इटावा लायन सफारी : वन्यजीव संरक्षण का प्रतीक
जहां एक तरफ़ औद्योगीकरण के नाम पर देा भर में अंधाधुंध जंगल काटे जा रहे हैं, वहीं ऐसे प्रयास बहुत सराहनीय हैं जो हरित क्षेत्र को बढ़ाने की दिशा में किए गए हैं।
![]() इटावा लायन सफारी : वन्यजीव संरक्षण का प्रतीक |
पिछले हफ्ते मैं पहली बार पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इटावा नगर के बाहर स्थित ‘लायन सफारी’ देखने गया। इत्तेफाक ही है कि दो महीने पहले ही मैंने अफ्रीका के केन्या में स्थित ‘मसाई मारा वन्य अभयारण्य’ का दौरा किया था। करीब 1.5 लाख हेक्टेयर में फैला ‘सवाना ग्रासलैंड’ हजारों तरह के वन्य जीवों के मुक्त विचरण के कारण विप्रसिद्ध है। वहां मैंने एक खुली जीप में बैठ कर 3 मीटर दूर बैठे बब्बर शेर और शेरनियों को देखने का रोमांचकारी अनुभव हासिल किया। मुझे नहीं पता था कि उत्तर प्रदेश में भी एक विशाल सरकारी पार्क है, जहां बब्बर शेर और शेरनियां और तमाम दूसरे ¨हसक पशु खुलेआम विचरण करते हैं। शायद आपने भी कभी इटावा के ‘लायन सफारी’ का नाम नहीं सुना होगा।
इटावा का यह लायन सफारी (जिसे अब इटावा सफारी पार्क के नाम से जाना जाता है) मसाई मारा के स्तर का तो नहीं है, पर इसकी अनेक विशेषताएं इसे मसाई मारा के अभयारण्य से ज्यादा आकषर्क बनाती हैं। जहां सवाना ग्रासलैंड में पेड़ों का नितांत अभाव है और पचासों मील तक सपाट मैदान है, वहीं इटावा का लायन सफारी बीहड़ क्षेत्र में बसा है। इसमें सैकड़ों प्रजाति के बड़े-बड़े सघन वृक्ष लगे हैं। इसके चारों ओर चंबल नदी की घाटी की तरह मिट्टी के कच्चे पहाड़ हैं जिनके पास से यमुना नदी बहती है। यह न केवल एशिया के सबसे बड़े ड्राइव-थ्रू सफारी पार्को में से एक है, बल्कि एशियाई शेरों के संरक्षण का जीवंत केंद्र भी है।
इटावा लायन सफारी की अवधारणा 2006 में ही प्रस्तावित हो चुकी थी, लेकिन इसका निर्माण 2012-13 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार के दौरान शुरू हुआ। यह परियोजना उत्तर प्रदेश वन विभाग के सामाजिक वानिकी प्रभाग इटावा के तहत ‘फिशर फॉरेस्ट’ क्षेत्र में विकसित की गई जो इटावा शहर से मात्र 5 किमी. दूर इटावा-ग्वालियर रोड पर स्थित है। फिशर फॉरेस्ट का अपना ऐतिहासिक महत्त्व है। 1884 में इटावा के तत्कालीन जिला प्रशासक जे.एफ. फिशर ने स्थानीय जमींदारों को मना कर इस क्षेत्र में वनरोपण की शुरुआत की थी, जो राज्य का सबसे पुराना वन क्षेत्र माना जाता है। यह निर्माण कार्य उप्र. वन विभाग की निगरानी में हुआ जिसे केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण की मंजूरी मिली। परियोजना को स्पेनिश आर्किटेक्ट फ्रैंक बिडल ने डिजाइन किया।
