बांग्लादेश : पाकिस्तान बनने की राह पर
यह प्रश्न महत्त्वपूर्ण है कि क्या बांग्लादेश पाकिस्तान बनने जा रहा है? भारत के विदेश मंत्री जयशंकर ने स्पष्ट किया है कि हर समस्या के लिए बांग्लादेश की अंतरिम सरकार भारत के ऊपर दोषारोपण न करे। यह तरीका पाकिस्तान का रहा है।
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पिछले कुछ वर्षो से पुख्ता संकेत हैं कि बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच पुन: एक नई लकीर खींची जा रही है जिसका मकसद भारत का विरोध है। दोनों देशों की इंटेलिजेंस भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में अशांति फैलाने की योजना की तैयारी में हैं।
जब से शेख हसीना को देश छोड़ने के लिए विवश किया गया है तब से बांग्लादेश में कट्टरपंथी ताकतें मजबूत हुई हैं। बांग्लादेश में कट्टरता, अल्पसंख्यकों पर हमले या लोकतांत्रिक मूल्यों में गिरावट जैसे संकेत देखे जाते हैं। हाल के वर्षो में हिन्दू, बौद्ध और ईसाई समुदायों पर हमले हुए हैं। यूनुस ने पिछले छह महीनों में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से दो बार मुलाकात की। एक बार न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान और दूसरी बार काहिरा में डवलपिंग समिट में। दोनों देशों ने सीधे व्यापार को फिर से शुरू किया है और वीजा प्रतिबंधों में ढील दी है। बांग्लादेश ने पाकिस्तान से थंडर फाइटर जेट खरीदने में रुचि दिखाई है, जो पाकिस्तान और चीन द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किए गए हैं। यह बांग्लादेश के ‘फोर्सेस गोल 2030’ कार्यक्रम का हिस्सा है।
पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई बांग्लादेश में गतिविधियां बढ़ा रही है और भारत के खिलाफ आतंकी हमलों के लिए बांग्लादेशी या रोहिंग्या आतंकवादियों का उपयोग कर सकती है। चीन, तुर्की, और पाकिस्तान मिल कर बांग्लादेश में ‘ग्रेटर बांग्लादेश’ की अवधारणा को बढ़ावा दे रहे हैं, जिससे भारत के पूर्वोत्तर में अशांति फैल सकती है। बांग्लादेश की राजनीति पाकिस्तान के रास्ते पर चल पड़ी है। सलाहकार राष्ट्रपति प्रो. यूनुस बांग्लादेश को ऐसे मोड़ पर ला खड़ा करने की साजिश रच रहे हैं जहां से कट्टरपंथ की अंधेरी सुरंग शुरू होती है, जिसका कोई अंत नहीं है। पाकिस्तान 75 सालों में इसी सुरंग में फंसा हुआ है जहां से उसका निकलना अब असंभव प्रतीत होता है।
\बांग्लादेश में विद्यार्थी संगठनों को कट्टरपंथी बनाया जा रहा है और सत्ता के गलियारों में उनकी शिरकत के रास्ते बनाए जा रहे हैं। इस बात की ताकीद और कोई नहीं, बल्कि वहां की सेना ने की है। भारत के लिए चिंता का विषय इसलिए भी है कि बांग्लादेश-म्यांमार सीमा पर भारत विरोधी मुहिम की झलक दिखाई दे रही है। दरअसल, यह सब कुछ सुनयोजित रणनीति का हिस्सा है। बांग्लादेश और म्यांमार की सीमा महज 271 किमी. की है, लेकिन है बहुत महत्त्वपूर्ण, विशेषकर भारत के लिए। मिजोरम की सीमा दोनों देशों से मिलती है। म्यांमार के 3 जिले, जो अशांत हैं, इसी सीमा पर स्थित हैं। बांग्लादेश का कॉक्स बाजार दूसरी तरफ है। भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों के साथ 5 देशों की सीमाएं मिलती हैं-चीन, भूटान, नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार।
