मोदी के 11 वर्ष: जुमलों से हमलों तक

Last Updated 10 Jun 2025 02:14:00 PM IST

वैसे तो नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री के रूप में 26 मई 2025 को 11 साल पूरे कर लिए थे, लेकिन अपने तीसरे कार्यकाल की शपथ उन्होंने 9 जून 2024 को ली इसलिए उनके तीसरे कार्यकाल की सरकार की वर्षगांठ 9 जून 2025 को मनाई गई।


मोदी के 11 वर्ष: जुमलों से हमलों तक

यदि कार्यकाल की दृष्टि से देखें तो नरेंद्र दामोदर दास मोदी लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री चुने जाने वाले दूसरे प्रधानमंत्री हैं। वहीं कार्यकाल की दृष्टि से वें तीसरे स्थान पर हैं और उनसे ऊपर केवल जवाहरलाल नेहरू एवं इंदिरा गांधी का कार्यकाल रहा है।

वर्तमान परिस्थितियों के हिसाब से मोदी अपना तीसरा कार्यकाल भी सफलतापूर्वक पूरा करते दिखाई देते हैं तब वह कार्यकाल की दृष्टि से अपने इसी कार्यकाल में दूसरे स्थान पर आ जाएंगे। यदि मोदी का एक प्रधानमंत्री की दृष्टि से एक विवेचन किया जाए तो  प्रधानमंत्री एवं सरकार के मुखिया के रूप में उनकी खूबियां और खामियां दोनों ही सामने आती हैं। 26 मई 2014 को पहली बार सांसद चुने जाने के बाद ही वे प्रधानमंत्री पद पर आसीन हुए जैसे पहली बार विधायक चुने जाने के बाद गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे। 

अपने विशिष्ट अंदाज में उन्होंने संसद भवन की ड्योढ़ी पर माथा टेककर संसद में प्रवेश किया तो भावुक देश को बहुत आशाएं जगी थी। अपने पहले भाषण में भी मोदी ने देश को चुनाव में ‘अच्छे दिनों’ के वादे को पूरा करने का विश्वास दिलाया। साथ ही ‘सबका साथ सबका विकास’ का नारा देकर सारी राजनीतिक का कटुता भुलाकर देश के सर्वागीण विकास की बात की और खुद को प्रधानमंत्री के बजाय ‘प्रधान सेवक’ की संज्ञा दी तथा कहा कि वह एक शासक नहीं बल्कि ‘चौकीदार’ के रूप में देश के हितों की रक्षा करेंगे।

मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में निराश ही नहीं किया और एक से बढ़कर एक अभिनव योजनाएं देश के सामने रखीं, जिनमें जनधन योजना, उज्ज्वला योजना, अटल पेंशन योजना, महिला कल्याण व  स्वच्छ भारत मिशन जैसी योजनाओं के माध्यम से उन्होंने आम आदमी का दिल जीत लिया। अपने इस कार्यकाल में उन्होंने नोटबंदी तथा पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक करने जैसे कड़े निर्णय देकर दिखाया कि अपने संकल्प के पक्के हैं। उनकी राजनीतिक चतुराई के आगे विपक्षी पूरे कार्यकाल में एक संभ्रम की स्थिति में रहे और राहुल गांधी को तो उन्होंने इस तरह निशाने पर रखा कि वे कभी भी खुद को उनके प्रतिद्वंद्वी साबित नहीं कर पाए।

और बचकाने शब्दों ‘चौकीदार ही चोर है’ या ‘खून का सौदागर’ कहकर राहुल और उनकी मां सोनिया दोनों फंसे रहे। ऐसा नहीं कि मोदी का यह कार्यकाल एकदम सफल ही रहा उसमें विपक्ष को आलोचना का भी पूरा मौका मिला। उनके ‘अच्छे दिन’ और 15 लाख रुपये हर भारतीय के खाते में आने की खूब मजाक बनी जिसे बाद में अमित शाह ने एक ‘चुनावी जुमला’ करार देकर जान छुड़ाई। उनका नोटबंदी से कालाधन व आतंकवाद नियंत्रण का पासा भी उल्टा पड़ा। 2019 में जब लोक सभा चुनाव की घोषणा की गई राजनीतिक विश्लेषकों का अनुमान था कि आएंगे तो मोदी ही पर उनकी चमक और धमक दोनों कम होगी, लेकिन ‘मोदी है तो मुमकिन है’ और ‘इस बार 300 पार’ का नारा खूब चला और भारतीय जनता पार्टी को पहली बार अपने ही बलबूते पर बहुमत मिला। 

एनडीए की 353  सीटों उसका हिस्सा 303 पर पहुंच गया जो एक बड़ी उपलब्धि थी। अपने दूसरे कार्यकाल में मोदी का आत्मविश्वास आसमान छूता नजर आया। धारा 370 हटा दी गई, राम मंदिर का शिलापूजन हो गया, नागरिकता कानून संशोधन पास हो गया, पुलवामा में हुए हमले के बाद उन्होंने एक बार फिर पाकिस्तान पर एयर स्ट्राइक करने का साहस दिखाया, कृषि कानून, कोविड वैक्सीन मुफ्त राशन, मोबाइल अस्पताल और ताली थाली दीप आदि ने मोदी की लोकप्रियता को और भी बढ़ाया, लेकिन कोविड की दूसरी लहर में सारी व्यवस्था चरमरा गई लाखों मौत हुई, वैक्सीन बनाने में मानकों की अनदेखी महंगी पड़ी जो आज तक संदेह पैदा करती है।  कृषि कानून, पर उन्हें यू टर्न लेना पड़ा बेरोजगारी व महंगाई बेकाबू हो गई दूसरे कार्यकाल में सरकार ने सीबीआई, ईडी और इनकम टैक्स जैसी संस्थाओं का इस्तेमाल विपक्षियों को घेरने और कुचलने में किया। 

उन पर बड़बोलेपन का आरोप तो खैर अब तक लगता है। 2024 के चुनाव में भी मोदी ‘वन मैन आर्मी’ की तरह लड़े और तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भाजपा को सबसे बड़े राजनीतिक दल के रूप में वापस लाने में कामयाब रहे भले ही सीटों की संख्या 303 से गिरकर केवल 240 रह गई। पहलगाम हमले के बाद जिस तरह का स्टैंड उन्होंने लिया उसकी उम्मीद पाकिस्तान को भी नहीं थी। दृढ़ संकल्प के साथ उन्होंने पाकिस्तान को गहरी चोट और सबक दिए हैं। हालांकि एकाएक किए गए युद्ध विराम ने मोदी सरकार को को सवालों ने घेर लिया है। राजनीति बहुत सारी करवटें लेगी। यह तो समय ही बताएगा कि 75 साल के होने जा रहे मोदी आदशरे के नाम पर संन्यास ले लेंगे या फिर कोई नया जुमला उछाल कर अपनी सर्वोच्चता बरकरार रखेंगे।

डॉ. घनश्याम बादल


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