बैंकिंग सिस्टम : सख्त नियमों की दरकार
हाल ही में तमिलनाडु के प्राइवेट सेक्टर के लक्ष्मी विलास बैंक की विफलता ने एक बार फिर भारतीय बैंकिंग सिस्टम पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है।
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चूंकि देश के अधिकांश लोग अपनी जमा पूंजी बैंकों में ही रखते हैं, ऐसे में देश के करोड़ों लोगों के मन में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर बैंक में उनका धन कितना सुरक्षित है?
गौरतलब है कि लक्ष्मी विलास बैंक की आर्थिक हालात पिछले तीन साल से लगातार बिगड़ती जा रही थी और बैंक को लगातार घाटे का सामना करना पड़ रहा था। इतना ही नहीं एक उपयुक्त योजना के बगैर और बढ़ते नॉन परफॉर्मिग एसेट (एनपीए) के कारण बैंक का घाटा लगातार बढ़ता गया। लक्ष्मी विलास बैंक की मुश्किलें खासतौर से सितम्बर 2019 में उस समय से शुरू हो गई थीं, जब रिजर्व बैंक ने इंडिया बुल्स हाउसिंग फाइनेंस के साथ मर्जर के लक्ष्मी विलास बैंक के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। आरबीआई ने सितम्बर 2019 में लक्ष्मी विलास बैंक को प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन (पीसीए) फ्रेमवर्क में डाल दिया था। पीसीए फ्रेमवर्क में डाले जाने की वजह से बैंक ना तो नये कर्ज जारी कर सकता था और ना ही नई ब्रांच खोल सकता था। उल्लेखनीय है कि लक्ष्मी विलास बैंक में विफलता की घटना सामने आने के महज कुछ ही समय में केंद्र सरकार ने लक्ष्मी विलास बैंक पर एक महीने के लिए कई तरह की पाबंदियां लगा दी हैं। बैंक के ग्राहक अब 16 दिसम्बर तक बैंक से अधिकतम 25 हजार रुपये की ही निकासी कर सकेंगे।
रिजर्व बैंक ने लक्ष्मी विलास बैंक के निदेशक मंडल को भी हटा दिया है और टीएन मनोहरन को 30 दिनों के लिए इस बैंक का प्रशासक नियुक्त किया है। टी एन मनोहरन ने कहा कि बैंक के जमाकर्ताओं का पैसा पूरी तरह से सुरक्षित है और नियामक द्वारा तय समयसीमा के अंदर ही बैंक का विलय डीबीएस बैंक इंडिया के साथ हो जाएगा। स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि लक्ष्मी विलास बैंक पर छाए मौजूदा संकट ने इसी वर्ष 2020 में मुश्किल में फंसे यस बैंक के साथ-साथ पिछले साल सितम्बर 2019 में पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक में चल रहे कथित घोटाले की याद को भी ताजा कर दिया है। आरबीआई ने उस समय सख्त कदम उठाते हुए पीएमसी बैंक से धनराशि निकालने की सीमा निश्चित कर दी थी। शुरु आत में अकाउंट से 50 हजार रु पये नकद निकालने की सीमा लगाई गई थी, लेकिन बाद में इस सीमा को बढ़ाकर 1 लाख रुपये कर दिया गया था। सरकारी बैंक आईडीबीआई के मामले में विफलता की किसी घटना के सामने आने के पहले ही उसे भारतीय जीवन बीमा निगम के हाथ में सौंप दिया गया। यदि हम बैंकिंग और वित्तीय असफलता के इन सभी मामलों को देखें तो पाते हैं कि वित्तीय गड़बड़ी की स्थितियां लगभग एक जैसी ही हैं। इन सभी संस्थाओं की वित्तीय स्थिति खराब होती गई, इनके एनपीए बढ़ते गए। यद्यपि भारतीय रिजर्व बैंक ने समय-समय पर इनमें गवन्रेस के मुद्दों को भी उठाया, पर कोई उपयुक्त नियंत्रण नहीं हो सका।
