भारतीय संविधान : पाठ और पुनर्पाठ बेहद जरूरी

Last Updated 26 Nov 2020 01:45:49 AM IST

भारत ने 26 जनवरी, 1950 को पहला गणतंत्र दिवस मनाया। भारतीय संविधान सभा की आखिरी बैठक (26 नवम्बर, 1949) में डॉ. आम्बेडकर के प्रस्ताव पर मतदान हुआ और संविधान पारित हो गया।


भारतीय संविधान : पाठ और पुनर्पाठ बेहद जरूरी

भारत के प्रत्येक जन को वाक्स्वातंत्र्य और विधि के समक्ष समता सहित सभी मौलिक अधिकार मिले। 1947 तक भारत में ब्रिटिश सत्ता थी। भारत परतंत्र था। 26 नवम्बर के दिन से अपना संविधान प्रवर्तन हुआ था। 26 नवम्बर का दिन सभी संवैधानिक संस्थाओं, राजनैतिक दलों और देशभक्तों के लिए गहन आत्म विश्लेषण का उत्सव है।  
संविधान राष्ट्र जीवन की गति का मुख्य दिक्सूचक है। भूमि, जन और शासन से ही राष्ट्र नहीं बनते। जाति, मजहब, राजनीति और क्षेत्रीय आग्रह समाज तोड़ते हैं, संस्कृति ही इन्हें जोड़ती है। भारतीय संविधान निर्माता सनातन सांस्कृतिक क्षमता से परिचित थे। उन्होंने संविधान की हस्तलिखित प्रति में सांस्कृतिक राष्ट्रभाव वाले 23 चित्र सम्मिलित किए। मुखपृष्ठ पर राम और कृष्ण तथा भाग 1 में सिंधु सभ्यता की स्मृति वाले मोहनजोदड़ो काल की मोहरों के चित्र हैं। भाग 2 नागरिकता वाले अंश में वैदिक काल के गुरुकुल आश्रम का दिव्य चित्र है। भाग 3-मौलिक अधिकार वाले पृष्ठ पर श्री राम की लंका विजय व भाग 4-राज्य के नीति निर्देशक तत्वों वाले पन्ने पर कृष्ण-अर्जुन उपदेश वाले चित्र हैं। भाग 5 में महात्मा बुद्ध, भाग 6 में स्वामी महावीर और भाग 7 में सम्राट अशोक के चित्र हैं। भाग 8 में गुप्त काल, भाग 9 में विक्रमादित्य, भाग 10 में नालंदा विविद्यालय, भाग 11 में उड़ीसा का स्थापत्य, भाग 12 में नटराज, भाग 13 में भगीरथ द्वारा गंगावतरण, भाग 14 में मुगलकालीन स्थापत्य, भाग 15 में शिवाजी और गुरु गोविन्द सिंह, भाग 16 में महारानी लक्ष्मीबाई, भाग 17 और 18 में क्रमश: गांधी जी की दांडी यात्रा और नोआखाली दंगों में शांति मार्च, भाग 19 में नेताजी सुभाष, भाग 20 में हिमालय, भाग 21 में रेगिस्तानी क्षेत्र व भाग 23 में लहराते हिंद महासागर की चित्रावलि है।