सब कुछ चीन के इशारे पर किए जाने की तैयारी है। आईएसआई की बांग्लादेश में बढ़ती गतिविधियों से भारत की पूर्वोत्तर सीमा पर खतरा बढ़ गया है। सूत्रों के अनुसार, आईएसआई बांग्लादेश को आतंकी गतिविधियों के लिए लॉन्चपैड के रूप में उपयोग करने की कोशिश कर रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह त्रिकोणीय गठबंधन भारत की क्षेत्रीय स्थिति को कमजोर कर सकता है। बांग्लादेश के लालमोनिरहाट जिले में चीन द्वारा प्रस्तावित हवाई अड्डा परियोजना भारत की सुरक्षा के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि यह रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण सिलीगुड़ी कॉरिडोर के पास है। म्यांमार में चल रहे गृह युद्ध के दौरान भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के कई विद्रोही समूहों ने म्यांमार में शरण ली है, और वहां की सैन्य जुंटा के साथ समझौते किए हैं। इन समूहों को म्यांमार के उत्तरी पर्वतीय क्षेत्रों में ठिकाने बनाने की अनुमति दी गई है, जिससे वे भारत के खिलाफ गतिविधियां चला सकते हैं।
बांग्लादेश की स्थापना 1971 में धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप में हुई थी, जिसमें बांग्ला भाषा और संस्कृति को राष्ट्रीय पहचान का आधार माना गया। हालांकि, हाल के वर्षो में इस्लामी पहचान को प्राथमिकता देने की प्रवृत्ति बढ़ी है। इस परिवर्तन का एक कारण यह भी है कि 1971 के मुक्ति संग्राम को प्रत्यक्ष रूप से अनुभव करने वाली पीढ़ी धीरे-धीरे समाप्त हो रही है, जिससे नई पीढ़ी की पहचान में बदलाव आ रहा है।
इस्लामी समूहों और धार्मिंक राजनीतिक दलों ने बांग्लादेशी पहचान को इस्लाम पर केंद्रित करने के प्रयास किए हैं, जिससे ‘पहले बंगाली या पहले मुस्लिम?’ की बहस तेज हुई है। 2024 के जुलाई-अगस्त में हुए छात्र आंदोलनों में धार्मिंक पहचान को प्रमुखता दी गई जो पहले के धर्मनिरपेक्ष आंदोलनों से भिन्न था। बांग्लादेश ने हाल के दशकों में आर्थिक प्रगति की है और इसे दक्षिण एशिया का ‘नया टाइगर’ कहा गया है। इसकी अर्थव्यवस्था भारत के साथ मजबूती से जुड़ी हुई है, और विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान के साथ पूर्ण निकटता बांग्लादेश के आर्थिक हितों के खिलाफ होगी।
बांग्लादेश की बांग्ला संस्कृति और भाषा उसकी पहचान का मूल हिस्सा है, जो इसे पाकिस्तान से अलग करती है। बांग्लादेश 1971 में पाकिस्तान से अलग होकर स्वतंत्र देश बना, मुख्य रूप से भाषाई (बांग्ला बनाम उर्दू), सांस्कृतिक और आर्थिक भेदभाव के कारण। शेख मुजीब-उर-रहमान के नेतृत्व में अवामी लीग ने स्वतंत्रता की मांग की और भारत की मदद से बांग्लादेश ने आजादी हासिल की। तब से बांग्लादेश ने अपनी पहचान धर्मनिरपेक्ष, बांग्ला भाषी राष्ट्र के रूप में बनाई जो पाकिस्तान की उर्दू-प्रधान और इस्लामी पहचान से अलग थी। यह मानना जल्दबाजी होगा कि बांग्लादेश पाकिस्तान बन गया है।
बांग्लादेश एकमात्र देश है जो दोहरे उपनिवेशवाद के चंगुल में फंसा रहा। पहले अंग्रेजों की गुलामी और आजादी के बाद पाकिस्तानियों की गुलामी। उनका खास दोहन हुआ, यह बात हर बांग्लादेशी को मालूम है, युवा पीढ़ी को भी यह बात समझनी पड़ेगी। बांग्लादेश दक्षिण एशिया का इकनोमिक टाइगर बना तो भारत से बेहतर संबंध के कारण। पाकिस्तान के रास्ते पर बांग्लादेश मुड़ा तो उसकी भी स्थिति बदहाल बन जाएगी।
(लेख में व्यक्त विचार निजी हैं)
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