जहरीली शराब : सस्ती शराब से ढूंढा जा रहा उपाय
पिछले पांच सालों में जहरीली शराब पीने से पंजाब में 176 लोगों की मौतें हो चुकी हैं। अपंग होने वाले भी कम नहीं रहे।
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महिलाएं भी इन आंकड़ों में हैं। 29 जुलाई, 2020 को विषैली शराब से पंजाब में पहली मौत की खबर अमृतसर जिले के एक गांव से आई थी किंतु अगस्त तक अमृतसर, गुरुदासपुर और तरनतारन के तीन जिलों में मौंतों का आंकड़ा 105 पहुंच गया था। तब विपक्षी दल शिरोमणि अकाली दल का आरोप था कि मंत्रियों और विधायकों के संरक्षण में राज्य में अवैध शराब का धंधा पनप रहा है। जवाब में तत्कालीन मुख्यमंत्री अमरेन्द्र सिंह ने याद दिलाया था कि 2012 व 2019 में ऐसी ही घटनाएं अकाली सरकार के दौरान हुई थीं।
अब आप सरकार के कार्यकाल में भी दो बार जहरीली शराब पीने से मौत का तांडव हो चुका है। पहली बार का कांड संगरूर में हुआ। मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान का यह गृह जिला है। उनके मंत्रिमंडल में दो अन्य मंत्री भी इसी जिले से आते हैं। मुख्यमंत्री के वहां पहुंचने पर गांव वालों का कहना था कि क्षेत्र में शराब का धंधा खुले आम चल रहा है। जहरीली शराब से मौतों का नवीनतम मामला अमृतसर के मजीठा का है, जहां जहरीली शराब पीने से पांच-छह गांवों के 27 लोगों की मौत हुई। मरने वालों में अधिकांश ईट-भट्ठों और खेतों में काम करने वाले मजदूर थे। सोलह संदिग्ध अपराधियों की गिरफतारी भी हो चुकी है। इनमें दिल्ली और लुधियाना के व्यापारी भी हैं।
जहरीले शराब कांडों में सबसे पहले ढूंढ़ उन व्यापारी या आपूर्तिकर्ताओं की ही होती है, जो एलकोहल आदि रसायनों को अवैध रूप से जहरीली शराब बनाने वालों को बेच देते हैं। 29 जुलाई, 2020 के विषैली शराब कांड में मिथनॉल के तीन ड्रम लुधियाना के एक पेंट दुकानदार से लिए गए थे। मजीठा में भी मिथनॉल का उपयोग हुआ था। मिथनॉल, ईथनॉल से सस्ता पड़ता है। उसे हल्का या डायल्यूट करके शराब बनाई जाती है। ज्यादा किक वाली बनाने के लिए उसमें न जाने क्या-क्या डाल दिया जाता है।
अमृतसर के सांसद गुरुजीत सिंह औजला का इस कांड पर कहना है कि अवैध शराब और ड्रग्स के धंधेबाजों की आबकारी और पुलिस विभाग वालों से सांठगांठ है। मजीठा में शराब पुलिस चौकी से केवल 200 मीटर की दूरी पर बेची जा रही थी किंतु मजीठा कांड के बाद सामाजिक संदभरे में खास बात यह हुई है कि विभिन्न आलेखों और विश्लेषणों से ऐसा नैरेटिव उभारा गया है कि सरकार आम जन या आम पियक्कड़ के हित में सस्ती शराब उपलब्ध कराए तो जहरीली शराब कांडों की त्रासदी पर लगाम लगेगी। मजीठा कांड पर सांसद औजला का कहना था कि सरकार की शराब के दाम बढ़ा कर मंहगी करने की नीति के कारण ही गरीब सस्ती और नकली शराब पीने को मजबूर हैं।
पिछले पांच सालों में पंजाब में जहरीली शराब पीने से 176 लोगों की मौत हुई हैं। शराब की ज्यादा दुकान खोलने और उनको महंगी करने के पीछे सरकारी तर्क है कि इससे लोग नकली और जहरीली शराब नहीं पियेंगे और उनके पास सही शराब पीने का विकल्प रहेगा। शराब जब महंगी होगी तो कम लोग पियेंगे परंतु हो यह रहा है कि शराब चाहे कितनी ही महंगी हो जाए, उसकी खपत कम नहीं हो पा रही है।