संविधान पारण के बाद अध्यक्ष राजेन्द्र प्रसाद ने कहा, ‘अब सदस्यों को संविधान की प्रतियों पर हस्ताक्षर करने हैं, एक हस्तलिखित अंग्रेजी की प्रति है, इस पर कलाकारों ने चित्र अंकित किए हैं, दूसरी छपी हुई अंग्रेजी व तीसरी हस्तलिखित हिंदी की।’ (संविधान सभा कार्यवाही खंड 12 पृष्ठ 4261) भारतीय सभ्यता, संस्कृति और इतिहास के छात्रों के लिए संविधान की चित्रमय प्रति प्रेरक है। संविधान मार्गदर्शी है, लेकिन राष्ट्र की समृद्धि संवैधानिक संस्थाओं पर आसीन महानुभावों पर निर्भर है।
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने संविधान सभा के आखिरी भाषण (26.11.1949) में कहा, ‘संविधान किसी बात के लिए उपबंध करे या न करे, देश का कल्याण उन व्यक्तियों पर निर्भर करेगा, जो देश पर शासन करेंगे।’ अपने आखिरी भाषण में डॉ. आम्बेडकर ने भी प्राचीन भारतीय परंपरा की याद दिलाते हुए कहा था, ‘एक समय था जब भारत गणराज्यों से सुसज्जित था। यह बात नहीं है कि भारत पहले संसदीय प्रक्रिया से अपरिचित था।’ यहां वैदिक काल से ही एक परिपूर्ण गण व्यवस्था थी। गणोश गणपति थे। प्राचीनतम ज्ञान अभिलेख ऋग्वेद में ‘गणांना त्वां गणपतिं’ आया है। मार्क्‍सवादी चिंतक डॉ. रामविलास शर्मा ने लिखा है, ‘गण पुराना शब्द है, यह पुरानी समाज व्यवस्था का द्योतक है। गण और जन ऋग्वेद में पारिभाषिक हो गए हैं।’ महाभारत युद्ध के बाद युधिष्ठिर ने भीष्म से आदर्श गणतंत्र का सूत्र पूछा। भीष्म ने (शांति पर्व: 107.14) बताया कि भेदभाव से ही गण नष्ट होते हैं। उन्हें संघबद्ध रहना चाहिए। गणतंत्र के लिए बाहरी की तुलना में आंतरिक संकट बड़ा होता है -‘आभ्यन्तरं रक्ष्यमसा बाह्यतो भयम्’-बाह्य उतना बड़ा नहीं। संविधान राष्ट्र का कारक है। संविधान निर्माताओं ने संसदीय जनतंत्र अपनाया है। अनेक संवैधानिक संस्थाओं का प्रावधान किया है। विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के मध्य शक्ति के पृथक्करण का सिद्धांत लागू है। निर्वाचन आयोग जैसी संवैधानिक संस्थाएं सारी दुनिया में प्रतिष्ठित हैं। संसद विधायी और संविधायी अधिकारों से लैस है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लोक सभा में प्रवेश के पहले दिन संसद भवन की सीढ़ियों पर साष्टांग प्रणाम किया था। यह प्रेरक और ऐतिहासिक है। संविधान निर्माताओं ने संसद को सविधान संशोधन का भी अधिकार दिया है। मोदी सरकार ने संविधान के अनुच्छेद-370 को हटाने की कार्यवाही पूरी कर ली है। इसे हटाना संविधान निर्माताओं का ही स्वप्न था। उन्होंने इसके शीषर्क में ‘अस्थायी उपबंध’ शब्द छोड़े थे। जम्मू कश्मीर की जनता इससे प्रसन्न है, लेकिन अलगाववादी शक्तियां अभी भी सक्रिय हैं। यही स्थिति सीएए (नागरिकता संशोधन कानून) की है। कुछ ताकतें खुल्ल्मखुल्ला इसका विरोध कर रही हैं। संसद में किसानों के हित में पारित कानूनों को लेकर भी कुछ सरकारें चुनौती दे रही हैं।  
भारतीय गणतंत्र लगातार विकसित हो रहा है। न्यायपालिका संविधान की जिम्मेदार संरक्षक है। हिंदुत्व की व्याख्या व नवीं अनुसूची के दुरुपयोग को रोकने सहित अनेक मसलों पर न्यायपीठ ने प्रशंसनीय फैसले किए हैं। मौलिक अधिकार सुरक्षित हैं। कृषि, विकास, गोवंश संवर्धन राज्य के नीति निर्देशक संवैधानिक तत्व हैं। महाभारतकार ने गणतंत्र की सभा समिति (संसदीय व्यवस्था) के सदस्य की अनिवार्य योग्यता बताई थी, ‘न न: स समितिं गच्छेत यश्च नो निर्वपेत्कृषिम’-‘जो खेती नहीं करता वह सभा में प्रवेश न करे।’ ऋग्वैदिक काल में ऋषि भी कृषि करते थे। कॉमन सिविल कोड नीति निर्देशक तत्व है। हिंदुत्व देश का प्राण तत्व है, लेकिन सांप्रदायिक कहा जाता है। अलगाववाद देशतोड़क हैं तो भी सेक्युलर। अल्पसंख्यकवाद की आंधी है, लेकिन संविधान और कानून में ‘अल्पसंख्यक’ शब्द की परिभाषा नहीं है। गहन आत्मचिंतन एकमेव विकल्प है। संविधान में देश के प्रत्येक नागरिक को मौलिक अधिकारों की प्रतिभूति है। लेकिन इसी के साथ संविधान के अनुच्छेद-51क में मूल कर्तव्यों की भी सूची है। मूल कर्तव्यों की सूची भारत के लोक जीवन को आनन्दित करने का दस्तावेज है। संविधान दिवस के अवसर पर इसका पाठ और पुनर्पाठ बहुत जरूरी है। संविधान की उद्देशिका स्मरणीय है। इसमें ‘हम भारत के लोग’ शब्द का प्रयोग ध्यान देने योग्य है। भारत की जनता के लिए किसी जाति, संप्रदाय या वर्ग शब्द का प्रयोग नहीं है। हम सबकी पहचान भारत है। ‘हम सब भारत के लोग’ हैं। संविधान भारत का राजधर्म है।

हृदय नारायण दीक्षित
उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष


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