पनामा पेपर्स : शरीफ के लिए परीक्षा की घड़ी

Last Updated 29 Jun 2017 05:46:11 AM IST

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पनामा पेपर लीक मामले की जांच कर रही संयुक्त जांच समिति (जेआईटी) के सामने 15 जून को पेश हुए और उसके सामने अपना पक्ष रखा.


पनामा पेपर्स : शरीफ के लिए परीक्षा की घड़ी

पाक के सर्वोच्च न्यायालय ने इस साल 20 अप्रैल को अपने फैसले में इस छह सदस्यीय समिति का गठन किया था और उसे प्रधानमंत्री और उनके दोनों बेटे व भाई व अन्य को बुलाने का अधिकार दिया था.

समिति को 60 दिनों के अंदर शरीफ परिवार से जुड़े भ्रष्टाचार के मामले की जांच पूरी करने को भी कहा था. पनामा पेपर्स लीक से पता चला था कि शरीफ के बेटे हसन और हुसैन के नाम पर लंदन में चार फ्लैट खरीदे गए. इसके अलावा कतर समेत कई देशों में फर्जी कम्पनियां बनाकर काला धन सफेद करने का आरोप भी सामने आया. इस तरह इस मामले की जांच समिति के सामने पेश होने वाले नवाज शरीफ देश के पहले प्रधानमंत्री बन गए. नवाज के दोनों बेटे पहले ही जांच समिति के सामने पाई-पाई का हिसाब दे चुके हैं.

काबिलेगौर है कि सर्वोच्च न्यायालय की पीठ को जेआईटी गठित करने से पहले शरीफ को अयोग्य करार देने व उन्हें पद से हटाने के पर्याप्त सबूत नहीं मिल सके थे. इसलिए वह अपने पद पर बने हुए हैं. अब जब नवाज शरीफ जांच समिति के सामने पेश हो चुके हैं; पाक में इस बात की चर्चा हो रही है कि उन्हें प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए जांच समिति के सामने निजी तौर पर पेश नहीं होना चाहिए था और इसके लिए अपने वकील को भेजना था.

नवाज शरीफ को अपने अफसरान के सामने अपना पक्ष रखना पड़ा जो उनके मातहत रहे हैं और अब भी हैं. इससे प्रधानमंत्री पद की गरिमा में कमी आई है. जबकि नवाज शरीफ का कहना है कि उन्होंने संविधान व कानून का पालन किया है. नवाज शरीफ जांच समिति के तीखे सवालों का जवाब देने के बाद बौखलाहट का शिकार नजर आ रहे हैं. उन्हें जांच समिति की तेजी रास नहीं आ रही है. उन्होंने समिति पर फोन टेप करने का आरोप भी लगाया है.

नवाज शरीफ के छोटे भाई पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री शाहवाज शरीफ भी जांच समिति के सामने पेश हुए हैं. उन्होंने भी समिति की कार्यशैली पर यह कहते हुए पाक सेना पर निशाना ताना है कि उनका परिवार सेना-तानाशाही जैसा नहीं है. यह नवाज शरीफ सरकार और जेआईटी के बीच बढ़ती कड़वाहट है. देखा जाए तो जेआईटी के गठन के तुरंत बाद से ही उसके गठन पर सवालिया निशान लगना शुरू हो गया था. जेआईटी में फेडरल जांच एजेंसी (एफआईए) राष्ट्रीय जवाबदेही ब्यूरो (एनएबी) आईएसआई और मिलिट्री इंटेलिजेंस के अधिकारी शामिल हैं.

न्यायालय के फैसले के अनुसार यह जांच 60 दिन में पूरी की जानी है. जबकि दूसरी तरफ पाक के अधिकांश राजनीतिक पार्टियों ने जेआईटी को रद्द कर दिया है. उनका कहना है कि जेआईटी में सर्वोच्च न्यायालय के तीन न्यायाधीशों या हाईकोर्ट के चार न्यायाधीशों को शामिल किया जाना चाहिए था क्योंकि पाक में सरकारी संस्थान अपाहिज हो चुके हैं और वे प्रधानमंत्री के कंट्रोल में हैं. इसलिए वे शरीफ के खिलाफ कार्यवाही नहीं कर पाएंगे.

पाक में ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जिनका कहना है कि जेआईटी में खुफिया एजेंसियों को शामिल करने का मतलब न्यायालय का लोकतांत्रिक संस्थानों पर विश्वास उठ गया है. ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय, न्यायिक आयोग गठन करने के लिए स्वतंत्र था. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इसको भविष्य के लिए सुखद नहीं माना जा रहा है. उनकी सबसे बड़ी आपत्ति जेआईटी में मिलिट्री इंटेलिजेंस को शामिल करने की है क्योंकि पनामा लीक का मामला पूरी तरह आर्थिक अपराध का मामला है. यह पूरी तरह उचित नहीं है.

वैसे भी इन दिनों नवाज शरीफ की सरकार और सेना में तनातनी बनी हुई है. इससे संदेह पैदा होता है कि नवाज शरीफ को इंसाफ मिल पाएगा. जबकि पाक सेना के प्रवक्ता ने कहा है कि सर्वोच्च न्यायालय ने उनपर भरोसा किया है. सेना उस पर खरा उतरेगी और साफ व कानूनी तरीके से जेआईटी में अपना रोल अदा करेगी.  यही उम्मीद की जा रही है कि जांज समिति की रिपोर्ट के बाद मामले की असलियत सामने आएगी. दुनिया की नजरें भी इस पर लगी हुई हैं. देखना यह है कि यह मामला आगे चलकर किस करवट बैठता है?

कुलदीप तलवार
लेखक


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