संसद सुरक्षा में सेंध : जिम्मेदार बने विपक्ष

Last Updated 26 Dec 2023 01:38:23 PM IST

निस्संदेह यह अभूतपूर्व अप्रिय स्थिति है। संसद सत्र का समापन होने तक दोनों सदन के 146 सांसद निलंबित किए जा चुके थे। इसके पहले आजाद भारत में कभी भी इतने सांसदों का निलंबन नहीं हुआ था।


संसद सुरक्षा में सेंध, जिम्मेदार बने विपक्ष

लोक सभा में आईएनडीआईए के कुल 138 सांसदों में से 98 तथा राज्य सभा में 95 सांसदों में से 48 को निलंबित किया गया। केवल 40 सदस्य निलंबित नहीं हुए। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के 48 में से केवल 9 सदस्य ही सदन में रह गए जिनमें पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी शामिल हैं। यह केवल दुर्भाग्यपूर्ण नहीं बल्कि भयभीत करने वाली स्थिति है।

संसद हमारे संसदीय लोकतंत्र की शीर्ष इकाई है तो उसके सदस्य माननीय सांसदों का कद इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में कितना बड़ा है इसके बारे में बताने की आवश्यकता नहीं है। नीति निर्माण की भूमिका के साथ अपने गरिमापूर्ण आचरण के प्रति भी सांसदों को शत-प्रतिशत सतर्क और प्रतिबद्ध होने की आवश्यकता है। संसद में दो लोग जूते में  स्मोक क्रैकर लेकर दर्शक पास के साथ दर्शक दीर्घा में पहुंचे और इस घटना की गंभीरता को नकारा नहीं जा सकता। जूते में स्मोक क्रैकर की जगह कुछ जहरीले तत्व भी प्लास्टिक के कैन में ले जा सकते थे। किंतु क्या इसका विपक्षी प्रतिकार संसद में हंगामा ही है?

संसद में इस पर चर्चा चाहिए तो उसके अनुरूप की भूमिका हो सकती थी। लगातार इतने सांसदों के निलंबन से, जिनमें दोनों सदनों के वरिष्ठ, अनुभवी तथा सम्मानित नेता भी शामिल हैं, सामान्य संदेश यही निकाला जा रहा है कि सरकारी पक्ष विरोध को सहन नहीं कर पा रहा है। क्या यही सच है? इसके उत्तर के लिए एक उदाहरण देखिए। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने अपने निलंबन से कुछ मिनट पहले सोशल मीडिया साइट एक्स पर लिखा कि अपने संसदीय जीवन में पहली बार वह प्ले कार्ड लेकर बेल में घुसे और अब निलंबन की घोषणा का इंतजार कर रहे हैं। उन्होंने दलील दी कि निलंबित सांसदों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए ऐसा किया। क्या इसके बाद यह बताने की आवश्यकता है कि ज्यादातर विपक्षी सांसदों ने जानबूझकर ऐसी स्थिति उत्पन्न की जिनसे उनका निलंबन हो ही जाए? ये भले कहें कि उनकी आवाज को दमित किया जा रहा है, विवेकशील लोग साफ-साफ देख रहे हैं कि बिल्कुल सोच-समझकर रणनीति के तहत सांसद ऐसा कर रहे थे।

सबको मालूम था कि प्लेकार्ड लेकर बेल में जाएंगे और समझाने पर नहीं मानेंगे तो उनका निलंबन होगा। आईएनडीआईए के कुछ नेताओं ने पत्रकारों से बताना शुरू किया कि संभव है आने वाले समय में लोक सभा के विपक्षी सांसद एकमुश्त त्यागपत्र दे दें। वास्तव में सरकार के आप विरोधी हों या समर्थक यह साफ है कि विपक्ष रणनीति के तहत ऐसा दृश्य उत्पन्न करना चाहता है, जिससे संदेश जाए कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व की सरकार संसद को सुरक्षित रखने में तो विफल है ही, वह जवाब देने से बचना चाहती है तथा विपक्ष के सामने ऐसी स्थिति पैदा कर चुकी है जिसमें उनके पास संसद में रहने का विकल्प बचा ही नहीं है। यानी जब वह चर्चा कर नहीं सकते, आवाज उठाने पर निलंबन होगा तो फिर वहां रहे क्यों? देश में राजनीतिक अस्थिरता के माहौल का संदेश देने की रणनीति पर काम किया जा रहा है।

