आदत
आदत जड़ता नहीं लाती, आदत तुम्हारी मालिक हो जाए तो जड़ता लाती है. आदत को छोड़ना नहीं है, आदत के ऊपर उठना है, अतिक्रमण करना है.
आचार्य रजनीश ओशो |
तुम जो करो, उसमें मालकियत तुम्हारी रहे. आदत का उपयोग करो, खूब करो, करना ही पड़ेगा. आदत उपकरण है, साधन है.
तो पहली तो बात यह ख्याल में ले लेना, बोलोगे तो आदत है, उठोगे तो आदत है, चलोगे तो आदत है, लेकिन यह ध्यान रहे कि मालिक कौन है? अगर चलने की आदत के कारण चल रहे हो और तुम्हें चलना नहीं है. तुम कहते हो, हे भगवान! बचा, चलना नहीं है, लेकिन आदत है तो चले; क्या करें? धूम्रपान करना नहीं है, लेकिन कर रहे हैं, क्या करें? आदत है! बचाओ. आदत मालिक हो-बस, तो जड़ता लाती है.
तुम आदत के मालिक होओ, फिर कोई हर्जा नहीं; फिर कोई बात ही नहीं. फिर तुम्हें धूम्रपान करना हो तो मजे से करो. न करना हो, न करो. इतना ही ध्यान रहे कि तुम मालिक हो. मैं नहीं कहता कि धूम्रपान छोड़ो; बात ही फिजूल है. धूम्रपान से कुछ नहीं मिलता, छोड़कर क्या मिलेगा? अगर छोड़कर कुछ मिल सकता है तो पीकर भी कुछ मिल ही रहा होगा. तब तो धूम्रपान बड़ा मूल्यवान है.
कुछ लोगों ने तो ऐसा बना रखा है कि धूम्रपान छोड़ दोगे तो भगवान मिल जाएगा. काश, इतना सस्ता होता मामला! जो नहीं कर रहे है धूम्रपान, उनको क्या मिल गया है? कोई आदत महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण बन जाती है, अगर मालिक हो जाए; खतरनाक हो जाती है. और मजा यह है कि अगर तुम अपनी आदत के मालिक हो तो बहुत सी आदतें अपने आप छूट जाएंगी. छोड़ना न पड़ेगी. क्योंकि वे व्यर्थ हैं. धूम्रपान पाप नहीं है, मूढ़तापूर्ण है. पाप मैं नहीं कहता. पाप क्या है उसमें? एक आदमी धुएं को भीतर ले जाता है, बाहर लाता है, इसमें पाप है?
थोड़ा सोचो भी तो! धुएं की माला फेर रहा है, इसमें पाप कहा हो सकता है? छूता समझ में आती है कि मूढ़ है. नाहक ही फेफड़ों को खराब कर रहा है. इतनी स्वच्छ हवाएं मौजूद हैं... और जब तक मौजूद हैं, ले लो; जल्दी ही धुंआ-ही-धुंआ हो जाने वाला है. इतनी ताजी हवाएं मौजूद हैं, अगर फेफड़ों का ही ज्यादा अभ्यास करना है, प्राणायाम करो, स्वच्छ हवाओं को भीतर ले जाओ; सुवासित हवाओं को भीतर ले जाओ, उनकी माला जपो; रोग भीतर ले जा रहे हो! पाप कुछ भी नहीं है, मूढ़ता है. पाप कहना बहुत बड़ा शब्द हो गया. इतनी छोटी बात के लिए पाप नहीं कहना चाहिए.
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