वैश्विकी : तेल अवीव के रेड कार्पेट पर मोदी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस्रइल जा कर भारत के वैश्विक संबंधों में एक नया इतिहास रचने जा रहे हैं.
![]() प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (फाइल फोटो) |
इसलिए कि 25 साल पहले भारत और इस्रइल से राजनयिक संबंध स्थापित होने के बावजूद आज तक हमारे किसी भी प्रधानमंत्री ने तेल अवीव की यात्रा नहीं की है.
अलबत्ता, राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी दो साल पहले वहां जा चुके हैं. पर किसी प्रधानमंत्री की यह पहली यात्रा होगी. यही वजह है कि इस्रइल ने वहां ‘दुनिया के सबसे ताकतवर प्रधानमंत्री’ मोदी के स्वागत में लालकालीन पहले से बिछा रखा है. उनसे मिलकर दोस्ती और मजबूत करने के लिए इस्रइली पीएम बेंजामिन नेतन्याहू बेसब्र हो रहे हैं.
हालांकि भारत के लिए इस्रइल से संबंध और प्रधानमंत्री के वहां जाने का फैसला आसान नहीं रहा है. इसमें दशकों लगे हैं. फिलिस्तीन के सरोकारों को नैतिक समर्थन एक दुविधा पैदा करता था. हालांकि इस्रइल की आत्मनिर्भरता और प्रतिकूलताओं के बीच अपने को संभालने रखने, रक्षा, प्रौद्योगिकी और कृषि क्षेत्र में अपने को सिरमौर बनाने की वजह से भारत के लिए उसकी अस्पृश्यता टिकाऊ नहीं रही.
यानी भारत के लिए वह इस कदर आवश्यक हो गया कि तने हुए संतुलन के साथ उससे हाथ मिलाना ही पड़ा. इसके पहले भारत परम्परागत रूप से अरब देशों और ईरान, जिन पर तेल की अत्यधिक निर्भरता थी और अपनी 14 करोड़ मुस्लिम आबादी की भावनाओं का भी ख्याल था. लेकिन मोदी ने इस पर्दे को हटा दिया है. हालांकि अब भी वह रमल्ला नहीं जा रहे हैं, फिलिस्तीनी भावनाओं के आहत न होने का ख्याल रखते हुए. इसके बावजूद मोदी की यह यात्रा विवादों से परे नहीं है. भारतीय मुस्लिम उन्हें फिलिस्तीनी समर्थन को तिलांजलि देना मान रहे हैं.
हालांकि बदलते वैश्विक तकाजों को देखते हुए कोई भी देश किसी खास विचारधाराओं में कैद नहीं रह सकता. और जब भारत का मसले के शांतिपूर्ण हल के प्रति समर्थन है तो यह संतुलन साधना और भी आसान हो जाता है. इसलिए फिलिस्तीन और इस्रइल की अलग अहमियत है.
हालांकि यह माना जा रहा है कि मोदी के तेल अवीव दौरे का इतना वैष्णवी इरादा नहीं है. मोदी का वहां जाना अंतरराष्ट्रीय संबंधों में एक बड़ा बदलाव लाएगा. भारत को अमेरिका-इस्रइल के शिविर में जाना माना जाएगा. लेकिन यह किसी कैम्प से जुड़ने का मसला नहीं है. यह भारत के रणनीतिक मानदंडों के लिहाज से उसकी जरूरत के चलते है. मोदी के तीन दिन वहां रहने के दौरान बहुत सारे बदलाव होने हैं. करारों की फेहरिस्त से यह जाहिर होता है. मोदी अपने ‘मेक इन इंडिया’ के बैनर के तहत मिसाइलों, ड्रोन और रडार प्रणाली के उत्पादन और बिपणन का एक समझौता करेंगे.
साइबर सुरक्षा और संचार प्रणाली भी मुहैया कराये जाने की बात है. भारत की नजर इस्रइल के अत्याधुनिक सैन्य कार्यक्रमों की महारतता से फायदा उठाना है, जिसके चलते वह आतंकवादी हमलों के बीच सलामत रहता आया है. भारत की ताजा परिस्थितियों के लिए यह आवश्यक है. चीन और पाकिस्तान से मिल रही ताजा चुनौतियों तथा खेती की पैदावार को बढ़ती आबादी की जरूरतों के मुताबिक करने की उसकी परिस्थितियों के मद्देनजर इस्रइल का महत्त्व है.
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