यह सफारी पार्क कुल 350 हेक्टेयर में फैला हुआ है, जिसकी परिधि लगभग 8 किमी. लंबी है। इसमें शेर ब्रिडिंग सेंटर के लिए 2 हेक्टेयर क्षेत्र आरक्षित है, जहां 4 ब्रिडिंग सेल हैं। सफारी के विभिन्न जोन लायन सफारी, डियर सफारी, एंटीलोप सफारी, बियर सफारी और लेर्पड सफारी। इसका बड़ा हिस्सा आरक्षित वन क्षेत्र के रूप में विकसित किया गया है। यहां पंचवटी वृक्षों (बरगद, आंवला, अशोक, बेल और पीपल) की प्रजातियों से भरा हरित आवरण है। पूरा क्षेत्र 7800 मीटर लंबी बफर बॉर्डर वॉल से सुरक्षित है, जो वन्यजीवों को बाहरी खतरों से बचाता है। 2014 में गुजरात के चिड़ियाघरों से 8 शेरों को यहां लाया गया जिनमें से कुछ कुत्ते की बीमारी (कैनाइन डिस्टेंपर) से प्रभावित हुए लेकिन अमेरिका से आयातित वैक्सीन के बाद अब यहां 19 एशियाई शेर (7 नर और 12 मादा) हैं। पार्क में 247 प्रजातियों के पक्षी, 17 स्तनधारी प्रजातियां और 10 सरीसृप प्रजातियां भी हैं।
यह सफारी पार्क जनता के लिए 24 नवम्बर, 2019 से खुला। लायन सेगमेंट को अंतिम चरण में जोड़ा गया। आज यह उप्र का एकमात्र मल्टीपल सफारी पार्क है, जो एशियाई शेर जैसी लुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। शेर ब्रिडिंग सेंटर न केवल प्रजनन को बढ़ावा देता है, बल्कि आनुवंशिक विविधता को बनाए रखने में भी सहायक है। पर्यावरणीय दृष्टि से पार्क जलवायु परिवर्तन के दौर में जैव विविधता के संरक्षण का प्रतीक है। यहां आने वाले पर्यटक न केवल शेरों को उनके प्राकृतिक वातावरण में देख सकते हैं, बल्कि 4डी थिएटर के माध्यम से वन्यजीवों के करीब महसूस भी कर सकते हैं।
सवाल है कि इसका रखरखाव और विकास कैसे सुनिश्चित हो ताकि यह प्रमुख पर्यटन स्थल बने। पार्क की डिजिटल बुकिंग सिस्टम को मजबूत किया जाना, इको-फ्रेंडली आवास सुविधाएं बढ़ाना और स्थानीय समुदायों को रोजगार से जोड़ने की जरूरत है। सौर ऊर्जा के उपयोग, जो अभी कम है, को बढ़ाकर इसे ग्रीन टूरिज्म मॉडल बनाया जा सकता है। चंबल नदी के निकट होने से नेशनल चंबल सैंक्चुअरी के साथ इंटीग्रेटेड टूर पैकेज विकसित किए जाएं। इस पार्क का बजट आवंटन बढ़ाया जाए तो यह न केवल राष्ट्रीय, बल्कि अंतरराष्ट्रीय पर्यटन मानचित्र पर भी चमकेगा। पर्यटक बढ़ाने के लिए सोशल मीडिया कैंपेन और स्कूलों के लिए एजुकेशनल टूर्स आयोजित किए जाएं।
गौरतलब है कि एशियाई शेर, जो गिर वन (गुजरात) तक सीमित हैं, भारत के प्रतीक हैं। यहां आकर हम अपनी जैव विविधता की जिम्मेदारी समझते हैं। बच्चे और युवा वन्यजीव संरक्षण के महत्त्व को सीख सकते हैं, जो आज के पर्यावरण संकट के समय में आवश्यक है। पर्यटन के चलते इटावा जैसे छोटे शहरों में रोजगार सृजन होता है, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करता है। आगरा (ताज महल) से मात्र 2 घंटे और लखनऊ से 3 घंटे की दूरी पर स्थित होने से यह एक्सेसिबल है। यह अनूठा अनुभव प्रदान करता है, अपनी कार से शेरों को नजदीक से देखना जो अजायब घर की कैद से अलग है, यह हमें प्रकृति से जोड़ता है। भारतीयों को यहां आकर गर्व महसूस करना चाहिए कि हमारा देश ऐसे प्रयास कर रहा है, जो वैश्विक स्तर पर वन्यजीव संरक्षण में योगदान दे रहा है।
इटावा लायन सफारी केवल पर्यटन स्थल नहीं, बल्कि संरक्षण, शिक्षा और सतत विकास का प्रतीक है। सरकार, वन विभाग और नागरिकों के संयुक्त प्रयासों से इसे और समृद्ध बनाया जाए। हर भारतीय को कम से कम एक बार यहां आना चाहिए प्रकृति की पुकार सुनने के लिए, अपनी जड़ों से जुड़ने के लिए।
(लेख में व्यक्त विचार निजी हैं)
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