कांग्रेस : खुद को कर रही हर दिन कमजोर

Last Updated 27 Nov 2020 03:30:14 AM IST

बिहार चुनाव में तेजस्वी यादव की अगुवाई वाले महागठबंधन की हार के बाद से कांग्रेस पार्टी में घमासान मचा हुआ है।


कांग्रेस : खुद को कर रही हर दिन कमजोर

पहले कपिल सिब्बल ने मीडिया के जरिए पार्टी के नेतृत्व को आईना दिखाया और उसके बाद गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस की फाइव स्टार कल्चर पर सवाल उठाए। इससे साफ हो गया कि कांग्रेस के भीतर ओल्ड गार्ड वर्सेस न्यू गार्ड की लड़ाई अभी जारी है। राहुल गांधी की पार्टी के अध्यक्ष के तौर पर दोबारा ताजपोशी की तैयारी कर रहीं सोनिया गांधी के लिए पार्टी के अंदरूनी घमासान को थामना बड़ी चुनौती होगी।
जिस रोज बिहार चुनाव के नतीजे आए थे, उसी रोज से सवाल उठने लगे थे कि क्या कांग्रेस ने तेजस्वी यादव की बिहार का मुख्यमंत्री बनने की उम्मीदों पर पानी फिरवा दिया। राजद नेता शिवानंद तिवारी ने दो टूक कह दिया कि कांग्रेस का प्रदशर्न इतना खराब न रहता तो महागठबंधन की ही सरकार बनती और तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बनते। राजद के ताने कांग्रेस को इतने न अखरे होंगे, जितने सिब्बल और आजाद के ताने चुभ रहे हैं। सिब्बल और आजाद पार्टी के सबसे वफादार और संकट मोचक नेताओं में गिने जाते रहे हैं। इसके बावजूद जब इनके साथ-साथ तेईस बड़े नेताओं ने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिख कर नेतृत्व का मसला जल्दी हल करने की सलाह दी थी, तो भी यह मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया जाना इस बात का इशारा था कि राहुल के खिलाफ कही जाने वाली या दिखाई पड़ने वाली कोई बात कांग्रेस आला कमान को बर्दाश्त नहीं है। रणदीप सुरजेवाला, अधीर रंजन चौधरी, पार्टी प्रवक्ताओं और यूथ कांग्रेस के नौसिखिए नेताओं का सिब्बल और आजाद को नसीहतें देने लगना इस बात की तस्दीक करता है कि कांग्रेस के भीतर खेमेबाजी की बात केवल मीडिया के दिमाग की उपज भर नहीं है।

इसके उलट भाजपा ने बिहार चुनाव की विजय के दिन ही बंगाल के चुनाव अभियान का ऐलान कर दिया। इधर पीएम नरेंद्र मोदी ने बिहार की जीत पर कार्यकर्ताओं का अभिनंदन करते हुए बंगाल चुनाव की तैयारी की तरफ इशारा किया, उधर गृह मंत्री अमित शाह बंगाल पहुंच भी गए। बंगाल में चुनाव अगले साल है। अभी से पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृह मंत्री अमित शाह के ताबड़-तोड़ दौरों का कार्यक्रम इस बात का सुबूत है कि पार्टी बंगाल को लेकर कितनी गंभीर है। तमिलनाडु में भी अमित शाह ने चुनावी तैयारी के संकेत दे दिए और हैदराबाद के म्यूनिसिपल चुनाव में भी प्रकाश जावड़ेकर को भेज कर भाजपा जता रही है कि किसी भी चुनाव को लेकर वो कितनी संजीदा है।   
कांग्रेस ने सिर्फ  बिहार का चुनाव नहीं गंवाया, बल्कि अलग-अलग राज्यों में हुए विधान सभा और लोक सभा उपचुनावों में भी मुंह की खाई है। खास तौर पर मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश, जिनमें से मध्य प्रदेश की ज्यादातर सीटें उनके अपने विधायकों के टूटने से दोबारा चुनाव में आई थीं, कांग्रेस ने गंवा दीं। उत्तर प्रदेश में हाथरस कांड पर हुई जोरदार सियासत और राहुल-प्रियंका के दिन भर के हंगामे के बाद भी कांग्रेस यूपी में एक भी सीट योगी आदित्यनाथ से छीन पाने में नाकाम रही तो पार्टी को गंभीरता से अपनी रणनीति और नेतृत्व के सवाल पर सोचना चाहिए था। लेकिन कांग्रेस प्रवक्ता टीवी चैनलों पर बैठ कर कहते नजर आए कि उपचुनाव तो सत्ताधारी पार्टी ही जीतती है!
राजस्थान में कांग्रेस ने अपनी अंदरूनी लड़ाई पर किसी तरह काबू पाया है। यह कांग्रेस नेतृत्व का कमाल कम और पार्टी के प्रति पायलट परिवार की आस्था का असर ज्यादा था कि सचिन पायलट, ज्योतिरादित्य सिंधिया की राह पर नहीं चले। पर अशोक गहलोत और पायलट के बीच के मौजूदा समीकरण के बीच राजस्थान में कांग्रेस कब तक अपना किला बचा पाएगी, यह बड़ा सवाल है। पंजाब में अकाली दल के साथ छोड़ जाने के बाद भाजपा अकेले विधान सभा चुनाव लड़ने की तैयारी में है। आम आदमी पार्टी पंजाब में पहले से अपना वजूद बना चुकी है, ऐसे में चौतरफा मुकाबले में कांग्रेस और एंटी इनकम्बेंसी के बीच अमरिंदर सिंह अकेले दम पर पार्टी का झंडा कितना संभाल पाएंगे, देखने वाली बात होगी।
मतलब यह कि भाजपा जहां एनडीए के साथी एक के बाद एक छितराने के बावजूद एकजुट और आक्रामक होकर लड़ाई की तैयारी कर रहे हैं, वहीं कांग्रेस मोदी विरोधियों का दामन थाम कर अपने अंदरूनी सवालों से मुंह छुपाने में लगी है। यह रवैया कांग्रेस को कितना कमजोर कर रहा है, इसका इल्म सिब्बल और आजाद जैसे नेताओं को तो हो गया है, राहुल और उनके सलाहकारों को शायद नहीं।

प्रमिला दीक्षित


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