राफेल विमान सौदा हो सकता है रद्द

Last Updated 31 May 2025 12:23:36 PM IST

फ्रांस की फ्रांसीसी डिफेंस कंपनी डसॉल्ट एविएशन भारत को राफेल लड़ाकू विमान का कूट संकेत (सोर्स कोड) देने को तैयार नहीं है। कूट संकेत को नहीं देने से भारत और फ्रांस के बीच मतभेद गहराते जा रहे हैं।


राफेल विमान सौदा हो सकता है रद्द

भारत की इच्छा थी कि इस कूट तकनीक के मिलने के बाद भारत अपनी ब्रह्मोस जैसी स्वदेशी  मिसाइलें और अन्य रक्षा पण्रालियां राफेल में जोड़ कर उन्हें  बहुआयामी रूपों में इस्तेमाल कर लेगा। लेकिन कूट संकेत के बिना यह संभव नहीं है। इस कारण राफेल सौदा निरस्त भी हो सकता है। 

एक समय था जब फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खूब गलबहियां डाले दिखाई देते थे। अब उसी फ्रांस ने भारत को कूट संकेत देने से मुंह फेर लिया है। यह सोर्स कोड मूल रूप में सॉफ्टवेयर होता है। इससे पहले भी भारत के स्वदेशी लड़ाकू विमान इंजन कावेरी के लिए फ्रांसीसी कंपनी ने भारत को मदद करने से मना कर दिया था। किसी भी विमान या कंप्यूटर आधारित संचार प्रणाली से जुड़े विमान या उपकरण के लिए कूट संकेत प्रोग्रामर द्वारा तैयार किया जाता है। इसी के दर्ज होने पर कंप्यूटर प्रक्रिया को आगे बढ़ाता है यानी कंप्यूटर कूट संकेत या सोर्स कोड किसी भी कंप्यूटर प्रोग्राम की नींव होता है।

दरअसल, प्रोग्रामर का सोर्स कोड निर्देशों का ऐसा समूह होता है, जो प्रोग्राम को संचालित करने का काम करता है। सोर्स कोर्ड लिखने की प्रक्रिया को आम तौर पर कोडिंग या प्रोग्रामिंग कहते हैं। इसी कोड को फ्रांस ने देने से मना कर दिया है। नतीजतन, भारत ने फ्रांस से जिन 26 राफेल मरीन विमानों की खरीद का सौदा करने की तैयारी की है, यदि वह इन विमानों को खरीद लेता है तो इस कोड के बिना राफेल में ब्रह्मोस मिसाइल और अन्य स्वदेशी हथियारों की संचालन प्रक्रिया राफेल में लोड नहीं कर पाएगा। तब ये हथियार चलाए ही नहीं जा सकेंगे। राफेल से वही हथियार चलाए जा सकेंगे, जो फ्रांस से खरीदे जाएंगे।

फ्रांस संभवत: यह तकनीक इसीलिए नहीं दे रहा है कि भारत की मजबूरी फ्रांस से हथियार खरीदने की बनी रहे। यह सौदा टूटता है तो भारत इसकी जगह रूस के एसयू-57 लड़ाकू विमान खरीद सकता है। रूस विमान के साथ कूट संकेत देने को राजी है। अतएव भारत अपनी मिसाइल और अन्य मारक हथियारों को इस विमान से शत्रु पर दाग सकता है। इस नाते भारत स्वदेशी हथियारों के निर्माण में आगे बढ़ेगा। अपने हथियारों को विदेशी बाजार में बेचने को भी स्वतंत्र रहेगा। भारत सरकार की मंशा स्वदेशी रक्षा उपकरणों के निर्माण को बढ़ावा देना भी है। इस दृष्टि से भारत ने अपनी वायुसेना के लिए पांचवीं पीढ़ी के आधुनिक डीप पेनिट्रेशन एडवांस मीडियम काम्बैट एयरक्रॉप्ट (एएमसीए) को स्वदेश में ही विकसित करने की बड़ी परियोजना पर काम करना शुरू कर दिया है।

इस परियोजना को अंजाम देने का काम सरकारी और निजी कंपनियों की संयुक्त भागीदारी से आगे बढ़ेगा और पांचवीं पीढ़ी के आधुनिक लड़ाकू विमानों के विकास का मार्ग प्रशस्त होगा। वस्तुत: सुरक्षा मामलों की केंद्रीय कैबिनेट समिति (सीसीएस) सरकार से सरकार के बीच सौदे के तहत 64 करोड़ रु पये की लागत से भारतीय नौसेना के लिए फ्रांस से 26 राफेल-एम (मैरी टाइम) विमानों की खरीद को अंतिम रूप दे चुकी है। इन्हें विमान वाहक पोत आईएनएस विक्रांत पर सुरक्षा के लिए खरीदा जा रहा था।

इनमें एक सीट वाले 22 और दो सीट वाले 4 लड़ाकू विमान खरीदे जाते। इस खरीद में फ्रांस सरकार की ओर से नौसेना के लिए हथियार, सिम्युलेटर, कलपुर्जे, सहायक उपकरण, स्पेयर पार्टस और पायलटों को प्रशिक्षण भी दिया जाना शामिल था। राफेल एम विमानों के अनुबंध पर हस्ताक्षर होने के बाद 37 से 65 महीनों के भीतर सप्लाई होनी थी यानी विमानों की आपूर्ति 2030-31 के भीतर हो जाएगी। फ्रांस से भारत ने 36 पूूर्व में भी राफेल विमान खरीदे जा चुके हैं।  लेकिन कूट संकेत नहीं देने के कारण यह सौदा निरस्ती के कगार पर पहुंच गया है। 

हिन्द महासागर क्षेत्र में चीन वर्चस्व बढ़ाने में लगा है। इसलिए अब भारत रूसी लड़ाकू विमान एसयू-57 खरीदने का विचार कर रहा है। रूसी राष्ट्रपति पुतिन एसयू-57 लड़ाकू विमान की प्रौद्योगिकी और सोर्स कोड भारत को देने को तैयार हैं। यदि भारत सरकार रूस से विमान खरीदती है,  तो रूसी कंपनी का दावा है कि वह एसयू-30 विमान उत्पादन ईकाई से ही इसी साल एसयू-57 लड़ाकू विमानों का उत्पादन भारत में शुरू कर देगी।

अभी तक पश्चिमी देशों  की तुलना में रूस ही है जो भारत का सबसे भरोसेमंद दोस्त रहा है। 1971 में पाकिस्तान से हुए युद्ध में रूस ने अपना जहाजी बेड़ा भारतीय समुद्र में भेज कर भारत का आत्मबल बढ़ाया था। फलत: भारत ने न केवल पाकिस्तान का भूगोल बिगाड़ कर नया देश बांग्लादेश बनवाया बल्कि 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों के हथियार डलवा कर दुनिया का सबसे बड़ा सैनिक समर्पण भी कराया।

प्रमोद भार्गव


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