खट्टर सरकार को झटका, खनन पट्टा रद्द

Last Updated 13 Aug 2017 05:26:01 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के दखल से दिए गए खनन के पट्टे को रद्द कर दिया है.


उच्चतम न्यायालय

मुख्यमंत्री की मंजूरी से खनन का पट्टा दिए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने ताज्जुब जताया. अदालत ने फर्जीवाड़े से पत्थर के खनन का पट्टा लेने वाली कंपनी की 28 करोड़ की सिक्योरिटी मनी भी जब्त करने का आदेश दिया है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऊंची पहुंच के कारण फर्म के मालिक को यह पट्टा मिला. हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद फर्म के मालिक ने हरियाणा के मुख्यमंत्री से पट्टे के नियमों में बदलाव कराया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पट्टे को रद्द करने के सिवाय और कोई विकल्प नहीं है. खनन का काम 30 नवम्बर तक जारी रहेगा, ताकि मजदूरों की दिहाड़ी का भुगतान हो सके.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में पट्टा दिए जाने के खिलाफ याचिका दायर होने पर ही राज्य सरकार हरकत में आई और 9 अगस्त, 2016 को सुंदर एसोसिएट को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया कि केजेएसएल के 51 फीसद शेयर याची फर्म में ट्रांसफर होने के कारण क्यों न मंजूरी वापस ले ली जाए. जस्टिस मदन लोकुर और दीपक गुप्ता की बेंच ने हरियाणा के भिवानी जिले में पत्थर के खनन का पट्टा रद्द करने का आदेश देते हुए याची की ताकत और सत्ता के गलियारों में उसकी पहुंच का जिक्र किया.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याची अपनी पहुंच का फिर से फायदा न उठाए इसलिए जरूरी है कि 30 नवम्बर तक खनन जारी रहे, ताकि उस समय तक मजदूरों का वेतन अदा किया जा सके. नियमों को लागू करने में लापरवाही की गई तो राज्य के मुख्य सचिव को सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराया जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने मैसर्स सुंदर मार्केटिंग एसोसिएट की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि यह मामला सत्ता के गलियारों में अपना प्रभाव रखने वालों का है. याची फर्म के मालिक ने जिस तरह कानून की धज्जियां उड़ाकर पट्टे के नियमों में बदलाव करवाया, उससे निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि वह मामूली आदमी नहीं है. मामले के तथ्य बताते हैं कि सरकार साधारणतया किसी व्यक्ति पर इस तरह मेहरबान नहीं होती.

हरियाणा के खनन एवं भूगर्भ विभाग ने 30 नवम्बर, 2013 को खनन के पट्टों की नीलामी की थी. सुंदर मार्केटिंग ने कर्मजीत सिंह एंड कंपनी (केजेएलएस) के साथ साझे में भिवानी के ददम खदान में पत्थरों के खनन का पट्टा हासिल किया. सबसे ज्यादा बोली लगाने के कारण उनकी फर्म को सालाना 115 करोड़ किराया अदा करने पर पट्टा दिया गया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पट्टे की शर्त थी कि पांच साल की अवधि से पहले फर्म की पार्टनरशिप नहीं बदलेगी. पांच साल से पहले लीज ट्रांसफर भी नहीं की जा सकती, लेकिन नियमों के तहत सरकार के संतुष्ट होने पर 49 प्रतिशत शेयर नए साझीदार को स्थानांतरित किए जा सकते हैं. लेकिन मौजूदा याची ने 51 प्रतिशत वाले पार्टनर को बेदखल करके शत-प्रतिशत हिस्सेदारी हासिल कर ली. एक साल के अंदर पर्यावरण संबंधी क्लीयरेंस लेने की भी शर्त थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याची खुद नीलामी में भाग लेने के लिए योग्यता नहीं रखता था. साझीदार फर्म ही नी लामी में भाग ले सकती थी. इसलिए 51 प्रतिशत वाले पार्टनर को हटाकर खुद सम्पूर्ण मालिकाना हक ले लेना नियमों के खिलाफ है.

विवेक वार्ष्णेय
लेखक


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