Manipur : दोनों पक्ष छोड़ें हठधर्मिता
मणिपुर (Manipur) तीन महीने से जातीय हिंसा की आग में उबल रहा है। इस दौरान एक सौ से ज्यादा लोग मारे गए और हजारों लोग विस्थापित हो गए हैं।
![]() Manipur : दोनों पक्ष छोड़ें हठधर्मिता |
यह बताने की जरूरत नहीं है कि सूबे के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह की सरकार और प्रशासन की राजनीतिक साख बुरी तरह ध्वस्त हो चुकी है, लेकिन केंद्र सरकार की सुरक्षा कवच और आशीर्वाद से अपने पद पर बने हुए हैं। संसद का मानसून सत्र से ठीक एक दिन पहले सूबे के कांगपोकली जिले में दो महिलाओं को निर्वस्त्र करके सड़क पर परेड कराने और उनके साथ र्दुव्यवहार करने का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद पूरे देश में आक्रोश फूट पड़ा।
यहां यह उल्लेखनीय है कि यह घटना 4 मई की थी और इस मामले में पहली एफआईआर 18 मई को दर्ज कराई गई थी। इस घटना के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संसद के बाहर अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा कि मणिपुर की इस घटना से मेरा हृदय पीड़ा से भरा है। किसी भी सभ्य समाज के लिए यह शर्मसार करने वाली है। बेइज्जती पूरे देश की हो रही है। सर्वोच्च अदालत के प्रधान न्यायाधीश ने जल्द कदम उठाने को कहा।
मणिपुर सहित पूरे देश को उम्मीद थी कि संसद के इस मानसून सत्र में सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों जातीय हिंसा की आग में जल रहे इस सूबे की कानून-व्यवस्था को पटरी में लाने के लिए कोई संतोषजनक और सर्वमान्य हल निकालने के लिए चर्चा करेंगे। लेकिन मानसून सत्र के तीसरे दिन भी संसद हंगामे के कारण बाधित होता रहा। अब स्थापित रूप से यह परंपरा बन गई है कि विपक्ष सुचारू रूप से संसद को चलने नहीं देगा। मुद्दा चाहे जैसा भी हो, लेकिन विपक्ष को ठप करने का बहाना मिल जाता है।
संसद के पिछले कई सत्र इस बात के साक्षी रहे हैं। इस मानसून सत्र में सरकार मणिपुर की घटना पर सदन में चर्चा कराने के लिए तैयार है। लेकिन विपक्ष इस मांग पर अड़ा हुआ है कि लोक सभा में मणिपुर मुद्दे पर चर्चा से पहले प्रधानमंत्री वक्तव्य दे, जबकि सरकार जोर दे रही है कि इस मुद्दे पर केंद्रीय गृहमंत्री बोलेंगे। राज्य सभा में विपक्ष ने नियम 267 के तहत चर्चा कराने का नोटिस दिया है, जबकि सत्ता पक्ष नियम 176 के तहत चर्चा कराना चाहती है।
उच्च सदन में सरकार बहुमत में नहीं है, इसलिए वह नियम 267 के तहत चर्चा से बचना चाहती है। ऐसे में संसद के दोनों सदनों में गतिरोध बना हुआ है। अगर दोनों पक्ष जिद पर अड़े रहे और समस्या का कोई सर्वमान्य हल नहीं निकला तो पूर्वोत्तर के अन्य राज्य भी हिंसा की चपेट में आ सकते हैं।
Tweet![]() |