जाति जनगणना : जरूरत स्वीकारने की समझ

Last Updated 11 Jun 2025 03:17:19 PM IST

पहलगाम आतंकी हमले के पश्चात देश में भारत-पाक युद्ध की आशंका बन रही थी। इस तनावपूर्ण अंतरराष्ट्रीय संकट के समय में राजनीतिक मामलों पर कैबिनेट कमिटी की बैठक से जातिगत जनगणना कराने की खबर ने देशवासियों को चौंका दिया था।


आश्चर्यचकित होने का पहला कारण था फैसले का समय और दूसरा इस मुद्दे पर भाजपा का यू-टर्न। गौरतलब है कि इस सवाल पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विकसित भारत संकल्प-यात्रा के एक कार्यक्रम में कहा था कि उनके लिए देश में सिर्फ चार जातिया हैं- मजदूर, युवा, महिला और किसान। 

इस आलोक में यह भी बताना जरूरी है कि उपरोक्त टिप्पणी का उद्देश्य बिहार में तत्कालीन महागठबंधन सरकार द्वारा कराई जा रही जाति सर्वे को सार्वजनिक तौर पर खारिज करना था। अब जबकि इस वर्ष बिहार विधानसभा चुनाव आसन्न है, भाजपा के इस निर्णय को यू-टर्न कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा। जातिवार जनगणना के पक्षकारों ने सरकार के इस निर्णय का स्वागत करते हुए कहा कि देर आए, दुरु स्त आए, लेकिन निर्णय के टाइमलाइन पर संशय व्यक्त किया गया था जिसके प्रति-उत्तर में अब एनडीए सरकार ने अगामी प्रक्रिया के समय सारणी की भी घोषणा कर दिया। आखिर क्यों? बीते वर्षो में भाजपा ने सदन से सड़क तक इसका जमकर विरोध किया था। कहा जा सकता है कि क्या यह निर्णय मजबूरी में लिया गया या इसके जरूरत को स्वीकारा गया है। यह जानना बेहद दिलचस्प है।

उत्तर-मंडल काल में जातिगत जनगणना की मांग निस्संदेह ओबीसी राजनीति के केंद्र में निरंतर रही है। तत्कालीन प्रधानमंत्री एच. डी. देवगौड़ा के नेतृत्व में संयुक्त मोर्चा सरकार ने  पहली दफा फैसला लिया था कि 2001 में जातिगत जनगणना होगी, परंतु वर्ष 1999 में सरकार बदली और फैसला भी बदल गया। एनडीए सरकार में तत्कालीन गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने सदन को सूचित किया था कि सरकार जातीय जनगणना नहीं कराएगी। सर्वविदित है कि भारतीय समाज का सबसे बड़ा हिस्सा सामाजिक-शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग था जिसमे लगभग तीन हजार जातियां शामिल थी। इन्हें मुख्यधारा से जोड़ना और विकसित करना किसी भी सरकार के लिए संवैधानिक प्रतिबद्धता मानी गई है। इस उद्देश्य से संविधान का एक पूरा का पूरा भाग -16 ( अनुच्छेद 330-342) राष्ट्र को समर्पित है।

इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए काका कालेलकर आयोग (प्रथम पिछड़ा वर्ग आयोग) एवं मंडल आयोग (दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग) का गठन हुआ किया गया था। इन रिपोर्ट में जाति जनगणना की जरूरत अंकित होने के बावजूद दशकों से यह मांग लंबित पड़ी थी। इसके पक्ष में सर्वसम्मति से पारित संसदीय प्रस्ताव के बाद यूपीए-ने सामाजिक-आर्थिक जातीय सर्वेक्षण 2011 कराई, लेकिन उसकी रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं कर पाई थी। भाजपा ने तो उक्त रिपोर्ट को सदा के लिए ठंडे बस्ते डाल दिया और राष्ट्रीय स्तर पर जातीय जनगणना की मांग को भी संसदीय सवाल-जवाब में साफ मना कर दिया। भाजपा को बिहार में चुनावी जीत तो मिली है लेकिन लगभग तीन दशक बाद भी वह एक राजनीतिक शक्ति नहीं बन पाई है। विदित हो  देश-स्तर पर भाजपा को आम चुनाव 2014 में बहुत बड़ा जनादेश मिलने के अगले ही साल बिहार विधानसभा चुनाव में उतनी ही बड़ी शिकस्त भी मिली थी। आगामी विधानसभा चुनाव में भी भाजपा को शासन-विरोधी लहर झेलना पड़ेगा।

अकस्मात जाति जनगणना कराए जाने का यह संभावित कारण हो सकता है। बिहार में राजद ने जातीय जनगणना और आबादी के हिसाब से हिस्सेदारी को पुरजोर तरीके से मुद्दा बना रखा है। भाजपा लंबे समय से ‘सवर्ण पार्टी’ की छवि से उबरने का प्रयास कर रही है। जाति जनगणना से वह ओबीसी और अन्य वंचित वगरे को यह संदेश देना चाहती है कि वह उनकी समस्याओं के प्रति गंभीर है। इस एक निर्णय से विपक्ष की मांग का जवाब भी दिया जा रहा है। इसे स्वीकार करके भाजपा विपक्ष की राजनीतिक बढ़त को संतुलित करना चाहती है। साथ ही 2024 और आगे के चुनाव की रणनीति सुनिश्चित करना भी भाजपा नीत सरकार की मंशा है। इसके माध्यम से जातिगत आंकड़ों के आधार पर चुनावी रणनीति तैयार करना अधिक संभव होगा, जिससे मतदान पैटर्न को बेहतर समझा जा सकेगा। 

बहरहाल यह एक बहुस्तरीय रणनीतिक कदम है, जिसमें राजनीतिक लाभ, सामाजिक संतुलन, नीतिगत दक्षता, प्रगतिशील विचार और लोकप्रिय समर्थन की संभावनाएं निहित हैं। बावजूद इसके कि जाति जनगणना का निर्णय विपक्षी राजनीतिक पार्टयिों के दवाब में लिया गया है, अगर इसका अनुपालन सही, सम्यक एवं समदर्शी ढंग से किया जाए, तो यह भारतीय लोकतंत्र को अधिक प्रतिनिधित्वशील, लोक कल्याणकारी एवं समावेशी बना सकता है। दूसरे शब्दों में यह जाति जनगणना सामाजिक न्याय के अनुपालन की दिशा में मंडल पार्ट-2 की भूमिका का सम्यक निर्वहन कर सकता है। समय की मांग है कि जाति जनगणना के माध्यम से सामाजिक न्याय को न सिर्फ जीवन-पद्धति का हिस्सा बनाया जाए अपितु मानवीयता एवं मानव अधिकार को भी उद्दात रूप प्रदान किया जाए।

प्रो. नवल किशोर


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