नैतिक मर्यादा

Last Updated 19 Jan 2017 04:29:57 AM IST

सुख शांति और सम्पन्नता परस्पर निर्भर है. साधन सम्पन्न और सुविधामय जीवन सुख शांति का कारण नहीं है.


श्रीराम शर्मा आचार्य

सुख शांति और सम्पन्नता तभी अर्जित की जा सकती है जब जीवन प्रवाह निद्र्वन्द्व और निर्विघ हो. जीवन प्रवाह की यह स्निग्ध गति ही मनुष्य और समाज को सुखी व शांति रख सकती है.

इसी आधार पर ही सम्पन्नता का भी लाभ उठाया जा सकता है. अन्यथा सम्पन्न होने पर और भी खतरे खड़े हो जाते हैं. जिससे सुख-चैन मिटने लगता है. जैसे समाज में चोर डाकुओं का बोलबाला हो, तो सबसे पहले सम्पन्न व्यक्तियों को ही चिंता उत्पन्न होगी. इस तरह की अड़चन केवल बाहरी कारणों से ही नहीं आते.

आंतरिक जीवन में भी अशांति और उद्वेग उत्पन्न होते रहते हैं और सब प्रकार सम्पन्न होते हुए भी व्यक्ति एक-एक क्षण सुख चैन के लिए कलपता-तड़पता रहता है. यदि इस तरह के उद्वेग साधनहीन व्यक्ति के जीवन में उठते तो सम्पन्नता अर्जित करने का अवकाश ही नहीं मिलेगा.

बाह्य दृष्टि से ऐसे व्यक्ति के पास भले ही कोई कार्य न हो, पर आंतरिक दृष्टि से उसके मन:क्षेत्र में उद्वेगों, चिन्ताओं और यातनाओं का संघर्ष चलता ही रहेगा. इसे इन पीड़ाओं से अवकाश ही नहीं मिलेगा. परिस्थिति या संयोग से ऐसे व्यक्तियों को सम्पन्नता प्राप्त भी हो जाए तो उनका कोई उपयोग संभव नहीं हो सकेगा.

जिस वस्तु या परिस्थिति का कोई उपयोग न हो, जिससे लाभ उठाने का अवसर न मिलता हो उसका होना न होना समान है. बाहरी व आंतरिक उद्वेग प्राकृतिक नियमों का उल्लंघन करने से उठता है, जिससे कई तरह की अड़चनें पैदा होती हैं.

समाज, ग्रह-उपग्रह, नक्षत्र, तारे आदि एक नियम मर्यादा के अनुसार चलते हैं. वे अपने निश्चित विधान का जरा भी व्यतिक्रम नहीं करते. यदि वे उस विधान का उल्लंघन करें, तो क्षण भर में ही नष्ट हो जाएं. यह प्रकृति की क्रूरता नहीं, उसकी व्यवस्था और उदारता है, क्योंकि एक ग्रह नक्षत्र भी यदि अपना मार्ग छोड़ दें, तो अन्य अपने मार्ग भटक जाएंगे.

इससे उसका नुकसान तो होगा और दूसरों में गड़बड़ी फैलाएंगे. प्रकृति ने अपने परिवार के समस्त सदस्यों को इस व्यवस्था, मर्यादा में बांध रखा है कि वे अपना मार्ग न छोड़े. इसलिए सारी व्यवस्था सुचारू रूप से चल रही है. सृष्टि की कोई भी इकाई अपनी मर्यादा का उल्लंघन नहीं करती. केवल मनुष्य ही ऐसा है, जो बार-बार नियति के विरुद्ध जाने की घृष्टता करता है.



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