संविधान दिवस : अप्रासंगिक कानूनों के खात्मे का दिवस बने

Last Updated 26 Nov 2020 01:42:32 AM IST

आज 26 नवम्बर है। देश के लिए यह दिन अत्यंत खास है। 1949 में आज ही के दिन संविधान सभा ने स्वयं के संविधान को स्वीकृत किया था।


संविधान दिवस : अप्रासंगिक कानूनों के खात्मे का दिवस बने

दो महीने बाद 26 जनवरी, 1950 से यह पूरे देश में लागू हो गया। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की पहल पर 1979 से संविधान सभा द्वारा नये संविधान को मंजूरी देने के इस अत्यंत खास दिन को देश में राष्ट्रीय कानून दिवस के रूप में मनाए जाने लगा। 2015 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गजट नोटिफिकेशन द्वारा संविधान दिवस मनाने की पहल की।

इससे पहले 2014 के आम चुनावों के दौरान उन्होंने अपनी जनसभाओं में कानून की किताब से पुराने और बेकार हो चुके कानूनों को समाप्त किए जाने की जरूरत को प्रमुखता दी थी। अपने पहले कार्यकाल में लगभग 2000 ऐसे कानूनों को समाप्त किया जो प्रचलन में नहीं रह गए थे। विदित हो कि लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में बदलते समय के साथ अप्रासंगिक हो गए या न्यायपूर्ण न समझे जाने वाले कानून को रद्द करने और उसकी जगह बेहतर कानून बनाने की मांग करने का अधिकार भी होता है। लेकिन यदि इस प्रश्न का जवाब देश के भीतर खोजने का प्रयास किया जाए तो अनिश्चितता एवं भ्रम की स्थिति देखने को मिलती है। ऐसे कई कानून जो अब अप्रासंगिक हो चुके हैं, कानून की किताब में आज भी मौजूद हैं।

कई कानून जो समय के साथ बदलने या खत्म हो जाने चाहिए थे, आज भी पुराने प्रारूप में ही लागू हैं। जरूरत के अनुसार कई विषयों के संदर्भ में नये कानून भी बन गए लेकिन संबंधित पुराने कानून समाप्त नहीं किए गए। आश्चर्य की बात है कि कई राज्य सरकारों को भी नहीं पता कि ऐसे कानून अस्तित्व में हैं, और उनके राज्य में लागू होते हैं। उदाहरण के लिए पंजाब विलेज एंड स्मॉल टाऊंस पेट्रोल एक्ट, 1918, जो दिल्ली में भी लागू होता है, के मुताबिक यहां के गांवों और कस्बों में स्थानीय वयस्क पुरुषों को रात में बारी-बारी पेट्रोलिंग करना आवश्यक है। ऐसा न करने पर जुर्माने का भी प्रावधान है। द मद्रास लाइव स्टॉक इम्प्रूवमेट एक्ट, 1940 के मुताबिक गाय का बछड़ा आगे चलकर बैल बनेगा अथवा सांड, यह तय करने का अधिकार पशुपालक को नहीं, बल्कि सरकार को है। सरकार द्वारा जारी लाइसेंस के अनुसार ही पशुपालक बछड़े को सांड या बैल के तौर पर अपने पास रख सकता है।

1916 में लागू ऐसा ही कानून है पंजाब मिलिट्री ट्रांसपोर्ट एक्ट। इसके तहत सेना को अधिकार है कि परिवहन के लिए राज्य के नागरिकों के जानवर, वाहन, नाव आदि वस्तुओं को जबरन कब्जे में ले सके। मद्रास गिफ्ट गुड्स एक्ट, 1961 के मुताबिक किसी व्यक्ति के पास वनस्पति तेल व दूध पाउडर की निर्धारित मात्रा से अधिक मात्रा पाए जाने पर उसके खिलाफ कार्रवाई का प्रावधान है।
किसी जनजाति विशेष के सभी लोगों को अपराधी मानते हुए उनके अधिकारों को सीमित करने वाला हैबिचुअल ऑफेंडर्स एक्ट हो या तांबे के पतले तारों को घर में रखने को अवैध मानने वाला द टेलीग्राफ एक्ट। तमाम उदाहरण हैं, जो या तो अब प्रयोग में नहीं हैं अथवा नये कानूनों के तहत उनकी विस्तृत व्याख्या की जा चुकी है। इसके बावजूद ऐसे कानून विधि की किताबों में जगह घेरे बैठे हैं, जिसका फायदा कोई संबंधित अधिकारी गलत ढंग से उठाना चाहे तो उठा सकता है। समय-समय पर सरकारों द्वारा ऐसे कानूनों के समापन को लेकर कदम उठाए भी गए हैं। ऐसे कानूनों के खात्मे की गंभीर शुरुआत वर्ष 2001 की भाजपा नीत एनडीए सरकार के दौरान देखने को मिली थी, जिसे बाद में यूपीए एक व दो ने भी जारी रखा था। लेकिन इस विषय को आम जन, विशेषज्ञों व नागरिक संगठनों के बीच बहस और शोध का मुद्दा बनाने का श्रेय प्रधानमंत्री मोदी को ही जाता है।

चूंकि देश में गैर-जरूरी कानूनों का मकड़जाल बेहद उलझा है। लिहाजा एक बार में सबको समाप्त करना मुश्किल काम है। इसलिए जरूरी है कि वर्ष में एक दिन विशेष रूप से निर्धारित हो जिस दिन कानून के निर्माता (कार्यपालिका), उसके संरक्षक (न्यायपालिका) व अनुपालन (व्यवस्थापिका) के जिम्मेदार लोग एक साथ बैठें और अप्रासंगिक एवं बेकार पड़े कानूनों के समापन के लिए कार्य करें। इस कार्य के लिए संविधान दिवस से बेहतर दिन कोई और नहीं हो सकता है। थिंकटैंक सेंटर फॉर सिविल सोसायटी द्वारा 26 नवम्बर अर्थात संविधान दिवस को ‘नेशनल रिपील लॉ डे’ के तौर पर मनाने के लिए कई वर्षो से अभियान चलाया जा रहा है, जिससे देश के प्रतिष्ठित कानूनिवद और संविधान विशेषज्ञों का समर्थन प्राप्त है।

अविनाश चंद्र
सेंटर फॉर सिविल सोसायटी में एसोसिएट डायरेक्टर


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