मानव सेवा को स्थापित मजहब ही बन रहा खतरा!

Last Updated 17 Jul 2022 08:45:57 AM IST

धर्म की स्थापना मानवता की सेवा के लिए हुई थी। लेकिन आज कट्टरता के कारण धार्मिंक प्रतिक्रियाएं मानवता के लिए खतरा बन गई हैं।


मानव सेवा को स्थापित मजहब ही बन रहा खतरा!

जब भी कोई राष्ट्र धर्म के आधार पर राजनीतिक सफर आगे बढ़ाता है तो उसको बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। आज जब हम मजहबी देशों की बात करते हैं तो इस समय दुनिया में केवल छह देश धर्म के आधार पर काम करते हैं। जिनमें पांच इस्लामिक और एक ईसाई राष्ट्र है। मुस्लिम राष्ट्रों में केवल सऊदी अरब ही आर्थिक मोर्चे पर मजबूत है। क्योंकि वह प्राकृतिक संसाधनों और मक्का-मदीना की यात्रा के आधार पर अपना विकास करता है। यही वजह है कि वहां मानव जीवन का स्तर और गुणवत्ता दोनों ही वैश्विक सूचकांक में बेहतर स्थान पर हैं। भारत के मुस्लिम छात्र संगठन के अध्यक्ष डा. शुजात अली कादरी कहते हैं कि दुनिया में मानव जीवन स्तर, समृद्धि, विकास और नागरिक-राज्य संबंधों के आधार पर ‘लिगटम प्रॉस्पेरिटी इंडेक्स 2021’ की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में मजहबी कट्टरता का प्रतीक बन चुका अफगानिस्तान सूचीबद्ध 167 देशों में से 163वें स्थान पर है।
इसी तरह, यमन 165वें स्थान पर, मॉरिटानिया 153वें, ईरान 123वें स्थान पर है। लेकिन अपनी बेहतर आर्थिक स्थिति के कारण सऊदी अरब 75वें स्थान पर है। इस रिपोर्ट में भारत को 101, पाकिस्तान को 138, बांग्लादेश को 126 रैंक दी गई है। र्वल्ड इकोनॉमिक फोरम की रिपोर्ट 2022 ने भी स्वीकार किया है कि खत्म हो रहे सामाजिक संबंधों में आ रही गिरावट दुनिया के सामने मौजूद 10 बड़े खतरों में चौथा सबसे बड़ा खतरा है।

2017 में ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन ने माया मीरचंदानी की विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की थी। जो  केरल के युवक अशफाक मजीद पर आधारित थी। अशफाक 2016 में अफगानिस्तान चला गया। उसने अपने परिवार के सदस्यों को भी ‘इस्लाम के घर’ में ही आने के लिए कहा। लेकिन उसके परिवार ने भारत की राष्ट्रीय जांच एजेंसी को उसके ठिकाने के बारे में बता दिया था। क्योंकि उसके परिजन और परिचित इस बात से बेहद हैरान थे कि वह इतना कट्टर हो गया है। यह साइबर वार के उस मंच का परिणाम है जो मजहबी कट्टरता को बढ़ावा देकर अलगाव और प्रतिशोध को बढ़ावा देती है। यही कट्टरता उदयपुर के उन युवकों में भी देखी गई जिन्होंने हाल ही में दर्जी कन्हैयालाल की हत्या कर दी थी।
शांति का प्रतीक माने जाने वाले हिन्दू धर्म में भी यह कट्टरता निरंतर बढ़ाने की कोशिशें चल रही है। इंटरनेट के माध्यम से फैलाई जा रही ऐसी ही असंपादित, दिशाहीन और भ्रामक सामग्री के चलते मुसलमानों की लिंचिंग की लाइव-स्ट्रीमिंग की गई। जिस उदयपुर में कन्हैयालाल की हत्या हुई वहीं शंभूलाल रायगर ने एक मुस्लिम मजदूर की कुल्हाड़ी से हत्या कर दी थी।
विकास और जानकारी के प्रसार के लिए सुलभ माने जाने वाले इंटरनेट को कुछ तत्वों ने गलत माध्यम बना दिया है। परिणाम यह है कि इस पर मौजूद अनावश्यक, तथ्यहीन और असंपादित सामग्री की उपलब्धता, इतनी अधिक हो गई है कि इसे सुलझाना लगभग असंभव होता जा रहा है। हैरानी की बात यह है कि यह सब डार्क वेब नहीं बल्कि खुले प्लेटफॉर्म पर मौजूदा सामग्री के माध्यम से हो रहा है।
शांति के साथ आर्थिक स्थिति पर शोध करने वाली संस्था ‘द इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनॉमी एंड पीस’ ने 2022 की रिपोर्ट में 163 देशों को शामिल किया, जिसमें भारत की रैंकिंग 135 है। रिपोर्ट के मुताबिक देश में शांति की स्थिति निचले स्तर पर है। इसमें पाकिस्तान की रैंकिंग 147 तो इस्रइल को 134वां स्थान मिला है। इससे साफ होता है कि धार्मिंक कट्टरता ने इन देशों की शांति और समृद्धि को बुरी तरह प्रभावित किया है। इस रिपोर्ट में भारत की वैश्विक रैंकिंग भले ही पाकिस्तान और अफगानिस्तान से ऊपर है। लेकिन गौर करने वाली बात है कि भूटान जैसे छोटे देश की रैंकिंग 19, नेपाल की 73, श्रीलंका की 90 और बांग्लादेश की 96 है।
रिपोर्ट के अनुसार जिन देशों में सामाजिक शांति सबसे तेज गिर रही है उनमें कोलंबिया, बांग्लादेश और ब्राजील के साथ भारत भी शामिल है। हिंदुओं और मुसलमानों के बीच लगातार हो रही सांप्रदायिक हिंसा देश के लिए बेहद खतरनाक है। यह सर्वमान्य तथ्य है कि मानवता की सेवा के लिए धर्म की आवश्यकता है। अफसोस की बात है कि आज धर्म मनुष्य के प्रति अपराध का कारण बनता जा रहा है। यदि हम दुनिया को शांति सिखाने वाले देश के स्थान पर हिंसक देश बन गए तो यह दुर्भाग्यपूर्ण होगा। भारत को बचाना है तो हम सभी को मिलकर इसके समाज को पतित होने से बचाना होगा।

सुबोध जैन/सहारा न्यूज ब्यूरो
नई दिल्ली


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