मुद्दा : चीन की जनसंख्या नीति और भारत
दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश रहे चीन को आज अपनी घटती जनसंख्या की भरपाई के लिए बड़ी आर्थिक योजनाएं लानी पड़ रही हैं।
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चीन ने मंगलवार को घोषणा की है कि वह तीन साल से कम उम्र के प्रत्येक बच्चे के लिए सालाना 3,600 युआन यानी लगभग 1,500 डॉलर (1.25 लाख रु पये) की नकद मदद देगा। यह योजना जनसंख्या को बढ़ावा देने के लिए लाई जा रही है क्योंकि चीन की जन्म दर ऐतिहासिक रूप से नीचे पहुंच गई है। 2023 में चीन की कुल जनसंख्या में 61 वर्षो में पहली बार गिरावट दर्ज की गई। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, चीन की टोटल र्फटििलटी रेट सिर्फ 1.09 है, जबकि जनसंख्या को स्थिर बनाए रखने के लिए 2.1 का स्तर जरूरी होता है।
यह उदाहरण दिखाता है कि जनसंख्या नियंत्रण सिर्फ आंकड़ों की बात नहीं है, यह सामाजिक, आर्थिक और रणनीतिक रूप से एक बेहद संवेदनशील विषय है। भारत ने 2023 में चीन को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश बनने का ‘टैग’ प्राप्त किया, लेकिन भारत की स्थिति चीन से बहुत भिन्न है। भारत में नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे -5 के अनुसार, कुल प्रजनन दर अब 2.0 पर आ गई है-यह भी रिप्लेसमेंट लेवल से नीचे है। इसका मतलब यह है कि भारत की जनसंख्या अब धीरे-धीरे स्थिर हो रही है, और भविष्य में इसमें गिरावट की संभावना भी जताई जा रही है। इस स्थिति को सकारात्मक नजरिए से देखा जाए तो यह भारत के लिए एक डेमोग्राफिक डिविडेंड का सुनहरा अवसर है।
भारत में अभी भी 65% से अधिक जनसंख्या 35 वर्ष से कम आयु की है। इसका मतलब यह है कि हमारे पास कामकाजी युवाओं की बड़ी फौज है, जो आने वाले वर्षो में देश की आर्थिक विकास यात्रा को नई ऊंचाइयों तक ले जा सकती है। चीन आज जिस संकट से जूझ रहा है जहां बूढ़ी होती जनसंख्या के साथ कामकाजी हाथ कम होते जा रहे हैं, भारत उस स्थिति से अभी दूर है। भारत को यहां एक संतुलित नीति अपनाने की जरूरत है। न तो अंधाधुंध जनसंख्या बढ़ाने की सोच हो, न ही अतिवादी नियंत्रण की।
भारत के कई दक्षिणी और उत्तर-पूर्वी राज्यों में पहले ही जनसंख्या वृद्धि रु क गई है। केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, दिल्ली, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में अब 1.6 से 1.8 के बीच है, जो चिंता का विषय है। वहीं बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड जैसे राज्यों में अभी भी 2.5 के आसपास है। ये क्षेत्रीय असंतुलन भविष्य में सामाजिक और आर्थिक ढांचे को प्रभावित कर सकते हैं। इसलिए एक सकारात्मक रणनीति यह होगी कि हम जनसंख्या वृद्धि की जगह जनसंख्या की गुणवत्ता पर ध्यान दें।
भारत को शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण और महिला सशक्तिकरण जैसे मुद्दों को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए। अगर हम यह सुनिश्चित कर सकें कि हर बच्चा स्कूल में जाए, हर महिला को स्वास्थ्य सुविधा और बराबरी का अवसर मिले और हर युवा को हुनरमंद बनाया जाए, तो यही जनसंख्या हमारी सबसे बड़ी ताकत होगी। इसके साथ ही, भारत को आने वाले दशकों में बुजुगरे की संख्या बढ़ने की संभावना को भी समझना होगा और उनके लिए स्वास्थ्य व सामाजिक सुरक्षा ढांचे को मजबूत करना होगा। आज जब दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाएं जनसंख्या की कमी से जूझ रही हैं जैसे जापान, कोरिया, इटली, रूस और अब भारत के पास एक बड़ा अवसर है कि वह अपने डेमोग्राफिक एडवांटेज को आर्थिक व सामाजिक प्रगति में बदल सके।
इसके लिए नीति-निर्माताओं को दीर्घकालिक सोच अपनानी होगी। शिक्षा और रोजगार को केंद्र में रखकर भारत यदि अपनी युवा शक्ति को अवसर दे, तो जनसंख्या कभी बोझ नहीं बनेगी। चीन आज जिन योजनाओं को लागू कर रहा है बच्चों के पालन-पोषण में आर्थिक सहायता, मातृत्व अवकाश, डे-केयर सुविधा और सामाजिक सुरक्षा वह भारत के लिए संकेत हैं कि हमें भी समय रहते अपने सामाजिक ढांचे को मजबूत करना होगा। हालांकि भारत की आर्थिक स्थिति चीन से अलग है, लेकिन नवाचार और सामुदायिक सहयोग से हम एक ऐसा मॉडल बना सकते हैं जिसमें जनसंख्या को लाभ में बदला जा सके।
भारत को यह भी समझना होगा कि जिस जनसंख्या को आज वह अपनी शक्ति मान रहा है, वही आने वाले समय में चुनौतियों का कारण भी बन सकती है यदि उसे सही दिशा, शिक्षा और अवसर न मिले। चीन के ताजा निर्णय से भारत को यह भी सीखने को मिलता है कि परिवार और बच्चों के पालन-पोषण को आसान और सम्मानजनक बनाना क्यों जरूरी है। भारत के शहरी क्षेत्रों में भी अब छोटे परिवार और देर से विवाह करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। यदि भारत सरकार भविष्य में प्रजनन दर में गिरावट देखे तो उसे समय रहते सामाजिक सुरक्षा, महिला सशक्तिकरण, पितृत्व/मातृत्व अवकाश और कार्यस्थल पर बच्चों की देखरेख जैसे उपायों को संस्थागत बनाना होगा। जनसंख्या को बोझ नहीं, बल्कि भविष्य की पूंजी समझने का वक्त आ गया है। यही समय है जब हमें जनसंख्या नियंत्रण से आगे बढ़कर जनसंख्या निवेश की नीति अपनानी चाहिए।
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