इस तरह पिछले कुछ समय में जिन बैंकों और वित्तीय संस्थानों की नाकामी का सिलसिला देखने को मिला है; उनमें वित्तीय नियंत्रण तथा निगरानी की कमी सामने आई है। स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि इन्फ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज, पंजाब एंड महाराष्ट्र कोऑपरेटिव बैंक, दीवान हाउसिंग फाइनेंस कॉर्पोरेशन लिमिटेड, येस बैंक और अब लक्ष्मी विलास बैंक इन सभी के लिए आरबीआई की बैंकों और वित्तीय क्षेत्र की निगरानी की गुणवत्ता को लेकर सवाल उठाए गए हैं। यह चिंताजनक है कि पीएमसी बैंक के मामले में रिजर्व बैंक धोखाधड़ी का पता ही नहीं लगा सका तथा आईएलएंडएफएस, यस बैंक और लक्ष्मी विलास बैंक के मामले में रिजर्व बैंक के द्वारा लंबे समय तक समस्या को पनपने दिया गया। इतना ही नहीं यस बैंक मामले में तो प्रबंधन के पूंजी जुटाने के बार-बार किए जा रहे दावों पर भी रिजर्व बैंक के द्वारा उपयुक्त सवाल नहीं उठाए गए। निश्चित रूप से लक्ष्मी विलास बैंक की विफलता के बाद एक ओर लोगों को यह सोचना होगा कि वे अब अपने धन को बैंकों में किस तरह सुरक्षित रख सकते हैं और दूसरी ओर सरकार तथा रिजर्व बैंक को सोचना होगा कि बैंकों पर निगरानी किस तरह बढ़ाई जाए?
वस्तुत: सरकारी बैंकों में धन जमा करना प्राइवेट बैंकों की तुलना में ज्यादा सुरक्षित माना जाता है। चूंकि प्राइवेट बैंक पर मालिकाना हक निजी हाथों में होता है, अतएव अगर निजी बैंक डूबता है तो उसकी भरपाई के लिए वित्तीय संसाधन भी सीमित होते हैं, जबकि दूसरी और सरकारी बैंक सरकार के अधीन कार्यरत होते हैं। अतएव सरकारी बैंक डूबता है तो सरकार के पास असीमित वित्तीय संसाधन और विकल्प मौजूद होते हैं और सरकार जहां विफल बैंक को बचाने की पूरी कोशिश करती है वहीं बैंक डूबने की हालात में उसके घाटे की भरपाई के लिए भी तैयार खड़ी रहती है। इसके साथ-साथ लोगों के द्वारा एक से अधिक बैंक अकाउंट रखे जाने पर भी ध्यान देना चाहिए। सामान्यतया एक से ज्यादा बैंकों में अकाउंट रखना झंझट भरा काम माना जाता है, लेकिन पीएमसी बैंक और लक्ष्मी विलास बैंक जैसे उदाहरण को देखकर लगता है कि एक से ज्यादा बैंकों में बैंक अकाउंट रखना लाभप्रद साबित हो सकता है।
निसंदेह लक्ष्मी विलास बैंक की असफलता से रिजर्व बैंक की सालाना निगरानी पर भी सवाल उठे हैं, जिसके जरिए रिजर्व बैंक द्वारा सलाना जोखिम का पता लगाया जा सकता है। इसमें कोई दो मत नहीं कि आरबीआई के पास निजी क्षेत्र के बैंकों और वित्तीय संस्थानों की निगरानी के लिए पर्याप्त अधिकार हैं, लेकिन वह लक्ष्मी विकास बैंक के मामले में अपने अधिकारों का उपयोग नहीं कर पाया और ना ही समुचित निगरानी कर सका। हम उम्मीद करें कि आरबीआई के द्वारा अपने बैंकिंग निगरानी ढांचे की उपयुक्त समीक्षा की जाएगी और ऐसे नये कदम सुनिश्चित किए जाएंगे, जिससे बैंकिंग सेक्टर में लक्ष्मी विलास बैंक की विफलता जैसी घटनाएं न दोहराई जा सके।
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