Pitru Paksha 2023 : पितृपक्ष में पितरों को जल कैसे दिया जाता है? जानें इसका सही नियम और समय

Last Updated 05 Oct 2023 09:19:21 AM IST

पितृपक्ष में अन्न, जल से पितरों को खुशी मिलती है और वे अपने परिवार के सदस्यों का कल्याण करते हैं। पितृपक्ष में तर्पण कैसे करना चाहिए या जल कैसे देना चाहिए, आइये जानते हैं इसकी विधि।


Pitru Paksha 2023

पितृपक्ष में जल कैसे दिया जाता है - Pitru paksha mein jal kaise diya jata hai
भाद्रपद माह की पूर्णिमा से आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक के सोलह दिनों को पितृपक्ष कहते हैं, जिसमे हम अपने पूर्वजों को श्रद्धा पूर्वक याद करते हैं। पितृपक्ष या पितरपख, 16 दिन की वह अवधि  है, जिसमें लोग अपने पितरों को श्रद्धापूर्वक याद करते हैं। इन दिनों में श्राद्धकर्म, पिंडदान और तर्पण करने की बात कही गई है। पितरों की पूजा करने से आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, धान्य की समृद्धि होती है। देवी-देवताओं की आराधना के साथ ही स्वर्ग को प्राप्ति होने वाले पूर्वजों की भी श्रद्धा और भाव के साथ पूजा व तर्पण किया जाता है।

धार्मिक मान्यता के अनुसार, पितरों के प्रसन्न होने पर ही देवी-देवता प्रसन्न रहते हैं। पुराणों में वर्णन मिलता है कि चंद्रमा के ऊपर एक अन्य लोक है, जिसे पितर लोक माना जाता है। लोक मान्यता के अनुसार और पुराणों में भी यह बात कही गई है कि पितृपक्ष के दौरान परलोक गए पूर्वजों को पृथ्वी पर अपने परिवार के लोगों से मिलने का अवसर मिलता है। पितृपक्ष में पिंडदान, अन्न एवं जल ग्रहण करने की इच्छा से पितर अपने परिवार के पास आते हैं। इन दिनों मिले अन्न, जल से पितरों को ख़ुशी मिलती है और वे अपने परिवार के सदस्यों का कल्याण करते हैं। पितृपक्ष में भोजन के लिए आए ब्राह्णों को दक्षिणा नहीं दिया जाता है। जो तर्पण या पूजन करवाते हैं केवल उन्हें ही इस कर्म के लिए दक्षिणा दें। पितृपक्ष में तर्पण कैसे करना चाहिए या जल कैसे देना चाहिए आइये जानते है, इसकी विधि।

पितृपक्ष तर्पण विधि - पितृपक्ष में जल कैसे दिया जाता है

  • पितरों को जल देने की विधि को तर्पण कहा जाता है। तर्पण करते समय सबसे पहले हाथों में कुश लेकर दोनों हाथों को जोड़कर पितरों का ध्यान करना चाहिए।
  • इसके बाद इस मन्त्र को बोलना चाहिए – 'ओम आगच्छन्तु में पितर एवं ग्रहन्तु जलान्जलिम' इस मंत्र का हिंदी अर्थ है - हे पितरों, पधारिये और जलांजलि ग्रहण कीजिए।
  • सबसे पहले सूर्योदय से पहले उठ कर स्नान ध्यान करके सफेद वस्त्र या पीला वस्त्र धारण करें।
  • अगर आप जनेऊ पहनते हैं, तो जनेऊ को अपने दाहिने कंधे पर रखें।
  • पितरों को जल देने का समय सुबह 11:30 से 12:30 के बीच का होता है।
  • पितरों को जल चढ़ाने के लिए कांसे का पात्र (लोटा) या तांबे का पात्र प्रयोग में लाये। सबसे अच्छा तांबे का पात्र माना जाता है।
  • सबसे पीला एक पात्र में थोड़ा सा गंगाजल लेकर उसमें पवित्र जल को मिला दें और फिर उसमें काले तिल, अक्षत, जौ व कुशा या दूर्वा डालें।
  • पात्र (लोटे) में सफेद पुष्प अवश्य डालें। अपनी अनामिका उंगली में कुशा से बनी हुई पवित्री धारण करें।
  • अब घुटने के बल बैठ जाएं। बाएं हाथ में जल से भरा लोटा ले। उसके बाद अपने दाएं हथेली के अंगूठे के माध्यम से जल का तर्पण करें।
  • तर्पण करते वक्त अपनी पितरों का नाम लें। अनजाने में हुई गलतियों की उनसे क्षमा अवश्य मांगें।
  • ध्यान रहे दक्षिण दिशा की तरफ मुंह करके ही अपने पितरों को जल देना चाहिए क्योंकि दक्षिण दिशा में पितरों का निवास मानी जाती है।
  • अगर घर में यह कर रहें है, तो जल किसी साफ-सुथरे बर्तन में गिराए। उसके बाद उस जल को तुलसी के पौधे में या मदार के पौधे में डाल दें।

पिता जी का तर्पण मंत्र
अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें, गोत्रे अस्मतपिता (पिता जी का नाम) शर्मा वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः। इस मंत्र को बोलकर गंगा जल में पवित्र जल के साथ दूध, काला तिल और जौ मिलकर 3 बार जलांजलि दें। जल देते समय ध्यान करें कि वसु रूप में मेरे पिता जल ग्रहण करके तृप्त हों।

माता जी के तर्पण के लिए मंत्र
गोत्रे अस्मन्माता (माता का नाम) देवी वसुरूपास्त् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जल वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः। माता का ऋण सबसे बड़ा होता है। इसलिए इन्हें पिता से अधिक बार जल दिया जाता है। इस मंत्र को पढ़कर जलांजलि पूर्व दिशा में 16 बार, उत्तर दिशा में 7 बार और दक्षिण दिशा में 14 बार दिया जाता हैं।
पितृपक्ष में जल कैसे दिया जाता है

दादा जी के तर्पण के लिए मंत्र
गोत्रे अस्मत्पितामह (दादा जी का नाम) शर्मा वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः। इस मंत्र से पितामह को भी 3 बार जल दें।

पितृपक्ष में जल कैसे दिया जाता है

  • अंगूठे से जल चढ़ाने पर मिलती है पितर पक्ष  को मिलती है तृप्ति
  • श्राद्ध कर्म करते समय पके हुए चावल, दूध और काले तिल मिलाकर पिंड बनाए जाते हैं। इन पिंडों को मृत व्यक्ति के शरीर का प्रतीक माना जाता है।
  • इसके बाद पितरों का तर्पण किया जाता है, यानी पिंडों पर अंगूठे के माध्यम से जलांजलि दी जाती है। मान्यता है कि अंगूठे से पितरों को जल देने से उनकी आत्मा को शांति मिलती ह
  • पौराणिक ग्रंथों के अनुसार हथेली के जिस हिस्से पर अंगूठा होता है, वह हिस्सा पितृ तीर्थ कहलाता है।

प्रेरणा शुक्ला
नई दिल्ली


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