दरअसल, विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने आईएनडीआईए को कोई भाव नहीं दिया तो उसके और साथी नेताओं के पास लोक सभा चुनाव के पहले एकजूटता दिखाने का यही रास्ता बचा है। हम मानते हैं कि सदन में धुआं कांड और सुरक्षा चूक पर चर्चा होनी चाहिए। किंतु यहां भी पेच है। विपक्ष की मांग है कि संसद की सुरक्षा चूक पर गृह मंत्री अमित शाह उत्तर दें। सरकार का कहना है कि संसद के अंदर की सुरक्षा स्पीकर की जिम्मेवारी है इसलिए इसमें गृह मंत्री का बयान देना उचित नहीं होगा। स्वयं अध्यक्ष ने भी यही कहा। यह ऐसी स्थिति है जिनमें बीच का रास्ता निकालना बिल्कुल असंभव है।

हालांकि विपक्ष की तो रणनीति ऐसी होनी चाहिए, जिनमें सरकार को उत्तर देने के लिए विवश किया जाए। इसकी जगह विपक्षी संसद संसद भवन के मकर द्वार पर धरना देते हुए सदन की मॉक कार्यवाही का आयोजन करते रहे। इसी में तृणमूल कांग्रेस के सांसद कल्याण बनर्जी ने उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ की नकल उतारी जिसे किसी ने भी उचित नहीं माना। दुर्भाग्य से कई सांसदों ने इसका वीडियो बनाया। सरकार का विरोध एक बात है, लेकिन विरोध का तरीका और उसमें आसन को लेकर इस तरह के उपहासात्मक आचरण को देश सकारात्मक और अच्छी दृष्टि से दिखेगा ऐसा मानने का कोई कारण नहीं है।

ऐसा करके विपक्ष ने प्रकारांतर से यही संदेश दिया कि वो केवल सरकार नहीं संसद के पीठासीन अधिकारियों के भी विरुद्ध हैं। लोक सभा अध्यक्ष व उपराष्ट्रपति  निर्वाचन के पूर्व किसी दल के सदस्य हो सकते हैं, पर एक बार पद पर बैठने के बाद सभी दल उनकी भूमिका को निष्पक्ष मानकर ही व्यवहार करते हैं। वर्तमान समय में विपक्ष ने इस मर्यादा को भी दुखद तरीके से तोड़ा है। आप अगर जानबूझकर प्लेकार्ड और तख्तियां लेकर बेल में जाते हैं, हंगामा करते हैं तो यह आसन का ही अपमान होता है। सच है कि अभी तक विपक्ष के किसी नेता ने संसद में आतंकवादी हमले की वार्षिकी पर सुरक्षा में सेंध लगाने वाले लोगों की आलोचना नहीं की है। इसके विपरीत इनकी भाषा में उनके प्रति सहानुभूति और  समर्थन दिखता है।

प्रश्न है कि इसे गुस्से से भरे बेरोजगारों  द्वारा सरकार की विफलताओं को प्रकट करने वाला बताकर ये देश का माहौल कैसा बना रहे हैं? इस तरह की वारदात का समर्थन देश में हिंसक अराजकता को प्रोत्साहित करेगा। जांच रिपोर्ट से ऐसा कतई साबित नहीं होता कि छह लोगों के  समूह का इस निंदनीय घटना के पीछे कोई सकारात्मक बड़ा उद्देश्य था। ये प्रधानमंत्री मोदी सरकार, भाजपा और पूरे संगठन परिवार के विरु द्ध अतिवादी विरोधियों द्वारा पैदा किए गए नफरत और विरोध की मानसिकता से भरे हुए हैं। संसद को एक स्वर से इसकी निंदा करनी चाहिए तथा भविष्य का ध्यान रखते हुए एक मत से ऐसे सुरक्षित उपाय पर सहमत होना चाहिए, जिससे सुरक्षा सुनिश्चित हो और आम आदमी का संसद के भीतर आवागमन भी नियमों के अंतर्गत जारी रहे।

अवधेश कुमार


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