राहुल बनाम चुनाव आयोग : देश की छवि से घात

Last Updated 10 Jun 2025 02:19:25 PM IST

एक दृश्य की कल्पना करिये। अगर भारत की छवि ऐसी बन जाए कि यहां सरकार संविधान को ताक पर रख अपने अनुसार चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति करती है, आयोग फर्जी तरीके से मतदाता सूची बनाता है, मतदान के आंकड़े गलत जारी करता है तथा सरकार के पक्ष में मतदान परिणाम लाता है तो क्या होगा?


राहुल बनाम चुनाव आयोग : देश की छवि से घात

यानी पूरी सरकार अनैतिक है जो धांधली के आधार पर संवैधानिक शक्तियों और संस्थाओं का दुरुपयोग करते हुए सत्ता में बनी हुई है। एक देश के रूप में भारत की साख को नष्ट करने का इससे गंदा अभियान कुछ नहीं हो सकता। 

लोक सभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और अनेक नेता, एक्टिविस्ट मीडिया के कुछ चेहरे लंबे समय से यही अभियान चला रहे हैं। इसके साथ न्यायपालिका सहित अन्य संवैधानिक संस्थाओं को भी इसी तरह संदिग्ध बनाने की रणनीति साफ दिखाई देती है। इन सबके लिए सुविधाओं के अनुसार एकपक्षीय तथ्य और आंकड़े दिए जाते हैं। राहुल गांधी ने 2024 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव को लोकतंत्र में धांधली का ब्लूप्रिंट बताते हुए लिखा है कि यह मैच फिक्सिंग अब बिहार में भी दोहराई जाएगी और फिर उन जगहों पर भी ऐसा ही किया जाएगा, जहां-जहां भारतीय भाजपा हार रही होगी। ‘अगर आपके पास छिपाने के लिए कुछ नहीं है तो मेरे लेख में दिए गए सवालों के जवाब दें और इसे साबित करें : 

महाराष्ट्र समेत सभी राज्यों के लोक सभा और विधानसभाओं के हाल में हुए चुनाव के लिए समेकित, डिजिटल, मशीन-पठनीय मतदाता सूची प्रकाशित करें और महाराष्ट्र के मतदान केंद्रों से शाम पांच बजे के बाद की सभी सीसीटीवी फुटेज जारी करें। पहली बार पढ़ने पर अवश्य इसमें सनसनाहट पैदा होती है। किंतु चुनाव प्रक्रिया में निचले स्तर भी जुड़ी राजनीति के साधारण व्यक्ति के गले कोई बात नहीं उतरेगी। वैसे ये आरोप नये नहीं हैं। पिछले वर्ष भी चुनाव आयोग ने ऐसे आरोपों का उत्तर दिया था। जिन्हें तथ्यों से कोई लेना-देना नहीं और संपूर्ण भारत की सत्ता को फासिस्ट, अनैतिक और सारी लोकतांत्रिक संस्थाओं का दमन कर कब्जा करने वाला साबित कर विश्व भर में बदनाम करने का जिनका सपना हो वे ऐसे ही खंडित हो चुके आरोपों को बार-बार दोहराएंगे। निर्वाचन आयोग ने छह राष्ट्रीय पार्टयिों से बातचीत के लिए अलग-अलग आमंत्रित किया था।

कांग्रेस को छोड़कर शेष सभी चुनाव अधिकारियों से मिले, अपना पक्ष रखा तथा उत्तर सुना। केवल कांग्रेस ने चुनाव आयोग द्वारा 15 मई को प्रस्तावित बैठक में भाग नहीं लिया था। चुनाव आयोग शायद फिर देश के सामने तथ्य रखे। मीडिया में आयोग के हवाले से जो वक्तव्य आया है उसमें कहां गया है कि किसी के द्वारा प्रसारित कोई भी गलत सूचना चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा नियुक्त हजारों प्रतिनिधियों की बदनामी तथा चुनाव कर्मचारियों का मनोबल तोड़ने वाला होता है, जो इस बड़ी कवायद के लिए अथक परिश्रम करते हैं। यह सही है कि देश में चुनावी प्रक्रिया में जितनी संख्या में सरकारी कर्मचारी, गैर सरकारी संस्थाएं, राजनीतिक दल , पत्रकार, आम लोग लगते हैं ऐसे बयान उन सबके परिश्रम को निष्फल करने वाला तथा उनके अंदर गुस्सा और निराशा पैदा करना है। 

