी सुनने को आने लगी हैं। सरकारी तौर पर ये जानकारी शिमला में जून 20 और जून 23 के बीच  कुल तीन दिनों में ही साठ हजार पर्यटक वाहन नगर में प्रवेश किए थे। ये नित्य के स्थानीय परिवहन के अतिरिक्त है। इस जून 2025 में जिले के पुलिस अधिकारी के अनुसार देहरादून से मसूरी जाने को सामान्य दिनों में प्रति दिन 4 से आठ हजार वाहन होते हैं।

इन दिनों वीकेंड में पंद्रह हजार वाहन आ रहे हैं। हालात ऐसे हो जाते हैं कि स्थानीय जन अपने ही शहर में ही कैद हो जाता है। यूरोप में जगह-जगह स्थानीय लोग ‘टूरिस्ट गो होम’ के नारे लग रहे हैं। ओवर टूरिज्म के खिलाफ लोग अभियान चला रहे हैं। इटल , स्पेन और पुर्तगाल में तो बहुत जोर पकड़ रहा है। ‘पर्यटकों घर जाओ’, ‘एक पर्यटक का बढ़ना एक स्थानीय निवासी का कम होना’ जैसे पोस्टर व नारे लग रहे हैं। वे कहते हैं उनका जीना दूभर हो गया है। किराये के घरों का दाम बहुत बढ़ गया है। बड़े-बड़े होटलों के खोलने व उनमें विस्तार होने का विरोध हो रहा है। इस 15 जून को बड़े प्रदर्शन हुए। बार्सीलोना की तो खबर थी कि कि प्रदर्शनकारियों ने वाटर गनों को लेकर पर्यटकों के पसंदीदा स्थलों में पर्यटकों को निशाना बनाया। बार्सीलोना प्रदर्शनों का प्रमुख केंद्र बन गया है। 

उसकी जनसंख्या सोलह लाख है, जबकि गत वर्ष वहां 26 लाख टूरिस्ट आए। स्थानीय लोग कह रहे हैं, देखिए हम जहां देख रहे हैं पर्यटक ही पर्यटक दिख रहे हैं। आपका सामना उन लोगों से होता है जिनको आप नहीं जानते और जो आपको नहीं जानते हैं। प्रदर्शनकारियों के अनुसार यह असहाय होने का भाव भी पैदा कर देता है। पिछले साल यूरोप में 70 लाख पर्यटक आए थे। ग्रीस में उसकी संख्या के चार गुणा पर्यटक आए थे। लगभग सभी पर्यटक शहरों में जहां विरोध हो रहा है वहां स्थानीय जनसंख्या के सात आठ गुणा तक पर्यटक पहुंच रहे हैं। भारत में भी यात्रियों के पारम्परिक मूल्यों की दृष्टि से अनुचित आचरण व्यवहार से भी परेशानी पैदा हो रही है। शायद ही कोई चाहेगा कि टूरिस्ट या जनता उसके क्षेत्र में अशांति पैदा करे। वायनाड के एक बांध के समीप के एक गांव के किसान बांध पहुंच रील बनाने वाले पर्यटकों की उद्दंड भीड़ से परेशान हो प्रशासन से इस पर रोक लगाने की मांग की है। वे कहते हैं इससे दुर्घटनाएं बढ़ी हैं। खेतों को नुकसान हुआ है, निजता का भी हनन हुआ है। पर्यटकों के मनमाने ढंग से जहां-तहां रुकने से लगभग सभी पर्यटन मागरे पर दुर्घटनाओं के जोखिम बढ़े हैं। सेल्फी के मोहपाश में फंसकर कई पर्यटकों ने पहाड़ियों में, नदियों में और झीलों में अपना अमूल्य जीवन गंवाया है। 

सड़क मागरे  का जाम तो शुरुआत भर है। ओवर टूरिज्म का असर तो किसी पर्यटन नगरी में पहुंचकर खास पर्यटन स्पॉट में जाकर दिखता है। चाहे वो झील हों, झरने हों, नदी हो, पार्क हो या म्यूजियम हो। यही नहीं इससे स्थानीय निवासियों के साफ पर्यावरण और शांति में रहने के अधिकार पर चोट पहुंच रही है। इससे हजारों की संख्या में पर्यटकों के पहुंचने से, उनके सैकड़ों वाहनों के पहुंचने से न शांति रह गई न साफ हवा। प्लास्टिक का प्रदूषण अलग से है। सरकारें ये क्यों सोचती हैं कि सदैव ही स्थानीय लोग कुछ धनराशि के फायदे के लिए अपनी शांति खो देंगे। पैसा बढ़ता भी है तो बाजार के दुकानदारों का। सामान की कमी बताकर ओवर रेटिंग से भी उनका मुनाफा बढ़ता है।  ज्यादा दाम पर्यटक ही नहीं चुकाते रोज उन बाजारों व शहरों में रहने वाले भी चुकाते हैं। किन्तु किसी भी शहर में कुल दुकानदारों व कुल स्थानीय निवासियों का अनुपात क्या है? विक्रेता ज्यादा हैं या खरीदार। महंगे हुए आवश्यक चीजों को होटल वाले तो ज्यादा दामों में खरीद ही लेंगे, परन्तु गृहणी तो लाभ कमाने के लिए नहीं घर की रसोई के लिए  खरीदती है।

पारिस्थितिकी तंत्र व प्राकृतिक संसाधनों पर भार बढ़ना तो अलग ही विषय है। ओवर टूरिज्म का भार पूरे देश में ही हिमालयी राज्यों को यदि छोड़ भी दें तो केरल, महाराष्ट्र, तामिलनाडु में भी देखा जा रहा है। उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्चिम, मध्य के पहाड़ी या पठारी अधिकारिक ईकोसेन्सेटिव या हैजार्ड पोर्न घोषित जोन में भी हो रहा है। बियरिंग कैपेसिटी जानकर ओवर टूरिज्म को सस्टेनेबल टूरिज्म में बदलने के लिए यह जानना जरूरी होगा कि विशेष संवेदनशील व आपदा जोखिमों वाले पर्यटन स्थलों के बियरिंग कैपेसिटी आकलन के मानक व पद्धतियां सामान्य पर्यटक नगरों सी नहीं होंगी। पर्यटकों को समझना होगा कि सुंदर, प्राकृतिक व संवेदनशील पर्यटक स्थलों की सुंदरता बनाए रखना ज्यादा जरूरी है, जिससे लोग आगे भी आते रहें और मूल निवासियों को भी नुकसान न हो। 
(लेख में विचार निजी हैं)

वीरेन्द्र कुमार पैन्यूली


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