भारतीय रिफाइनरी रूसी तेल के बिना काम चला सकती हैं, लेकिन बनाना होगा संतुलन: विशेषज्ञ
भारतीय रिफाइनरी तकनीकी रूप से रूस से कच्चे तेल की आपूर्ति के बिना काम चला सकती हैं, लेकिन इस बदलाव के लिए उन्हें बड़े आर्थिक और रणनीतिक संतुलन बनाने होंगे।
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विश्लेषकों ने कहा कि रूसी कच्चा तेल उच्च ‘डिस्टिलेट’ उत्पादन को बढ़ावा देता है। इसका अर्थ है कि कच्चे तेल के शोधन के दौरान बनने वाले पेट्रोल, डीजल और विमान ईंधन का हिस्सा अधिक होता है। भारत की रिफाइनरी खपत में रूसी कच्चे तेल की हिस्सेदारी 38 प्रतिशत तक है।
वैश्विक विश्लेषण फर्म केप्लर के अनुसार, रूसी कच्चे तेल को वैकल्पिक तेलों से बदलने से उत्पादन में बदलाव आएगा। इसके चलते डीजल और विमान ईंधन का उत्पादन कम होगा और अवशेष उत्पादन बढ़ जाएगा।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले हफ्ते भारत से अमेरिकी आयात पर अतिरिक्त 25 प्रतिशत शुल्क लगाने की घोषणा की थी। यह शुल्क रूस से कच्चे तेल का आयात करने के लिए दंड के रूप में है।
इससे भारत पर कुल अमेरिकी शुल्क बढ़कर 50 प्रतिशत हो गया है। ऐसे में रूस से तेल आयात रोकने या कम करने की चर्चा हो रही है।
केप्लर ने अपनी रिपोर्ट - 'भारतीय आयात पर अमेरिकी शुल्क: ऊर्जा बाजारों और व्यापार प्रवाह पर प्रभाव' में कहा, ''तकनीकी दृष्टि से भारतीय रिफाइनरी रूसी कच्चे तेल के बिना काम चला सकती हैं, लेकिन इस बदलाव में बड़े आर्थिक और रणनीतिक समझौते शामिल होंगे।''
रिपोर्ट के मुताबिक, भारी छूट और भारत की रिफाइनरी प्रणालियों के अनुकूल होने के कारण रूसी कच्चे तेल के आयात में वृद्धि हुई।
रूसी कच्चा तेल उच्च डिस्टिलेट उत्पाद (डीजल और विमान ईंधन) का समर्थन करता है और भारत के उन्नत शोधन बुनियादी ढांचे के लिए उपयुक्त है। इसने सरकारी और निजी दोनों रिफाइनरियों को मज़बूत मार्जिन बनाए रखने में मदद की।
केप्लर ने कहा कि इसके उलट जाने पर मार्जिन पर अधिक प्रीमियम नहीं होगा। इसके अलावा अगर अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें बढ़ती हैं, तो इससे भी पेट्रोलियम विपणन कंपनियों पर दबाव बढ़ेगा।
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