गिल-गंभीर युग का आगाज
भारतीय क्रिकेट अब रोहित और विराट के युग से आगे निकल कर गिल और गंभीर के युग में प्रवेश कर गई है। भारतीय युवा टीम ने इस कारनामे को शानदार ढंग से अंजाम दिया है।
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उन्होंने एंडरसन-तेंदुलकर टेस्ट सीरीज के ओवल में खेले आखिरी टेस्ट को जिस तरह से जीता है, उससे अहसास हो गया है कि टीम की कमान सही हाथों में है। सीरीज की शुरुआत से पहले रोहित शर्मा, विराट कोहली और अश्विन के संन्यास लेने पर कहा जा रहा था कि युवा टीम की यह मुश्किल परीक्षा है। पर इस यंग ब्रिगेड न सिर्फ इस परीक्षा को उम्दा अंदाज में पास किया है, बल्कि यह भी जता दिया है कि आने वाले दिनों में वह क्या करने वाले हैं।
असल में चौथे टेस्ट को जिस तरह हार के कगार से बचा कर टेस्ट ड्रा कराया और फिर ओवल टेस्ट को जीतने से टीम का डीएनए क्या है, यह पता चलता है। इस यंग टीम की सबसे बड़ी खूबी यह दिख रही है कि वह मुश्किल से मुश्किल हालात में भी समर्पण करने में विश्वास नहीं रखती। टीम की यह सोच टेस्ट क्रिकेट में नई ऊंचाइयों पर ले जा सकती है।
बहुत संभव है कि कप्तान शुभमन गिल से कुछ मौकों पर फैसलों में चूक हुई हो पर उन्होंने जिस तरह से भारतीय गेंदबाजों को अपना बेस्ट देने के लिए प्रेरित किया और टीम को महत्त्वपूर्ण मौकों पर एकजुट रखा, उससे लगता है कि वह विराट और रोहित की तरह टेस्ट टीम को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा सकते हैं।
गिल इसलिए भी तारीफ के काबिल हैं कि उनकी सेना देशों में इससे पहले प्रदर्शन कोई बहुत अच्छा नहीं था और कप्तानी की जिम्मेदारी मिलने पर उनका प्रदर्शन बिखर भी सकता था। पर उन्होंने अपने प्रदर्शन से हैरत में ही नहीं डाला बल्कि यह भी दिखाया कि कप्तानी का उनके ऊपर कोई दवाब नहीं है।
इस सीरीज ने टेस्ट क्रिकेट को पांच दिनों का ही रखने की सोच को बल दिया है। असल में पिछले कुछ सालों में कई टेस्ट तीन-चार दिन में खत्म हो जाने पर टेस्ट मैचों को चार दिन का करने की चर्चा चलने लगी थी। पर इस सीरीज ने दिखाया कि दोनों टीमों में लड़ने का माद्दा हो और उन्हें अच्छे विकेट मुहैया कराए जाएं तो पांच दिनों तक टेस्ट में रोमांच बना रह सकता है।
इस सीरीज के जिन चार टेस्ट मैचों में परिणाम निकला है, वे सभी चार दिन का टेस्ट होने पर ड्रा हो जाते। साथ ही, भारत और इंग्लैंड, दोनों ने ही बेहतरीन क्रिकेट खेल कर दिखाया कि टेस्ट क्रिकेट का कोई सानी नहीं है।
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