बिहार में M,Y समीकरण पर अमित शाह का M,S समीकरण कितना पड़ेगा भारी ?
बिहार में जब से सत्ता परिवर्तन हुआ है,तब से गृहमंत्री अमित शाह पांच बार बिहार का दौरा कर चुके हैं। शनिवार को वह छठी बार बिहार के झंझारपुर में एक रैली को संबोधित करेंगे,जिसे बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव का गढ़ माना जाता है।
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झंझारपुर के आसपास,दरभंगा, मधुबनी,सीतामढ़ी,समस्तीपुर, सुपौल, मधेपुरा और सहरसा जिलों में यादव और मुस्लिम वोटर बहुतायत संख्या में हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि अमित शाह, लालू यादव के किले को भेदने की पूरी तैयारी कर चुके हैं। आगामी लोकसभा चुनाव से पहले बिहार की राजनीति गरमाई हुई है, हालांकि इस समय पूरे देश की स्थिति कमोबेश वैसी ही है, लेकिन बिहार को लेकर शायद भाजपा कुछ ज्यादा ही गंभीर है।
गृह मंत्री अमित शाह का पिछले एक साल के अंदर छह बार बिहार का दौरा करना इस बात का सबूत है कि भाजपा कहीं ना कहीं यह मानकर चल रही है कि सबसे ज्यादा मुश्किलें और सबसे बड़ी टक्कर उसे बिहार से ही मिलने वाली है। यहां बता दें कि जब 2020 में बिहार विधानसभा का चुनाव हुआ था, तब नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जनता दल यूनाइटेड भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन का हिस्सा हुआ करते थे।
चुनाव जीतने के बाद एनडीए की तरफ से नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी, लेकिन कुछ महीनों बाद ही उनका बीजेपी से तालमेल बिगड़ने लगा था। उसके बाद नीतीश कुमार ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था, और कांग्रेस, राजद और वाम दलों के समर्थन से एक बार फिर वो बतौर मुख्यमंत्री बिहार की सत्ता पर काबिज हो गए थे। यह सब को पता है कि नीतीश कुमार जब एनडीए में हुआ करते थे तो, उन्हें बीजेपी की वजह से फायदा हुआ करता था, जबकि कहीं ना कहीं भाजपा को भी जनता दल यूनाइटेड की वजह से किसी भी चुनाव में आशातीत सफलता मिल जाती थी।
2019 में जदयू के 16 और भाजपा से 17 सांसद बने थे। यानी भाजपा और जदयू एक दूसरे के पूरक हुआ करते थे। इस बार वहां की कहानी कुछ अलग है। बिहार देश का एक ऐसा राज्य है, जहां आज भी जातिगत समीकरणों के आधार पर वोटिंग होती है। माना जाता है कि राष्ट्रीय जनता दल के पास मुस्लिम और यादव का एक समीकरण मौजूद है, जिसे राजनैतिक गलियारों में M, Y के नाम से भी लोग जानते हैं। नीतीश कुमार की पिछड़ा वर्ग के वोटरों पर अच्छी खासी पकड़ मानी जाती है।
2024 में लोकसभा का चुनाव होना है। I.N.D.I.A गठबंधन बनने के बाद बिहार में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव कुछ और अधिक मजबूत हो सकते हैं। बीजेपी शुरू से दावा करती आ रही है कि आगामी लोकसभा चुनाव में वह बिहार की 40 सीटों में से कम से कम 35 सीटों पर जीत दर्ज करेगी। जबकि महागठबंधन ने बिहार की सभी सीटों को जीतने का दावा कर दिया है। अमित शाह शनिवार को जिस क्षेत्र में जाने वाले हैं, उसके आसपास के सात जिलों में लगभग नव लोकसभा की सीटें हैं।
उन क्षेत्रों में लालू यादव की पकड़ अच्छी खासी मानी जाती है। वहां मुस्लिम और यादव वोटरों की संख्या सबसे ज्यादा है। ऐसे में माना यही जा रहा है कि अगर अमित शाह ने लालू के उस किले को भेद दिया तो बिहार की अन्य सीटों को साधने में आसानी हो जाएगी। अमित शाह निश्चित तौर पर वहां भी जनता को मोदी के अंतरराष्ट्रीय छवि के बारे में बताएंगे। अभी हाल में संपन्न हुए जी-20 की सफलता के बारे में लोगों को जानकारी देंगे। कुल मिलाकर अमित शाह की कोशिश यही होगी की लालू यादव M,Y समीकरण पर मोदी ,शाह यानी M,S समीकरण भारी पड़े।
NDA और I.N.D.I.A दोनों गठबंधनों की इस बार बिहार में कठिन परीक्षा होगी। यह तय है कि दोनों के दावे धरातल पर कहीं दिखते हुए नजर नहीं आएंगे। क्योंकि चुनाव करीब आते-आते अभी कुछ बदलने की संभावना है। ऐसे में यह तय है कि आगामी लोकसभा चुनाव में जो भी होगा, उसका संदेश पूरे देश मे जाएगा। शायद अमित शाह इसीलिए बिहार का बार-बार दौरा कर यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि बिहार में बड़ी जीत हासिल करना कितना जरूरी है।
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