बिहार को विशेष राज्य का दर्जा क्यों जरूरी

Last Updated 26 Dec 2023 01:35:09 PM IST

नीतीश-तेजस्वी सरकार ने पहले जातिगत सर्वे और सामाजिक-आर्थिक व शैक्षणिक रिपोर्ट जारी किया तत्पश्चात आरक्षण का दायरा 50 फीसद से बढ़ाकर 65 फीसद करके मोदी सरकार को पेशोपेश में डाल दिया है।


बिहार : विशेष राज्य का दर्जा क्यों जरूरी

उक्त रिपोर्ट के माध्यम से बिहार में सभी जातियों के अंतर्गत 94 लाख गरीब परिवार को रेखांकित किया गया है और उनके विकास के लिए केंद्र सरकार से ढाई लाख करोड़ रु पए की विशेष सहायता की मांग भी सार्वजनिक कर दिया है। इस राशि से चिह्नित गरीब परिवारों को रोज़गार, जमीन, पक्का मकान और सतत जीविकोपार्जन के अवसर मुहैया कराने की योजना प्रस्तावित किया है।

यह किसी भी राज्य को विकसित होने के लिए न्यूनतम मानक है। बिहार के विकास मार्ग में सबसे बड़ा अवरोधक तत्व क्या है? यह एक विचारणीय प्रश्न है। बिहार के इतिहास में तीन विभाजन या पुनर्गठन दर्ज है। बंगाल (1912), ओडिसा (1936) और झारखंड (2000) के गठन के पश्चात बिहार एक अत्यंत सीमित संसाधन वाला वाला प्रदेश बनकर रह गया है। यहां एक ऐतिहासिक तथ्य से अवगत कराना समुचित प्रतीत होता है कि 1857 के भारतीय राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों से लड़ने में बिहार की भूमिका प्रमुख और अग्रणी रही थी। इस कारण अंग्रेजों ने बिहार के साथ दोयम से भी दोयम दर्जे का व्यवहार करना शुरू कर दिया था।

कालांतर में देश की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली आने के उपरांत भी अंग्रेजों की क्रूर नीति बिहार के प्रति जारी रही। बिहार ने आज़ादी के प्रथम दशक बाद लगभग दो दशक (1961-1990) तक राजनीतिक अस्थिरता का दंश झेला। इस कालखंड में सरकारें आया राम गया राम के गिरफ़्त में थी जिसके फलस्वरूप मुख्यमंत्री की कुर्सी बैठने वालों की अदलाबदली दर्जनों दफा हुई थी। बिहार से झारखंड के अलग होने के बाद शेष बिहार की आर्थिक भरपाई और विकास प्रबंधन के लिए भाजपा सरकार ने विशेष दर्जा या पैकेज भी नहीं दिया। हालांकि 2005 के पश्चात नीतीश कुमार ही बिहार सरकार का नेतृत्व किए हैं और समय-समय पर इस मांग को दुहराते रहते हैं। वर्तमान में बिहार राज्य की आबादी लगभग तेरह करोड़ है जिनमें से सर्वाधिक जनता कृषि पर आश्रित है। पलायन, बेरोजगारी, निम्नतम औद्योगिक निवेश और कम शहरीकरण की दृष्टि से बिहार एक पिछड़ा राज्य है।

शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी अंतिम पायदान पर है। नीति आयोग ने अपनी कई विकास केंद्रित रिपोटरे में पिछड़ा पाया है। ये भी दिलचस्प है कि बिहार में औद्योगिक निवेश या विस्तार का दौर कभी आया ही नहीं। चीनी मीलें या अन्य कुटीर उद्योग भी निजीकरण का ताप बर्दाश्त नहीं कर पाए। बिहार की भौगोलिक दशा एक विचित्र सच्चाई दर्शाती है जहां एक ही समय में एक क्षेत्र में बाढ़ तो राज्य के दूसरे कोने में लोग सूखाड़ झेल रहे होते हैं। जल-संसाधन का बेहतर प्रबंधन से कृषि हेतु सिंचाई को सरल बनाया जा सकता है। यहां नदियों का जाल है, लेकिन खेती-किसानी के लिए नहर परियोजना का हाल खस्ता है। देश के अनेक राज्यों के कृषि विकास हो या औद्योगिक विस्तार हो, बिहार के मजदूरों की कुशल सहभागिता की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। बिहार में विकास प्रक्रिया की गति को तेज करने में सबसे बड़ी बाधा वित्तीय जरूरत ही प्रतीत होता है।

बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिले या विशेष पैकेज के मुद्दे पर आज भाजपा के अलावा लगभग सभी राजनीतिक दलों में सहमति है। आंकड़े बताते हैं कि बिहार पुनर्गठन अधिनियम 2000 के पश्चात वर्तमान बिहार को 65 फीसद आबादी और मात्र 33 फीसद संसाधन की हिस्सेदारी ही मिली थी। यही कारण रहा कि बंटवारा वर्ष में ही तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने अटल सरकार के समक्ष बिहार के लिए विशेष पैकेज की मांग रखी थी। ऐसा माना जाता है कि राजनितिक प्रतिद्वंद्विता के कारण नीतीश कुमार ने उक्त मांग पर नहीं अमल करने हेतु भाजपा को राजी कर लिया था। हालांकि मुख्यमंत्री बनने के बाद बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के लिए नीतीश कुमार निरंतर प्रयासरत रहे हैं। भाजपा से अलग होने के बाद नीतीश-तेजस्वी सरकार ने जातिगत गणना तथा सामाजिक-आर्थिक और शैक्षणिक रिपोर्ट के माध्यम से आंकड़े जारी कर बिहार के पिछड़ेपन को लोक विमर्श में प्रस्तुत किया है।

विशेष दर्जा प्राप्त राज्यों को केंद्र सरकार की तरफ से दी जाने वाली वित्तीय सहायता का अनुपात क्रमश: अनुदान के तौर पर 90 फीसद राशि और 10 फीसद रकम ब्याज रहित कर्ज देती है जबकि बाकि राज्यों को केंद्रीय सहायता का अनुपात क्रमश: 30 फीसद राशि अनुदान और 70 फीसदी रकम ब्याज के साथ कर्ज मिलता है। गौरतलब है कि बिहार की आर्थिक स्थिति दयनीय है। राजनीतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से अगड़ा बिहार के आर्थिक पिछड़ेपन को दूर करने का तात्कालिक समाधान राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देकर ही संभव है। विदित हो कि विकसित एवं समृद्ध भारत के लिए बिहार जैसे उर्वर प्रदेश का सर्वागीण एवं समदर्शी विकास अत्यंत आवश्यक है। यह समय की मांग है कि बिहार को उसका देय भुगतान किया जाए, समय हमेशा सच कहता है।

प्रो. नवल किशोर


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