परत-दर-परत : डर का नया व्याकरण
भारत इस समय अपने नैतिक संकट के चरम से जूझ रहा है. भीड़ की हिंसा हमारे यहां पहले भी थी. कह सकते हैं, विभाजन का नक्शा भीड़ की हिंसा से रंगा हुआ है.
![]() डर का नया व्याकरण |
वह समय इतना भयानक था कि उसे याद करते ही सिहरन होने लगती है. पूरा महादेश हिंदू और मुसलमान में बंट गया था. वह दो देशों के बीच युद्ध नहीं था, पर युद्ध से भी ज्यादा लोग मारे गये थे. 1984 में भी कई शहरों में भीड़ की हिंसा का भयानक आलम देखने को मिला. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके सिख अंगरक्षकों ने कर दी थी. लेकिन इसके नतीजे में जो आक्रोश जगह-जगह फूटा, वह स्वत:स्फूर्त नहीं था. योजना सिखों को सबक सिखाने की थी. अभी तक उस सामूहिक हत्याकांड का न्याय नहीं हो पाया है. क्या हम बाबरी मस्जिद के विध्वंस या गुजरात में 2002 में मुसलमानों का जो कत्लेआम हुआ, वह भी भीड़ की हिंसा का एक भयावह उदाहरण है. उसे व्यर्थ ही हिंदू-मुसलमान दंगा कहा जाता है.
वह मासूम मुसलमानों पर हिंदुओं का संगठित आक्रमण था. आजादी के बाद होने वाले तमाम दंगों को भीड़ की हिंसा में ही गिनना चाहिए. गुजरात की हिंसा की तरह सांप्रदायिक दंगों में भी पुलिस की भूमिका एकतरफा थी. बिहार और उत्तर प्रदेश में सवर्णों की सेनाओं ने दर्जनों गांव फूंक दिये और सैकड़ों लोगों की हत्या कर दी. डायन बता कर कितनी स्त्रियों की सामूहिक हत्या की जा चुकी है. इस तरह की और भी अनेक घटनाएं गिनायी जा सकती हैं, जब उन्मत्त भीड़ ने कमजोर और असहाय लोगों की, जिनमें अकसर दलित हुआ करते थे, जान ले ली.
भारत की आम जनता निश्चय ही शांतिप्रिय है. पर समय-समय पर किसी न किसी घटना से उत्तेजित हो कर वह एक हत्यारी भीड़ में बदल सकती है. इसका मतलब यह कि हम सभी के मन में गुस्सा संचित रूप में मौजूद रहता है, जो मौका मिलते ही हिंसा के रूप में फूट पड़ता है. पर गोरक्षा या अन्य बहानों से हाल में भीड़ की जो हिंसा दिखाई पड़ रही है, उसका चरित्र उपर्युक्त घटनाओं से बिलकुल अलग है. यह एक नये प्रकार की असामाजिकता है, जिस पर गहरा सांप्रदायिक रंग दिखाई देता है. इस हिंसा के लिए कोई तैयारी नहीं करनी पड़ती, न किसी प्रकार का षड्यंत्र किया जाता है. इसकी रणनीति सभी जगह एक जैसी है : जहां भी संभव है, मुसलमान को पकड़ा और पीट-पीट कर मार डाला.
यह देखने की जरूरत नहीं है कि उसने कोई अपराध किया है या नहीं. ऐसा लगता है कि एक भीड़ हमेशा बलवा करने के लिए तैयार रहती है और मामूली-सा बहाना पा कर उस पर चढ़ बैठती है. जहां बहाना नहीं होता, वहां बहाना खोज लिया जाता है या बना लिया जाता है. मुसलमानों को हलाक करने का यह सिलसिला इस मायने में भयावह है कि उसने पूरे भारत के मुस्लिम समाज को आतंक में डाल दिया है. कब, कहां, किस बहाने से किस मुसलमान की हत्या कर दी जायेगी, यह नहीं कहा जा सकता. इसका मतलब यह है कि हर मुसलमान हिंदू भीड़ के गुस्से के निशाने पर है. किसी के साथ कहीं भी कुछ भी हो सकता है.
लेकिन यह गुस्सा सिर्फ मुसलमानों के प्रति नहीं है. अगर ऐसा होता, तो इसके एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य के बारे में सोचा जा सकता है. वास्तव में, यह गुस्सा आधुनिकता, बुद्धिवाद और असहमति के विरु द्ध है. इसके कई उदाहरण हम हाल में देख चुके हैं. ऐसे बुद्धिजीवियों पर चुन-चुन कर हमला किया गया, जो मध्ययुगीन विचारों के खिलाफ थे तथा एक आधुनिक और सहिष्णु भारत देखना चाहते थे. हत्यारों की यह छितरायी हुई असंगठित फौज हमारे संवैधानिक मूल्यों को भी स्वीकार नहीं करती. कानून के राज और नागरिक समानता में उसका विश्वास नहीं है. वह त्वरित न्याय करना चाहती है.
मैंने हत्यारों की इस भीड़ को असंगठित कहा, लेकिन वास्तव में यह संगठित हैं. भीड़ की हिंसा की घटनाएं जहां-तहां घट रही हैं, पर उनका वैचारिक स्रेत एक ही है : हिंदू राष्ट्र की स्थापना. यह है तो हिंदू राज पर, पर इस पर संभ्रांतता का मुखौटा चढ़ने के लिए हिंदू राष्ट्र कहा जाता है. राष्ट्र कोई भी हो, जैसा हो, वह परस्पर सहिष्णुता, सहकार और लगाव के बिना नहीं रह सकता. हिंदू राज को अभी तक कभी परिभाषित नहीं किया गया है, क्योंकि परिभाषित कर दिये जाने के बाद किसी विचार को हम ठोस रूप में देख सकते हैं और उससे बहस भी कर सकते हैं. अपरिभाषित होने का फायदा यह है कि जो जैसे चाहे इसका दुरुपयोग कर सकता है.
यही कारण है कि भीड़ की इस हिंसा का प्रतिकार अकेले नहीं किया जा सकता है. यह एक विषाक्त विचारधारा है, जो हमारे पूरे समाज को अशांत किये हुए है. यह अकारण नहीं है कि प्रधानमंत्री ने इस प्रवृत्ति की आलोचना बड़े मंद स्वर में की है, मानो यह कोई मामूली बात हो. इससे उपद्रवी तत्वों को प्रोत्साहन ही मिला होगा, क्योंकि वे जानते हैं कि करने वाले और मना करने वाले, दोनों को एक ही जगह से शक्ति मिलती है. एक सभ्यता के ऊपरी तकाजे को औपचारिक रूप से, बिना मन के पूरा करता है और दूसरा सभ्यता के कलेजे में छुरा भोंकता है.
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