तस्वीरें: यादों में मौलाना डॉ. कल्बे सादिक़, 'ऐसा कहां से लाएं कि तुझ सा कहें जिसे'
लोकप्रिय शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे सादिक का लंबी बीमारी के बाद मंगलवार देर रात निधन हो गया। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) के वरिष्ठ उपाध्यक्ष व शिया धर्मगुरू(83) को 17 नवंबर को एरा लखनऊ मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (ईएलएमसीएच) में न्यूमोनिया की शिकायत के कारण भर्ती कराया गया था।
यादों में मौलाना डॉ. कल्बे सादिक़ |
आह! मौलाना कल्बे सादिक़
'ऐसा कहां से लाएं कि तुझ सा कहें जिसे'
लईक रिजवी
इक चराग और बुझा और चराग भी वो जिसकी लौ कयामत थी।
मौलाना डाक्टर कल्बे सादिक़ साहब (1939 - 2020) निरे मौलवी नहीं थे। आपने अपनी मजहबी सरगर्मियों को सामाजिक सरोकारों से जोड़ा। इल्म और भाईचारे का उजियारा फैलाया। जेहालत और नफरत के बढते अंधेरे में उनका अचानक यूं जाना इंसानियत के लिए एक बडा झटका है।
डाक्टर कल्बे सादिक़ मशहूर इल्मी मज़हबी परंपरा 'खानदान ए इज्तेहाद' के आलिमे बाअमल थे। एक सच्चे खरे इस्लामी चिंतक और बडे शिक्षाविद्।
आपने अपनी पूरी ज़िंदगी कौम के तालीमी पिछड़ेपन को दूर करने के लिए वक़्फ़ कर दी थी। हर तक़रीर और हर मजलिस में जेहालत और अशिक्षा के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए आवाम को प्रेरित करते रहे।
आपने सिर्फ़ ज़बान से ही तबलीग़ नहीं की बल्कि अमली तौर पर भी ख़िदमत करके नज़ीर भी क़ायम की । 1984 में 'तौहीदुल मुस्लेमीन ट्रस्ट'( TMT) क़ायम किया जिसकी मदद से न जाने कितने बच्चे-बच्चियां पढ़कर आज न सिर्फ कामयाब ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं बल्कि मुल्क और कौम की सेवा भी कर रहे हैं।
आपने लखनऊ में अंग्रेज़ी मीडियम यूनिटी कालेज क़ायम किया और सेकेंड शिफ्ट में बिल्कुल मुफ्त तालीम के लिये मिशन स्कूल बनाया। परदेसियों के लिए लखनऊ में रोशनी हॉस्टल कायम किया। अलीगढ़ में MU कॉलेज की तामीर कराई। टेक्निकल कोर्सेज के लिये इंडस्ट्रियल स्कूल बनाया और लखनऊ के काज़मैन में चैरिटेबल अस्पताल क़ायम किया। इमामबाड़े गुफरानमाब की जो आज खूबसूरत बिल्डिंग दिखाई दे रही है ये भी जनाब की ही मेहनतों का नतीजा है।
डॉक्टर कल्बे सादिक साहब को कौमी एकता बनाने बढाने के लिए भी याद किया जाएगा। आपने हिन्दू मुस्लिम और शिया सुन्नी इत्तेहाद के लिये हमेशा कोशिश की। मौलाना कल्बे सादिक़ साहब जो सबके साथ इत्तेहाद और मिलजुल कर क़ौम की तरक़्क़ी के लिये ज़िंदगी भर कोशिश करते रहे। ग़रीबो, बेवाओं और यतीमों के सरपरस्त और ख़ामोशी से उनके घर जाकर उनकी मदद करते।
आप अपनी बेपनाह सादगी, अख़लाक़, ख़िदमत और इंसानी हमदर्दी के लिए दुनिया भर में कद्र की निगाह से देखे जाते रहे हैं।
अरबी कहावत है मौतुल आलिम मौतुल आलम यानी आलिम की मौत एक दुनिया की मौत सरीखी है। डॉक्टर कल्बे सादिक़ की मौत हमें कहीं न कहीं इसी एहसास से दोचार करती है।
आह! डॉक्टर कल्बे सादिक....।।
'ऐसा कहां से लाएं कि तुझ सा कहें जिसे'
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