वैश्विकी : इतिहास के दाहिने ओर

Last Updated 20 Mar 2022 12:04:17 AM IST

अमेरिकी प्रशासन का नया तकियाकलाम है इतिहास के दाहिने ओर। सही और गलत के स्वयंभू निर्णायक के रूप में अमेरिका यह ऐलान कर रहा है कि यूक्रेन संकट के बारे में किस देश का क्या रवैया होना चाहिए।


वैश्विकी : इतिहास के दाहिने ओर

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच शुक्रवार को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये हुई लंबी बातचीत के बाद व्हाइट हाउस के प्रवक्ता ने यह बात दोहराई कि चीन को इतिहास के दाहिने ओर रहना चाहिए। दोनों नेताओं के बीच बातचीत का मुख्य मुद्दा रूस के विरुद्ध लगाए गए प्रतिबंधों के सिलसिले में चीन का समर्थन हासिल करना था। अमेरिकी प्रशासन ने दबे स्वर में चीन को चेतावनी दी कि रूस की मदद करने पर चीन को उसका खमियाजा भुगतना पड़ेगा। बातचीत के दौरान बाइडेन ने जिनपिंग से कहा कि अगर चीन के समर्थन के बाद रूस-यूक्रेन का शहरों पर आक्रमण करता है तो इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। व्हाइट हाउस की ओर द्यथ् कहा गया कि दोनों नेताओं के बीच करीब दो घंटे बातचीत यूक्रेन में रूस के हमले पर केंद्रित रही।
अमेरिका ने कुछ दिन पहले भारत को भी ऐसी ही नसीहत दी थी। रूस ने सस्ते दर पर भारत को कच्चे तेल की आपूर्ति करने की पेशकश की है। भारत ने इस संबंध में अनुकूल रवैया अपनाया है। वास्तव में रूस की यह पेशकश भारत की अर्थव्यवस्था को कुछ राहत दे सकती है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा था कि अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए भारत विभिन्न विकल्पों की तलाश कर रहा है। वैसे भी भारत संयुक्त राष्ट्र की अनदेखी कर किसी देश द्वारा लगाए गए एकतरफा प्रतिबंधों को खास तवज्जो नहीं देता। लेकिन यह हकीकत है कि विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संस्थानों पर वर्चस्व कायम रखने वाला अमेरिका किसी भी देश की बांह मरोड़ सकता है।
बाइडेन और राष्ट्रपति शी के बीच बातचीत के दौरान क्या मोलतोल हुआ, इसका ब्योरा उपलब्ध नहीं है। यह जरूर है कि राष्ट्रपति शी ने बाइडेन से कहा कि वह ताइवान को लेकर चीन के विरुद्ध कोई नकारात्मक रवैया नहीं अपनाए। जाहिर है कि चीन चाहता है कि ताइवान का मुख्य भूमि के साथ एकीकरण बाधारहित हो। यूक्रेन संकट के पहले यह कयाज लगाया जा रहा था कि शी ताइवान को सैन्य प्रयोग के जरिये हथियाना चाहता है। इसी के मद्देनजर अमेरिका ने ताइवान को सैनिक साजो-सामान की आपूर्ति बढ़ा दी थी। साथ ही उस क्षेत्र में अमेरिकी नौसेना ने अपनी गतिविधियां बढ़ा दी थीं।

यूक्रेन संकट ने वास्तव में चीन को नया कूटनीतिक हथियार मुहैया करा दिया है। कोई आश्चर्य नहीं होगा कि रूस के विरुद्ध लामबंदी की कीमत के रूप में चीन ताइवान और हिंद प्रशांत क्षेत्र के संबंध में अमेरिका से रियायत हासिल करे। यूक्रेन संकट के पहले अमेरिकी प्रशासन यूरोप के बजाय एशिया पर ध्यान केंद्रित करने की नीति अपना रहा था। इसका दूरगामी उद्देश्य चीन को विश्व की नंबर एक ताकत बनने से रोकना था। क्वाड की स्थापना के पीछे भी यही अघोषित उद्देश्य था। हालांकि भारत ने क्वाड के इस उद्देश्य के साथ जुड़ने से असहमति व्यक्त की थी। अमेरिका ने एक नये उपाय के रूप में ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ मिलकर ऑक्स की स्थापना की थी। इसका स्वरूप सैनिक गठबंधन जैसा था।
अमेरिका जिस समय यूक्रेन संकट में फंसा है, उसी दौरान जापान और ऑस्ट्रेलिया की कोशिश है कि हिंद प्रशांत क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित रखा जाए। जापान के प्रधानमंत्री फुजियो किशिदा की भारत यात्रा का भी यही मुख्य एजेंडा है। रिपोर्टों के अनुसार किशिदा भारत में अगले कुछ वर्षो के दौरान 42 अरब डॉलर के निवेश की घोषणा करेंगे। कोरोना महामारी के बाद अर्थव्यवस्था को नई रफ्तार देने के लिए यह निवेश बहुत उपयोगी होगा। किशिदा की यात्रा के तुरंत बाद सोमवार को ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बीच वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये शिखर वार्ता होगी। वास्तव में यह सारी कूटनीतिक कवायद क्वाड को पहले की तरह सक्रिय बनाए रखने के लिए है।
यूक्रेन संकट रूस का ही नहीं बल्कि अमेरिका के लिए भी दलदल साबित हो सकता है। रूस के लिए अफगानिस्तान और अमेरिका वियेतनाम की पुनरावृत्ति हो सकती है।

डॉ.दिलीप चौबे


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