मिजोरम : शरणार्थियों के कारण मुसीबत
मणिपुर में हिंसा (Manipur Violence) थम नहीं रही। बीते सौ दिनों से चल रही हिंसा ने करीबी राज्य मिजोरम (Mizoram Violence) की दिक्कतें और बढ़ा दी हैं। जहां भी कुकी लोगों को खतरा लग रहा है वे पलायन कर करीबी राज्य में चले जा रहे हैं।
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म्यांमार में लंबे समय से चल रही अशांति से उपजे पलायन का बोझ तो पहले से ही मिजोरम उठा रहा था। एक तो शरणार्थियों का आर्थिक और सामाजिक भार, दूसरा इस इलाके में उभरती सामरिक और आपराधिक दिक्कतें। विदित हो भारत और म्यांमार के बीच कोई 1,643 किलोमीटर की सीमा है, जिनमें मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड का बड़ा हिस्सा है। मिजोरम के छह जिलों की कोई 510 किलोमीटर सीमा म्यांमार से लगती है और अधिकांश खुली हुई है। अभी तीस दिसम्बर को म्यांमार सेना के 151 ‘तात्मदाव’ जवान मे हथियार के साथ भारतीय सीमा में लवंगताई जिले के टुइसेंटलॉग गांव के पास घुस आए। इनमें से कई घायल थे, असम राइफल्स इनकी देखभाल कर रही है।
महज 12.7 लाख के आबादी वाले छोटे से राज्य मिजोरम में इस समय म्यांमार और बांग्लादेश से आए चालीस हजार से अधिक शरणार्थी आसरा पाए हुए हैं। कोविड और केंद्र सरकार से मिलने वाले केंद्रीय कर का हिस्सा ना मिलने के कारण राज्य सरकार पर पहले से ही वित्तीय संकट मंडरा रहा है। हजारों शरणार्थियों के आवास, भोजन और अन्य व्यय पर राज्य सरकार को तीन करोड़ रुपए हर महीने खर्च करने पड़ रहे हैं और इसके चलते बहुत से सरकारी कर्मचारियों के वेतन और पेंशन का सही समय पर भुगतान नहीं हो पा रहा है।
पिछले साल अगस्त-सितम्बर में भी जब म्यांमार में सुरक्षा बलों और भूमिगत संगठन अरकान आर्मी के बीच खूनी संघर्ष हुआ था सैकड़ों शरणार्थी भारत की सीमा में लावंग्तालाई जिले में वारांग और उसके आसपास के गांवों आ गए थे। लावंग्तालाई जिले में ही कोई 5909 शरणार्थी हैं। चम्फाई और सियाहा जिलों में इनकी बड़ी संख्या है। राज्य के गृह मंत्री लाल्चामालियान्न विधान सभा में बता चुके हैं कि राज्य में इस समय 35 हज़ार म्यांमार के शरणार्थी हैं और इनमें से 30,177 लोगों को कार्ड भी जारी कर दिए गए हैं।
इसके अलावा चटगांव पहाड़ी (बांग्लादेश) में शांति के कारण कोई एक हजार लोग वहां के हैं। 12,600 शरणार्थी अभी तक मणिपुर से पहुंच चुके हैं। आज यहां शरणार्थियों की वैध संख्या पचास हजार हो चुकी है। हाल ही में राज्य सरकार ने बताया कि बढ़ते शरणार्थी का बोझ अब वहां सरकारी विद्यालयों पर पड़ रहा है ।अभी कोई 8100 शरणार्थी बच्चे यहां के स्कूलों में हैं। इनमें 6366 म्यांमार के, 250 बांग्लादेश और 1503 मणिपुर से हैं। इन बच्चों के लिए मिड डे मिल से लेकर किताबों तक का अतिरिक्त बोझ राज्य सरकार पर है। पड़ोसी देश म्यांमार में उपजे राजनैतिक संकट के चलते हमारे देश में हजारों लोग अभी आम लोगों के रहम पर अस्थाई शिविरों में रह रहे हैं।
यह तो सभी जानते हैं कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के पास किसी भी विदेशी को ‘शरणार्थी’ का दर्जा देने की कोई शक्ति नहीं है। यही नहीं भारत ने 1951 के संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन और इसके 1967 के प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। हमारे यहां शरणार्थी बन कर रह रहे इन लोगों में कई तो वहां की पुलिस और अन्य सरकारी सेवाओं के लोग हैं, जिन्होंने सैनिक तख्ता पलट का सरेआम विरोध किया था और अब जब म्यांमार की सेना हर विरोधी को गोली मारने पर उतारू है सो उन्हें अपनी जान बचने को सबसे मुफीद जगह भारत ही दिखाई दी, लेकिन यह कड़वा सच है कि पूर्वोत्तर भारत में म्यामार से शरणार्थियों का संकट बढ़ रहा है।
उधर असम में म्यांमार की अवैध सुपारी की तस्करी बढ़ गई है और इलाके में सक्रिय अलगाववादी समूह म्यांमार के रास्ते चीन से इमदाद पाने में इन शरणार्थियों की आड़ ले रहे हैं। ऐसे में असली शरणार्थी और संदिग्ध में विभेद का कोई तंत्र विकसित हो नहीं पाया है और यह अब देश की सुरक्षा का मुद्दा भी है। भारत के लिए यह विकट दुविधा की स्थिति है कि उसी म्यांमार से आए रोहिंग्या के खिलाफ देश भर में अभियान और माहौल बनाया जा रहा है, लेकिन अब जो शरणार्थी आ रहे हैं वे गैर मुस्लिम ही हैं-यही नहीं रोहिंग्या के खिलाफ हिंसक अभियान चलाने वाले बौद्ध संगठन अब म्यांमार फौज के समर्थक बन गए हैं।
म्यांमार से आ रहे शरणार्थियों का जत्था केंद्र सरकार के लिए दुविधा बना हुआ है। असल में केंद्र नहीं चाहती कि म्यांमार से कोई भी शरणार्थी यहां बसे क्योंकि रोहिंग्या के मामले में केंद्र का स्पष्ट नजरिया है, लेकिन यदि इन आगंतुकों का स्वागत किया जाता है तो धार्मिंक आधार पर शरणार्थियों से दुर्भाव करने से दुनिया में भारत की किरकिरी हो सकती है। मिजोरम सरकार केंद्रीय गृह मंत्रालय को बता चुकी है कि वह म्यांमार में शांति स्थापित होने तक किसी भी शरणार्थी को जबरदस्ती सीमा पर नहीं धकेलेगी। जब विदेश के शरणार्थियों को वापस नहीं भेजा जा सकता तो अपने ही देश के दूसरे राज्यों के लोगों को तो रोक सकते नहीं।
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