पंजाब ही नहीं, देश की सभी राज्य सरकारें शराब बेच कर राजस्व को अपनी आय का प्रमुख स्रेत बनाए हुए हैं। सात-आठ प्रतिशत ही नहीं, कहीं-कहीं तो राज्यों के राजस्व में बीस प्रतिशत तक इसका अंश होता है। शराब संदर्भित विषय राज्यों के हैं। शराब से भारत में पांच लाख तीस हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का राजस्व प्राप्त होता है। राज्य सरकारें शराब के प्रसार को कम से कमतर करने की बजाय ज्यादा से ज्यादा सरकारी लाइसेंसप्राप्त शराब की दुकान खोलने की होड़ में हैं। राजनीतिज्ञों से तो अपेक्षा ही नहीं है कि ईमानदारी से वे शराबबंदी का प्रयास करेंगे किंतु न्यायालयों से भी अब तक के अनुभवों को देखते हुए बहुत आशा नहीं है।
न्यायालयों से कई तरह की टिप्पणियां निकलती हैं परंतु शराब का प्रसार न करने की सीख न्यायालयों से शायद ही आई हो। बिहार की शराबबंदी पर वहां के उच्च न्यायालय की टिप्पणियां भी जगजाहिर हैं। तीस सितम्बर, 2016 में पटना हाई कोर्ट ने तो यहां तक आशंका जतलाई थी कि बिहार में शराबबंदी कार्यान्वित नहीं हो पाएगी। सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश भी एक बार शराब के केसों से न्यायालय के मुकदमों के बढ़ते अंबार पर चिंता व्यक्तकर चुके थे।
कोरोना काल में मई, 2020 में शराब की दुकानों पर जब लोग एक दूसरे के कंधों पर चढ़ शराब लेने की होड़ में दिख रहे थे तब सुप्रीम कोर्ट का ही राज्य सरकारों को सुझाव था कि शराब की होम डिलीवरी पर विचार किया जाए। सरकार की होम डिलीवरी से शह पाकर अब माफिया भी घर-घर होम डिलीवरी कर रहे हैं। स्कूलों, धार्मिक स्थलों और बस्तियों के बीच में शराब की दुकानों और सरकारी ठेकों के विरोध होने पर गिरफ्तारियों पर भी त्वरित न्यायालयी न्याय नहीं मिले हैं।
बिहार में 5 अप्रैल, 2016 को शराबबंदी कानून लागू हो गया था। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कहते हैं कि शराबबंदी लागू करना बापू का अनुसरण करना है। जहरीली शराब से मौतों और मुआवजे के संदर्भ में बिहार के मुख्यमंत्री अलग ही रुख रखते हैं। बिहार में दिसम्बर मध्य, 2022 में तीन दिनों के भीतर 66 लोगों की मौत हुई थी। तब विधानसभा में कठोर लहजे में उन्होंने अक्सर याद किए जाने वाला बयान दिया था कि जहरीली शराब पीकर मरने वालों से उन्हें कोई सहानुभूति नहीं है। जो पीएगा वो मरेगा। शराब से मौत पर कोई मुआवजा नहीं मिलेगा। उनके बयान पर भाजपा ने विपक्ष में रहते हुए इस्तीफा मांगा था।
यह तो निर्विवाद है कि शराबबंदी से सामाजिक कल्याण को बल मिलेगा। वाहन दुर्घटनाओं, महिला हिंसा का बड़ा कारण शराब भी है। शराबियों के जमवाड़े स्कूलों तक में जाने पर भय पैदा कर रहे हैं। गरीबी और जहरीली शराब पीने वालों को जोड़ने वाले नैरेटिव के आगे और मजबूत होने की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता किंतु ऐसे में इस हकीकत से भी कैसे आखें मूंदी जा सकती है कि कई बार स्थानीय स्तर पर घरों में ऐसी शराब बनाने वाले भी वंचित और गरीब ही होते हैं और कई बार जहरीली शराब पीकर मरने वालों में उन परिवारों के सदस्य भी होते हैं।
(लेख में विचार निजी हैं)
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