भारत और पड़ोसी देशों के बीच 'जीवंत' संपर्क विकसित करने की आवश्यकता: भागवत

Last Updated 28 Aug 2025 09:16:52 AM IST

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस - RSS) प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने भारत और उसके पड़ोसी देशों के लोगों के बीच जीवंत संपर्क विकसित करने की आवश्यकता पर बुधवार को बल दिया।


आरएसएस के 100 वर्ष पूरे होने पर यहां विज्ञान भवन में तीन दिवसीय व्याख्यान शृंखला के दूसरे दिन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए भागवत ने कहा कि भारत के अधिकांश पड़ोसी देश कभी भारत ही थे। उन्होंने कहा, "लोग वही हैं, भूगोल वही है। नदियां वही हैं, जंगल वही हैं, सब कुछ वही है। केवल नक्शे पर रेखाएं खींची गई हैं।"

उन्होंने कहा, "इसलिए पहला कर्तव्य यह है कि ये लोग, जो हमारे अपने हैं, अपनेपन की भावना से जुड़ें। देश अलग-अलग रहेंगे और पहले भी अलग-अलग थे।"

भागवत ने कहा कि इस दृष्टिकोण से, भारत और उसके पड़ोसी देशों के बीच लोगों के आपसी संपर्क विकसित करने के प्रयास शुरू किए जाने चाहिए।

उन्होंने कहा, "जिसे आज की भाषा में संपर्क कार्यक्रम कहते हैं, हम उसे जीवंत संपर्क कहते हैं। इंसानों का इंसानों से मिलना, दिल से दिल की बातें। मानव से मानव का संपर्क। इसकी शुरुआत होनी चाहिए।"

उन्होंने कहा कि इस प्रयास से जो माहौल बनेगा, वह भारत और उसके पड़ोसी देशों के रिश्तों को एक-दूसरे का "पूरक" बनाएगा और इससे दुनिया को फायदा होगा।

भागवत ने कहा कि सभी को "विरासत में मिले मूल्यों" के आधार पर प्रगति करनी चाहिए। उन्होंने किसी देश का नाम लिए बिना कहा, "भारत को इसमें योगदान देना चाहिए। भारत सभी (पड़ोसी देशों) में सबसे बड़ा है।"

भागवत ने कहा कि आरएसएस के दिवंगतनेता लक्ष्मणराव भिड़े ने 1991 में विदेश से आए कुछ लोगों के लिए आयोजित एक प्रशिक्षण सत्र के दौरान उन्हें बताया था कि आरएसएस स्वयंसेवकों की पहली पीढ़ी ने विदेशों में हिंदुओं को संगठित किया और दूसरी पीढ़ी ने यह सुनिश्चित किया कि वे नशे और उपभोक्तावाद से दूर रहें।

आरएसएस प्रमुख ने कहा, "उन्होंने उनसे कहा कि यह आपकी तीसरी पीढ़ी है। पहली पीढ़ी ने दिखा दिया है कि संघ की शाखा हर जगह चल सकती है।"

उन्होंने कहा, "और आज विदेशों में, संघ के स्वयंसेवक विभिन्न संगठनों के माध्यम से वहां के हिंदुओं को संगठित कर रहे हैं। वे शाखा प्रणाली को आगे बढ़ाते हैं। वे हर जगह एक अच्छा जीवन सृजित कर सकते हैं।"

भागवत ने कहा कि भिड़े ने उन्हें यह भी बताया कि संघ का स्वयंसेवक बनने के बाद शाखा प्रशिक्षण व्यक्ति को अत्यधिक उपभोग, व्यसन आदि से दूर रखता है।

आरएसएस प्रमुख ने कहा कि उस समय भिड़े की टिप्पणी महज़ एक सिद्धांत लग रही थी।

भागवत ने कहा, ‘‘उन्होंने (भिड़े ने) उनसे कहा कि यह आपकी तीसरी पीढ़ी है और आपके कंधों पर अपने देश में ऐसा संघ स्थापित करने की जिम्मेदारी आ रही है, जिसे देखकर उस देश के लोग कहेंगे कि हमारे पास भी ऐसा आरएसएस होना चाहिए।’’

उन्होंने कहा "मैं खुश हूं। मैं सोचता था कि यह सिर्फ़ एक सिद्धांत है... लेकिन पिछली बार नागपुर में हमारे संघ के शिक्षा वर्ग को देखने बहुत से लोग आए थे। जाते-जाते उन्होंने कहा कि उनके पास भी एक आरएसएस होना चाहिए।" भागवत ने कहा, "भारत को यह करना ही होगा।"

आरएसएस प्रमुख ने कहा कि लेकिन रास्ता दिखाने के लिए, भारतीय समाज को अपना उदाहरण प्रस्तुत करना होगा। उन्होंने विभिन्न समुदायों और धार्मिक समूहों के बीच संवाद शुरू करके भारतीय समाज में व्याप्त विभाजन को पाटने की आवश्यकता पर बल दिया।

भाषा
नई दिल्ली


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