चुनाव आयुक्तों की नियुक्तियों पर ही एकपक्षीय अभियान चल रहा है। स्वतंत्रता के बाद से केंद्र सरकार चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति करती रही है। इसके विपरीत राहुल और विरोधी ऐसी छवि बना रहे हैं मानो पहले नियुक्ति दूसरे तरीके से होती थी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार ने उसे पलट दिया है। सच यह है कि इसमें विपक्ष के नेता का प्रावधान डालकर ज्यादा विमर्शमूलक बनाया गया है। 25 चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा हुई। राजनीति में रहते हुए राजनीतिक सत्ता को ही अविसनीय बना देना किस तरह की लोकतांत्रिक सोच का परिचायक है? अब आएं महाराष्ट्र चुनाव संबंधी अन्य आरोपों पर। राहुल आरोप लगा रहे हैं कि मतदाताओं की संख्या वृद्धि असामान्य है। बोगस मतदाता शब्द प्रयोग उन्होंने इस आधार पर किया कि 5 वर्षो में 31 लाख मतदाता तथा केवल अंतिम पांच महीना में 41 लाख मतदाता बढ़ गए। बढ़े हुए 40 लाख 81 हजार 229 मतदाताओं में से 26 लाख 46 हजार 608 युवा मतदाता थे। पुराने आंकड़े देखिए। 2014 से 2019 के बीच 63 लाख नये मतदाता जुड़े जबकि 2009 से 2014 के बीच 75 लाख तथा 2004 से 2009 के बीच एक करोड़ नये मतदाता बने थे।

अब इससे तुलना करिए। क्या लगता है कि 2024 में ऐसा असामान्य हो गया या बोगस मतदाता आ गए जैसा राहुल बता रहे हैं? लोक सभा और विधानसभा चुनाव के बीच मतदाता वृद्धि का आंकड़ा भी यही बताता है। 2024 विधानसभा में लोक सभा की तुलना में 5% अधिक मतदाता थे तो 2009 में 4%, 2014 में 3%, 2019 में एक प्रतिशत और 2024 में 4% अधिक मतदाता थे। इसलिए यह कहना कि 2024 महाराष्ट्र चुनाव में असामान्य हो गया तथ्यों के आधार पर हास्यास्पद लगता है। अंतिम घंटे में मतदान प्रतिशत बढ़ाने के आरोप की सच्चाई जानने के लिए प्रति घंटे मतदान का औसत निकालिए। हर घंटे औसत 5.83% मतदान हुआ। वे पूछ रहे हैं कि अंतिम एक घंटे में 7.8% की वृद्धि कैसे हो गई? 5 बजे से 6 बजे के बीच की बात करने वालों को समझना चाहिए कि जो मतदाता 6 बजे तक मतदान केंद्र पर पहुंच जाते हैं देर होने पर भी वह मतदान करते हैं। मतदान प्रतिशत भी 5 से 6 बजे के बीच का ही अंकित होगा, किंतु हो सकता है 7 बजे 8 बजे तक मतदान हुआ हो।

यह महाराष्ट्र तक सीमित भी नहीं है। आप 2024 के लोक सभा चुनाव के कुछ आंकड़े देखिए। उदाहरण के लिए दूसरे चरण में शाम 5 बजे तक मतदान प्रतिशत 60.96 था। अगले दिन आंकड़ा 66.71% आया। इस तरह वृद्धि 5.75% की थी, लेकिन महाराष्ट्र में उस चुनाव में कांग्रेस और महा विकास अगाड़ी की विजय हुई थी। राहुल और विरोधी उसका उल्लेख नहीं करते। आप स्वतंत्रता के बाद से किसी भी चुनाव के आंकड़ों को देखेंगे तो सबमें इस तरह कुछ चुनिंदा आंकड़ों के विश्लेषण से विसंगति धांधली दिखाई पड़ेंगे। दूसरे तथ्य सामने आते ही आशंकाएं ध्वस्त हो जाएंगी। ऐसा नहीं है कि चुनाव में धांधली नहीं हुई। अतीत में अनेक चुनाव धांधली से जीते गए। यह सब कांग्रेस के राज में हुआ। यह खतरनाक प्रवृत्ति है। इसको हर हाल में परास्त करना होगा।
(लेख में विचार निजी है)

अवधेश कुमार


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