BJP अपने 37 प्रतिशत को साध ले तो हो गई नैया पार !

Last Updated 27 Jun 2023 05:18:08 PM IST

देश की तमाम विपक्षी पार्टियां एकजुट होने का प्रयास कर रही हैं। संभवत वह एक साथ मिलकर आगामी लोकसभा का चुनाव भी लड़ लें, लेकिन आज भी देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी भाजपा को हराना उनके लिए इतना आसान नहीं है जितने बड़े-बड़े दावे उनकी तरफ से किए जा रहे हैं।


Modi and Opposiion Leaders

2019 के लोकसभा चुनाव में अकेले भारतीय जनता पार्टी ने तकरीबन 37 प्रतिशत वोट हासिल किया था। देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस को लगभग 20 प्रतिशत वोटें मिलीं थीं। यानी भाजपा को कांग्रेस से लगभग 17 या 18 प्रतिशत ज्यादा वोटें ज्यादा मिलीं थीं। हालांकि भाजपा अकेले दम पर चुनाव नहीं लड़ी थी, उनका भी एनडीए के नाम से गठबंधन है। वो अलग बात है कि आज मोदी का कद इतना ज्यादा बढ़ गया है कि  एनडीए कहीं कोने में दबकर रह गया है। हालांकि एनडीए में भी तमाम दल शामिल हैं। ऐसे में 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस बगैर मजबूत गठबंधन के भाजपा से  मुकाबला तो कर सकती है लेकिन जीतने की कल्पना  शायद ना कर पाए। आज भाजपा देश की नहीं बल्कि विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन चुकी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रूप में उनके पास एक ऐसा चेहरा है, जो अपने बलबूते ही किसी चुनाव को पलटने का माद्दा रखता है।

निश्चित तौर पर मोदी ने अपनी एक ऐसी इमेज तैयार कर ली है, जिस इमेज के आसपास जाने की क्षमता फिलहाल किसी भी विपक्षी नेता के पास नहीं है। बात करें 2019 लोकसभा चुनाव की तो उसमें बीजेपी को 303 सीटें मिली थी, जबकि भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन को 353 सीटें मिली थीं। भाजपा ने अकेले ही  37.36 प्रतिशत वोटें हासिल की थीं, जबकि एनडीए गठबंधन को 45 प्रतिशत वोटें मिलीं थीं। उधर कांग्रेस नेतृत्व वाले यूपीए गठबंधन ने लगभग 26 प्रतिशत वोटें हासिल की थीं। इस तरह एनडीए ने यूपीए से डबल से थोड़ा कम वोटें प्राप्त करने में सफलता पाई थी।

ऐसे में मोदी की वजह से आज भी भाजपा की स्थिति कमोबेश सबसे बेहतर है और निर्विवाद रूप से मोदी सबसे बड़े चेहरे हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि 2024 का लोकसभा चुनाव सिर्फ मोदी के नाम पर ही जीता जा सके, क्योंकि इसके पहले के जो भी चुनाव हुए हैं, चाहे वह 2014 का हो या फिर 2019 का। उस समय विपक्ष शायद उतना मजबूत नहीं था। मजबूत तो इस बार भी उतना नहीं है, लेकिन राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के बाद अपनी छवि में अच्छा खासा सुधार कर लिया है और विपक्ष भी इस बार एकजुट होने के लिए कमर कस चुका है। ऐसे में बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने लगभग 37 प्रतिशत वोटों को बचाए रखने की होगी।

 जबकि विपक्ष को 2019 में मिले अपने 26 परसेंट वोटों में इजाफा करने की बैचैनी होगी। विपक्ष अगर अपनी एकजुटता को लेकर गंभीर है तो बीजेपी भी अपनी बनी बनाई रणनीति के तहत उस वोट प्रतिशत को बरकरार रखने की पूरी कोशिश करेगी, जो उसने 2019 में हासिल की थी। हालांकि कुछ दिन पहले आरएसएस के मुखपत्र कहे जाने वाले ऑर्गेनाइजर मैगजीन ने अपने संपादकीय में जब यह लिखा था कि अब  सिर्फ मोदी और हिंदुत्व के नाम पर चुनाव नहीं जीता जा सकता है। उस लेख के बाद ऐसा लगता है कि भारतीय जनता पार्टी ने कुछ सबक लिया है।

 इसलिए उन्होंने अभी से बूथ लेवल की मीटिंग करनी शुरू कर दी है। भाजपा की कोशिश है कि अपने बूथ को इतने मजबूत कर दिए जाएं, ताकि 2024 के लोकसभा चुनाव में जमीनी स्तर पर जुड़ा जा सके। हालांकि भाजपा वैसे भी हर चुनाव में कुछ न कुछ नया करने की कोशिश करती है। इस बार शायद बूथ को लेकर इसीलिए ज्यादा मेहनत कर रही है। फिलहाल भाजपा भी अच्छी तरह समझ रही है कि इस बार लड़ाई इतनी आसान नहीं है। अब निर्भर करता है कि विपक्ष कितना मजबूत होकर चुनाव लड़ता है।

शंकर जी विश्वकर्मा
नई दिल्ली


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