बतंगड़ बेतुक : विकट बहादुरी या निपट मूर्खता
झल्लन बोला, ‘ददाजू, आज हम एक कहानी लिख लाये हैं और सीधे आपको सुनाने चले आये हैं।’ हमने कहा, ‘जब तू लिख ही लाया है तो सुना दे, क्या लिखा है बता दे।’
![]() विभांशु दिव्याल |
वह बोला, ‘तो सुनो ददाजू, एक गांव में एक पहलवान था। उसका भरा-पूरा कुनबा था, भाई-भतीजे थे, साथी-संघाती थे पर अड़ोस-पड़ोस में उसके कुछ घाती-प्रतिघाती थे। पहलवान ने दिन-रात कसरत करके देह बनाई थी और पूरे इलाके में अपनी दबंगई की ध्वजा फहराई थी। तो हमारा यह पहलवान जो असल में चचा पहलवान था, अपने पूरे कुनबे को साथ नहीं रख पाया, सो जो अलग रहना चाहते थे वे अपने-अपने हिस्से के घर-दुकान लेकर अलग हो गये, अलग होने के बाद भी कुछ चचा पहलवान के साथ खड़े रहे तो कुछ उसके विरोधियों से मिल गये। सब कुछ ठीक-ठाक ही चल रहा था। चचा का एक भतीजा जो ऐन चचा की बगल में रह रहा था, उसे चचा का साया बिल्कुल पसंद नहीं आया और वह चचा के विरुद्ध बगावत पर उतर आया।
‘चचा पहलवान ने भतीजे को समझाया कि वह अपनी हद में रहे और जो आस-पड़ोस के पहलवान उसे उकसा-फुसला रहे हैं उनसे बचकर रहे। पर भतीजे ने फैसला किया कि वह अपने चचा का पट्ठा बनकर नहीं रहेगा और अपनी पहलवानी अपने दम पर करेगा। चचा-भतीजे की घरू लड़ाई की बात बाहर फैली तो आस-पड़ोस के पहलवानों की बन आयी, उनकी तो जैसे लाटरी निकल आयी। चचा-भतीजे की लड़ाई का फायदा उठाने के लिए वे अपने-अपने अखाड़ों में निकल आये और कथित तौर पर भतीजे के समर्थन में उतर आये। किसी ने कहा कि वह भतीजे को कुश्ती के लिए तैयार करवाएगा, किसी ने कहा कि वह दूध-मक्खन भिजवाएगा, किसी ने कहा कि उसे पहलवानी के दांव-पेंच सिखवाएगा और किसी ने कहा कि दोनों में कुश्ती हुई तो वह भतीजे के पक्ष में अखाड़े में उतर आएगा और भतीजे की जीत सुनिश्चित करवाएगा।
‘भतीजे ने देखा कि उसकी भुजाएं फड़क रही हैं, उसकी शिराएं उत्साह से उबल रही हैं और चचा से कुश्ती के लिए उसे जो-जो चीजें चाहिए थीं वे सब चचा के दुश्मनों से मिल रही हैं। चचा ने एक बार फिर समझाया कि वह अपनी हरकतों से बाज आये और जिनके बल पर वह उछल रहा है उनकी बातों में न आये। पर भतीजा झाड़ पर चढ़ चुका था और चचा से किसी भी हाल में डरना नहीं है यह तय कर चुका था। सो उसने चचा की चेतावनियों पर न तो कोई ध्यान दिया और न चेतावनियों के माकूल कोई काम किया। सो एक दिन चचा ने भतीजे के घर में घुसकर एक लात लगा दी और अगर वह नहीं सुधरा तो क्या हो सकता है यह बात भी उसे समझा दी। ‘पर भतीजा बहादुराना अंदाज में था, उसे अपने शौर्य-साहस पर अखंड विश्वास था सो न तो उस पर चचा की दबंगई का असर हुआ और न अपने दोस्तों से मिले आश्वासन पर उसे कोई शक हुआ। उसे विश्वास था कि चचा के साथ मलयुद्ध में चचा से जलने-कुढ़ने वाले आस-पड़ोस के सारे पहलवान उसके पक्ष में अखाड़े में उतर आएंगे और चचा से भिड़ जाएंगे। चचा की हेकड़ी निकल जाएगी, सारी पहलवानी धरी की धरी रह जाएगी। सो उसने चचा की धमकी के बदले अपनी पुरजोर धमकी उछाली और ताल ठोककर खुली कुश्ती की चुनौती दे डाली। ‘चचा ने फिर उसके घर में घुसकर उसे दो धौल जमा दिये और घर की सुरक्षा में उसने जो दीवार-दरवाजे खड़े किये थे वे एक घूंसे से गिरा दिये। भतीजे ने झपटकर चचा के हाथ में चिकोटी काट ली और अपनी चिकोटी का डंका बजा दिया, वह कितनी बहादुरी से लड़ रहा है यह अपने दोस्तों को बता दिया। उसके उकसाऊ दोस्तों ने जमकर ताली बजाई, उसकी बहादुरी की दास्तान घर-घर पहुंचाई, पर अपने-अपने डर की वजह से इस भतीजे पहलवान तक कोई रसद नहीं पहुंचाई।
‘चचा ने भतीजे का रहा बचा सुरक्षा घेरा गिरा दिया और भतीजे को पकड़कर उलटा लटका दिया, पर भतीजा हुंकार भरता रहा और अपनी वीरता-बहादुरी की दुहाई देता रहा। वह लटके-लटके जब भी चचा के हाथ में कोई खरोंच बना देता था तो पूरे इलाके में अपनी हिम्मत का डंका बजवा देता था। उधर उसकी बहादुरी पर दोस्तों की वाह, वाह तो आ रही थी पर उसे मदद की जिस खेप की जरूरत थी वह कहीं से आती नजर नहीं आ रही थी। उसके कथित दोस्त उसकी बहादुरी के कसीदे तो पढ़ रहे थे पर उसकी सहायता को आगे नहीं बढ़ रहे थे। ‘इधर चचा उसे दनादन थप्पड़ मारे जा रहा है, उसके घर की नींव तक खुदवाए जा रहा है और भतीजा अब भी चिल्ला रहा है कि वह बहादुर है सो हार नहीं मानेगा और जब तक चचा उसे पीटते-पीटते थक न जाये तब तक हथियार नहीं डालेगा।’
हमने कहा, ‘तू किसकी कहानी सुना रहा है, तेरा इशारा किधर जा रहा है?’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, इशारे पर मत जाइए, बस इतना बताइए कि यह भतीजा पहलवान साहस और शौर्य की मशाल है या फिर निपट मूर्खता की विकट मिसाल है?’
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