आई लव मोहम्मद का नारा : दिखती है हिंसा की साजिश
अचानक उत्तर प्रदेश से निकलकर देश के अलग-अलग शहरों में ‘आई लव मोहम्मद’ के प्ले कार्ड, बैनर लगने लगे और सैकड़ों की संख्या में लोग उग्र प्रदर्शन करते चले गए।
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समझना कठिन था कि आखिर ऐसा हुआ क्या है? दो-तीनों के अंदर पूरे देश में डर पैदा करने वाली तस्वीर को हरने लगी।
कई शहरों से हिंसा की खबरें आने लगी और बरेली इसमें शीर्ष पर था। अंतत: बरेली के साथ अन्य शहरों में साफ दिख रहे मजहबी हिंसा व आगजनी के खतरों से प्रदेश को बचाने के लिए पुलिस ने उस मौलाना तौकीर राजा को गिरफ्तार किया, जिसे इस बात का गुमान था कि वह इस्लाम के नाम पर कुछ भी करेगा प्रशासन उसे छू नहीं सकती। पुलिस ने वैसे युवाओं को भी काफी संख्या में उठाया, जो पुलिस से लड़ रहे थे, बैरिकेड तोड़ रहे थे, पत्थरबाजी कर रहे थे या उन तरीकों से उन्मादी हिंसक मशीन बने हुए थे।
भारत में किसी को भी आस्था के साथ जीने का अधिकार है। पैगंबर मोहम्मद साहब के प्रति किसी तरह का अपमान कानून की दृष्टि में अपराध होगा और सजा मिलेगी। किंतु ये प्रदशर्न तभी जायज होते जब किसी मुसलमान को मोहम्मद साहब का सम्मान करने या प्यार का इजहार करने से रोका गया होता। ऐसा वातावरण बनाया गया मानो उत्तर प्रदेश के कानपुर में आई लव मोहम्मद कहने के विरु द्ध प्राथमिकी दर्ज हुई हो, पुलिस कार्रवाई कर रही हो।
क्या ऐसा कुछ हुआ? ऐसा हुआ ही नहीं। तूफान खड़ा किए जाने के बाद कानपुर के तीन सपा विधायक कानपुर पुलिस आयुक्त से मिले पूरा रिकार्ड देखा और स्पष्ट बयान दिया। एक सपा विधायक हसन रूमी ने कहा कि मुकदमा ‘आई लव मोहम्मद’ का बैनर लगाए जाने को लेकर नहीं हुआ है। समाज में भ्रांति पैदा करने की कोशिश की जा रही है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि निर्दोष लोगों को आरोपी बनाया गया है और मुकदमे वापस लिये जाने चाहिए।
दूसरे सपा विधायक अमिताभ बाजपेयी ने कहा कि कुछ लोग पेशेवर बवाली हैं, जिनका काम ही समाज में भ्रांति पैदा कर बवाल करना है। ऐसे लोगों को चिह्नित कर कार्रवाई की जानी चाहिए। कानपुर में कम और कानपुर से बाहर और दूसरे देशों में विरोध हो रहा है। पेशेवर उन्मादी लोग चाहे बारावफात हो या दीपावली, उसमें उन्माद फैलाते हैं। विधायक नसीम सोलंकी ने कहा कि चार सितम्बर को बारावफात जुलूस को लेकर पुलिस को कुछ भ्रांतियां हुई।
‘आई लव मोहम्मद’ के खिलाफ कोई एफआइआर नहीं हुई। दूसरे दिन कुछ विवाद को लेकर एफआइआर हुई है। उन्होंने भी मुकदमा वापस लेकर विवाद को समाप्त करने की अपील की। पुलिस आयुक्त ने स्पष्ट किया कि ‘आइ लव मोहम्मद’ पर न मुकदमा है न था और न कोई लिख सकता है। प्राथमिकी में केवल विवरण में जिक्र इसलिए है कि वादी ने शिकायत में उल्लेख किया है। जरा सोचिए , ये कौन लोग हैं जो मजहब के नाम पर बार-बार पूरे देश को हिंसा की आग में झोंकने पर उतारू हो जाते हैं। घटना के बारे में जितनी जानकारी है उसके अनुसार चार सितम्बर को रावतपुर के सैय्यदनगर में बारावफात पर एक गेट परंपरागत रास्ते से अलग लगाया गया और इसी पर ‘आइ लव मोहम्मद’ लिखा लगा था।
