दिक्कत न करें
भारत निर्वाचन आयोग ने नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के वोटचाोरी के आरोप को खारिज कर दिया। अपनी पोस्ट में आयोग ने लिखा, किसी भी वोट को ऑनलाइन किसी शख्स द्वारा हटाया नहीं जा सकता, जैसा कि गांधी ने गलत धारणा बना रखी है।
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अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गांधी ने आरोप लगाया था कि मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार वोट चोरों को संरक्षण दे रहे हैं और फर्जी मतदाताओं को घटाने/जोड़ने में होने वाली धोखाधड़ी की उन्हें पूरी जानकारी है।
गांधी ने कर्नाटक के अलंद विधानसभा क्षेत्र में कम से कम छह हजार वोट हटाने व महादेवपुरा में कुछ इसी तरह की धोखधड़ी का आरोप लगाया था। उनके अनुसार सॉफ्टवेयर का प्रयोग कर असली मतदाताओं का रूप लिया गया। गांधी ने बूथ लेबल के अधिकारी के चाचा का नाम हटाए जाने की भी चर्चा की। कुछ समय से विपक्षी दलों दल दावा करते रहे हैं कि आयोग भाजपा के साथ मिलकर मतदाता सूची से फर्जी वोट हटाने/जोड़ने का काम कर रहा है।
चुनाव आयुक्त को लोकतंत्र की हत्या करने वालों से बचाने का आह्वाहन करते हुए गांधी ने कर्नाटक, महाराष्ट्र, हरियाणा व उप्र में बड़े पैमाने पर नाम हटाने का आरोप लगाया। समूचा विपक्ष एक सुर में यही कह रहा है। आयोग के नमूना मांगने के जवाब में राहुल ने इस दफा सौ फीसद प्रमाण की बात भी की। पूर्व में मतदाता सूचियों की खामियां तो स्पष्ट नजर आई हैं मगर मतदान में किसी तरह के हेरफेर के सटीक प्रमाण नहीं मिले। आरोप निराधार नहीं हैं तो इन्हें खतरे की घंटी तो माना ही जाना चाहिए।
आयोग को कीचड़ उछालने की बजाय अपनी खामियों को सुधारने के प्रति पारदर्शितापूर्ण कदम उठाते नजर आना चाहिए। अपनी स्वतंत्रता और निष्पक्षता का उदाहरण पेश करने में कोताही नहीं बरतनी चाहिए। लोकतंत्र में हर वोट की अहमियत है। मतदाता के अधिकारों की उपेक्षा या मतदाता सूची से उसके नाम में होने वाली छेड़छाड़ की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए। तकनीकी विफलताओं या प्रशासनिक भूलों के चलते संदेह की गुंजाइशें छोड़ा जाना आयोग की कार्यपण्राली पर प्रश्न चिह्न लगाता है।
विपक्ष को अपनी भूमिका निभाने में संकोच नहीं करना चाहिए परंतु मतदाताओं को उकसाने के लिहाज से बेबुनियादी आरोपों का सहारा भी नहीं लेना चाहिए। आरोप-प्रत्यारोप लोकतांत्रिक व्यवस्था की जड़ों पर मट्ठा न डालें, इसकी फिक्र सबको मिल-जुलकर करनी होगी।
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