तिब्बत सीमा पर भारतीय सेना सतर्क
चीन द्वारा देश की सभी चीनी सीमाओं से एक साथ युद्ध छेड़ने की धमकी के बाद भारत-तिब्बत चीन सीमा नीती व माणा दर्रे मे भी सेना पूरी तरह सतर्क हो गई है.
तिब्बत सीमा पर भारतीय सेना सतर्क |
हालांकि इन क्षेत्रों मे सेना द्वारा प्रतिवर्ष नियमित अभ्यास की प्रक्रिया गतिमान रहती है, लेकिन डोकलाम विवाद व चीन की धमकी के बाद सेना के जमवाड़े को लोग युद्ध से निपटने की तैयारियों के देख रहे हैं.
डोकलाम में भारत द्वारा मजबूती से अपना पक्ष रखने व सेना को किसी भी दशा मे पीछे न हटाने के निर्णय के बाद चीन बुरी तरह बौखलाया हुआ है. चीनी सरकारी मीडिया कभी युद्ध का काउंटडाउन शुरू तो कभी एक साथ सभी सीमाओं से युद्ध शुरू करने की धमकी दे रहा है. ऐसा नहीं कि भारत चीन की किसी धमकी का संज्ञान नहीं ले रहा हो.
भारत भी चीन से संबंधित पुराने कटु अनुभवों के आधार पर अपनी पुख्ता तैयारियों मे जुट गया है. इसी परिप्रेक्ष्य में उत्तराखंड के तिब्बत सीमा से सटे नीती-माणा दरें की अग्रिम चौकियों मे तैनात जांबाज अतिरिक्त सतर्कता बरते हुए है. चीनी सेना की भारत-तिब्बत सीमा के बाड़ाहोती क्षेत्र मे प्रतिवर्ष घुसपैठ कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की हमेशा से मंशा रही है. बाड़ाहोती एक विवादित क्षेत्र है. इस पर भारत व चीन दोनों देश अपना अधिकार रखते हैं.
भारत की ओर से वर्ष मे तीन से चार बार सभी सरकारी महकमों के अधिकारी-कर्मचारी बाड़ाहोती पहुंचकर देश की उपस्थिति दर्ज कराते हैं तो चीनी सेना सीधे घुसपैठ कर बाड़ाहोती पहुंच जाती है. चीनी सेना कभी पैदल घुसपैठ तो कभी वायु सीमा का उल्लंघन करती रही है. यह सब उसकी विस्तारवादी नीति का ही हिस्सा हैं और वह दूरगामी रणनीति के तहत किसी भी तरह भारतीय क्षेत्र पर अपना अधिकार जमाने की कुचेष्टा करता रहता है, लेकिन चीन यह भी अच्छे से समझ गया है कि आज का भारत वर्ष 1962 का भारत नहीं रह गया है और चीन युद्ध थोपने के मायने भी भली भांति समझ रहा है.
वैसे तो चीन 1967 के युद्ध में ही भारत की बढ़ती ताकत को समझ गया था. 1967 में इसी डोका-लॉ (डोकलाम) मे भारतीय सेना द्वारा कंटीले तारों की बाढ़ लगाने के दौरान चीनी सैनिकों ने इसका विरोध किया और तब भारतीय सेना द्वारा भी आक्रामकता दिखाते हुए चीनी सेना के जवानों को वापस जाने के लिए विवश कर दिया था.
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