इसका विरोध हुआ तो लगाने वाले आगे और दबंगई करने लगे। पुलिस ने मामला शांत करने की कोशिश की। ऐसा लगा भी कि शांत हो गया है। दूसरे दिन इसी स्थान पर बरावफात जुलूस के दौरान भंडारे का एक बैनर फाड़ा गया। एक धर्म के विरुद्ध नारा लगाने का भी आरोप हिन्दुओं ने लगाया है। ऐसी स्थिति पैदा कर दी गई कि पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा। तहरीर में साफ लिखा है कि मुकदमा परंपरा से हटकर बिना अनुमति गेट लगाने को लेकर किया गया है।
जरा सोचिए, हुआ कुछ और जो हुआ नहीं उसके आधार पर उत्तर प्रदेश और देश में सांप्रदायिक आग लगाने की कोशिश करने वाले कौन हो सकते हैं? क्या कोई मजहब इस तरीके से झूठ बोलकर लोगों को हिंसा के लिए भड़काने, उत्तेजना पैदा करने की अनुमति देता है? अगर नहीं देता है तो ये लोग इस्लाम के मानने वाले हैं या उसके दुश्मन? असदुद्दीन ओवैसी बार-बार आग लगाने वाला बयान दे रहे हैं कि नबी से मोहब्बत को रोका जाएगा तो एक-एक मुसलमान कुर्बान हो जाएगा। किसे रोका गया, कहां रोका गया यह तो कोई बताए? क्या ऐसे लोगों के विरु द्ध सख्त कार्रवाई नहीं होनी चाहिए? क्या मजहब के नाम पर झूठ बोलकर इनको उन्माद फैलाने, हिंसा करने और सरेआम सिर काटने का नारा लगाने की छूट मिलनी चाहिए?
सही है कि अगर उत्तर प्रदेश में भाजपा या योगी आदित्यनाथ सरकार नहीं होती तो ऐसी कार्रवाई संभव नहीं थी। अतीत के अनुभव बताते हैं कि इनको जुलूस निकालने की पूरी अनुभूति होती और जिन पुलिस वालों ने तहरीर लिखा उनके विरुद्ध कार्रवाई हो जाती। बरेली में तौकीर रजा और उनके लोगों को कोई पुलिस वाला छू देता तो उसकी शामत आ जाती। इनका चरित्र देखिए। पुलिस द्वारा पकड़े गए युवकों के कुछ वीडियो वायरल है। इनमें सब हाथ छोड़कर गिड़िगड़ा रहे हैं कि हमसे गलती हो गई, छोड़ दीजिए,अब ऐसा नहीं करेंगे। पहले का वीडियो देखिए किस ढंग से नारे लगाते पुलिस के साथ भीड़ रहे हैं, पत्थरबाजी कर रहे, हैं पुलिस का बैरिकेड तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। इनमें ऐसा लगता है जैसे ये मजहब के लिए जान लेने और जान देने को उतारू है। अगर मजहब के साथ अन्याय हुआ है, उसके लिए निकले हैं तो आपको सजा भुगतने में डर नहीं होना चाहिए।
फिर आप माफी क्यों मांग रहे हो? साफ है कि इनका इस्लाम और मजहब से कोई लेना-देना नहीं। बार-बार कुछ ऐसी घटनाएं होती हैं और उसके बाद कार्रवाई होती है तो यह पुलिस प्रशासन को कटघरे में खड़ा करता है। छांगुर भी गिरफ्तार हुआ, लेकिन तब तक वह इस्लाम मजहब में परिवर्तन के बड़े कॉर्पोरेट जैसा तंत्र स्थापित कर चुका था। आगरा से इसी प्रकार की घटना आई। भाजपा सरकार में ये कैसे घटित होते रहते हैं और प्रशासन की नजर नहीं जाती? इसका उत्तर देश को मिलना चाहिए। वैसे भी जिन्हें गिरफ्तार करेंगे उनके पक्ष में न्याय की लड़ाई लड़ने से लेकर झूठ दुष्प्रचार अभियान चलाने वाली प्रभावी फौज उतर जाती है।
(लेख में विचार निजी हैं)
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