सड़क हादसे: असुरक्षित सड़कें हैं जान की दुश्मन

Last Updated 30 Sep 2025 03:20:21 PM IST

देश में जनसंख्या वृद्धि केवल जनगणना के आंकड़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि रोजमर्रा के जीवन की हर सड़क, हर मोड़ और हर फुटपाथ पर सुरक्षित एंव शांतिपूर्ण जीवन में खौफ पैदा करती दिखती है।


शहरों में इंसान एवं वाहन बढ़ते गए, सड़कों पर जगह घटती गई। नतीजा यह कि पैदल चलने वालों के लिए कभी सुरक्षित माने जाने वाले फुटपाथ आज खड़े वाहनों, दुकानों के विस्तार और अवैध कब्जों से घिर चुके हैं। एक समय था जब फुटपाथ पैदल यात्रियों के लिए सुरक्षित, सुविधाजनक और निर्बाध रास्ता हुआ करता था। आमजनों को अधिकार में मिला सड़क के किनारे वाला फुटपाथ स्कूल जाते बच्चों, पैदल चलते बुर्जगों के लिए सुरक्षित मार्ग था। दिव्यांगजन भी बगैर डरे आत्मविश्वास के साथ सुरक्षित चल पाते थे। लेकिन अब वही फुटपाथ एंव पार्किग स्थल अतिक्रमण का शिकार हो चुके हैं। 

हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सहित राज्य सरकारों से स्पष्ट कहा है कि नागरिकों, विशेष रूप से दिव्यांगजन और बुजुगरे के लिए सुरक्षित फुटपाथ उपलब्ध कराना सरकारों की नैतिक और संवैधानिक जिम्मेदारी है। अदालत ने चार सप्ताह के भीतर आवश्यक कदम उठाने का आदेश दिया है। यह आदेश अब केवल एक प्रशासनिक औपचारिकता नहीं, बल्कि एक चेतावनी भी है कि यदि सरकार और स्थानीय निकाय समय पर कदम नहीं उठाते, तो सड़क सुरक्षा के संकट और गंभीर होंगे। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार वर्ष 2023 में देशभर में पैदल चलते हुए 35,203 लोगों की सड़क दुर्घटनाओं में मौत हुई, जबकि 54,544 लोग घायल हुए। यह आंकड़ा सड़क हादसों में कुल मौतों का 20.4% है।

प्रत्येक पांच सड़क दुर्घटना मृतकों में से एक पैदल यात्री है। दिल्ली में वर्ष 2025 के प्रारंभिक चार महीनों में सड़क हादसों में 184 लोगों की जान गई है। यानी प्रत्येक माह औसतन 46 लोगों की पैदल चलने के दौरान मौत हुई है। दिल्ली यातायात पुलिस मानती है कि सड़क किनारे रेहड़ी-पटरी एवं खड़े वाहनों के अतिक्रमण से राजधानी की अस्सी फीसद सड़कें प्रभावित है। यह आंकड़े संकेत हैं कि हमारे शहर और कस्बे पैदल चलने के लिए सुरक्षित रहने के बजाए दिन-ब-दिन खतरनाक होते जा रहे हैं। पिछले वर्षो में ऐसी अनेक घटनाएं हुई है, जब स्कूल बस का इंतजार कर रहे बच्चों को तेज रफ्तार वाहनों ने रौंदा है।

वर्ष 2023 में ही सड़क हादसों में 2,352 बच्चों ने अपनी जान गंवाई। इससे भी दर्दनाक यह कि सड़क पर बने गड्ढों के कारण 2,161 लोग मारे गए।  गड्ढा भरना कोई तकनीकी विशेषज्ञों की आवश्यकता नहीं मांगता है, इसे स्थानीय निकाय का सफाई कर्मचारी भी आसानी से संपन्न करा सकता है, लेकिन हमारे देश में पैचवर्क श्रेणी का कार्य भी फाइलों में एक टेबल से दूसरे टेबल का सफर करता एक लंबित कार्य बन जाता है। सड़क सुरक्षा में यातायात पुलिस सहित नगर निगम, नगर पालिका, विकास प्राधिकरण, यातायात प्रबंधन विभाग और नागरिकों, सभी की साझा जिम्मेदारी है।

स्थानीय प्रशासन को अतिक्रमण हटाने, पार्किग व्यवस्था सुधारने और फुटपाथ की मरम्मत की जिम्मेदारी प्रशासनिक कार्य बंटवारे में सौंपी गई है। यातायात पुलिस को पैदल यात्रियों के लिए सुरक्षित जेब्रा क्रॉसिंग, यातायात सिग्नल और अंडरपास की व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिए। नागरिकों को भी स्वयं के कर्तव्यों को समझने की अवश्यकता है कि फुटपाथ पर गाड़ी खड़ी करना या दुकान फैलाना दूसरों के जीवन को संकट में डालना है। बैंक, मॉल, अस्पताल और प्रतिष्ठानों को अपने ग्राहकों को पार्किग सुविधा उपलब्ध कराना व्यपारिक जिम्मेदारी के साथ कानूनन आवश्यक है। लेकिन स्थानीय प्रशासनिक व्यवस्था इतनी अधिक लाफरवाह हो चुकी है कि पार्किग अभाव में भी संस्थाओं को संचालन की आसान अनुमति दे दी जाती है, जिसमें गाड़ियां सड़कों और टपाथों पर खड़ी कर दी जाती हैं।

आवासीय क्षेत्रों में वह रहवासी भी बड़ी गाड़ियां खरीदने में परहेज नहीं करते हैं जिन पर पार्किंग सुविधा नहीं है, परिणामस्वरूप वाहन सड़क पर खड़े किए जाते हैं। जिसके कारण आपातकालीन सेवाएं एंबुलेंस और अग्निशमन वाहन भी समय पर आसानी से नहीं गुजर पाते है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि जब बड़े राजमार्ग बनाने की बात की जा रही है, लेकिन देश में पैदल राहगीरों के लिए सडक किनारे फुटपाथ सुरक्षित नहीं है। यह देश में गंभीर चिंता का विषय होना चहिए। मोटर वाहन अधिनियम 1988 में भी पैदल यात्रियों को सड़क क्रॉसिंग, फुटपाथ और ट्रैफिक सिग्नल जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराना अनिवार्य माना गया है, लेकिन इसे सिर्फ  किताबों तक ही सीमित माना जा रहा है।

पैदल राहगीरों के दुर्घटनाग्रस्त होने पर इलाज सहायता का प्रावधान भी अदालत के हस्तक्षेप के बाद ही संभव हो सका है। अगर आज हमने फुटपाथ और सड़क सुरक्षा पर ध्यान नहीं दिया, तो आने वाले समय में शहरों में पैदल चलना भी असंभव हो जाएगा। सुप्रीम कोर्ट का दिशा-र्निदेश महत्त्वपूर्ण कदम है, सुरक्षित फुटपाथ और व्यवस्थित सड़कें केवल यातायात सुधार का हिस्सा नहीं, बल्कि हर नागरिक के जीवन के अधिकार का सम्मान भी है।

विनोद के. शाह


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