अयोध्या : इसलिए जरूरी था विकास
एक्स (ट्विटर) पर एक पोस्ट देखी जिसमें अयोध्या में रामलला के विग्रह को रजाई उढ़ाने का मजाक उड़ाया गया है। उस पर मैंने निम्न पोस्ट लिखी जो शायद आपको रोचक लगे। वैष्णव संप्रदायों में साकार ब्रह्म की उपासना होती है।
अयोध्या : इसलिए जरूरी था विकास |
उसमें भगवान के विग्रह को पत्थर, लकड़ी या धातु की मूर्ति नहीं माना जाता, बल्कि उनका जागृत स्वरूप मानकर उनकी सेवा-पूजा एक जीवित व्यक्ति के रूप में की जाती है। यह सदियों पुरानी परंपरा है। जैसे श्रीलड्डूगोपाल जी के विग्रह को नित्य स्नान कराना, उनका श्रृंगार करना, उन्हें दिन में अनेक बार भोग लगाना और उन्हें रात्रि में शयन कराना। यह परंपरा हम वैष्णवों के घरों में आज भी चल रही है। ‘जाकी रही भावना जैसी-प्रभु मूरत देखी तीन तैसी।’ इसीलिए सेवा पूजा प्रारंभ करने से पहले भगवान के नये विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। इसका शास्त्रों में संपूर्ण विधि विधान है। जैसा अब रामलला के विग्रह की अयोध्या में भव्य रूप से होने जा रही है।
यह सही है कि हर राजनैतिक दल अपना चुनावी एजेंडा तय करता है, और उसे इस आशा में आगे बढ़ाता है कि उसके जरिए वह चुनाव की वैतरणी पार कर लेगा। ‘गरीबी हटाओ’, ‘चुनिए उन्हें जो सरकार चला सकें’ या ‘बहुत हुई महंगाई की मार-अबकी बार मोदी सरकार’ कुछ ऐसे ही नारे थे जिनके सहारे कांग्रेस और भाजपा ने लोक सभा के चुनाव जीते और सरकारें बनाई। इसी तरह ‘सौगंध राम की खाते हैं, हम मंदिर वहीं बनाएंगे’ यह वो नारा था जो संघ परिवार और भाजपा ने नब्बे के दशक से लगाना शुरू किया और 2024 में उस लक्ष्य को प्राप्त कर लिया। इसलिए आगामी 22 जनवरी को अयोध्या के निर्माणाधीन श्रीराम मंदिर में भगवान के श्रीविग्रहों की प्राण प्रतिष्ठा का भव्य आयोजन किया जा रहा है।
स्वाभाविक है कि मंदिर का निर्माण पूर्ण हुए बिना ही बीच में इतना भव्य आयोजन 2024 के लोक सभा चुनावों को लक्ष्य करके आयोजित किया जा रहा है पर यह कोई आलोचना का विषय नहीं हो सकता। विगत 33 वर्षो में श्रीराम जन्मभूमि को लेकर जितने विवाद हुए उन पर आज तक बहुत कुछ लिखा जा चुका है। हर पक्ष के अपने तर्क हैं पर सनातनधर्मी होने के कारण मेरा तो शुरू से यही मत रहा है कि अयोध्या, काशी और मथुरा में हिन्दुओं के धर्म स्थानों पर मौजूद ये मस्जिदें कभी सांप्रदायिक सद्भाव नहीं होने देंगी क्योंकि अपने तीन प्रमुख देवों श्रीराम, श्रीशिव और श्रीकृष्ण के तीर्थ स्थलों पर ये मस्जिदें हिन्दुओं को हमेशा उस अतीत की याद दिलाती रहेंगी जब मुसलमान आक्रांताओं ने यहां मौजूद हिन्दू मंदिरों का विध्वंस करके यहां मस्जिदें बनाई थीं। अपने इस मत को मैंने इन 33 वर्षो में अपने लेखों और टीवी रिपोर्ट्स में प्रमुखता से प्रकाशित और प्रसारित भी किया।
इसलिए आज अयोध्या में भव्य मंदिर का निर्माण हर आस्थावान हिन्दू के लिए हष्रोल्लास का विषय है। हर्ष का विषय है कि प्रभु श्रीराम के जन्म से लेकर राज्याभिषेक की साक्षी रही अयोध्या नगरी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भव्य स्तर पर विकसित करने का संकल्प लिया और उसी प्रारूप पर आज अयोध्या का विकास हो रहा है ताकि दुनिया भर से आने वाले भक्त और पर्यटक अयोध्या का वैभव देखकर प्रभावित और प्रसन्न हों। भगवान श्रीराम की राजधानी का स्वरूप भव्य होना ही चाहिए।
एक बात और कि जब नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने और मुझे उनकी ‘हृदय योजना’ का राष्ट्रीय सलाहकार नियुक्त किया गया, तब से यह बात मैं सरकार के संज्ञान में सीधे और अपने लेखों के माध्यम से लाता रहा हूं कि अयोध्या, काशी और मथुरा का विकास उनकी सांस्कृतिक विरासत के अनुरूप होना चाहिए, एकरूप नहीं। जैसे अयोध्या राजा राम की नगरी है, इसलिए उसका स्वरूप राजसी होना चाहिए जबकि काशी औघड़ नाथ की नगरी है, जहां कंकड़-कंकड़ में शंकर बसते हैं, इसलिए उसका विकास उसी भावना से किया जाना चाहिए था न कि काशी कॉरिडोर बनाकर। क्योंकि इस कॉरिडोर में भोले शंकर की अल्हड़ता का भाव पैदा नहीं होता, बल्कि एक राजमहल का भाव पैदा होता है। ऐसा काशी के संतों, दार्शनिकों और सामान्य काशीवासियों का भी कहना है। इसी तरह मथुरा-वृंदावन में जो कॉरिडोरनुमा निर्माण की बात आजकल हो रही है, वह ब्रज की संस्कृति के बिल्कुल विपरीत है।
यह बात स्वयं बालकृष्ण नंद बाबा से कह रहे हैं, ‘न:पुरो जनपदा न ग्रामा गृहावयम, नित्यं वनौकसतात वनशैलनिवासिन:’ (श्रीमदभागवतम, दशम स्कंध, 24 अध्याय और 24वां श्लोक), ‘बाबाये पुर, ये जनपद, ये ग्राम हमारे घर नहीं हैं। हम तो वनचर हैं। ये वन और ये पर्वत ही हमारे निवास स्थल हैं।’ इसलिए ब्रज का विकास तो उसकी प्राकृतिक धरोहरों जैसे कुंड, वन, पर्वत और यमुना का संवर्धन करके होना चाहिए, जहां भगवान श्रीराधा-कृष्ण ने अपनी समस्त लीलाएं कीं पर आज ब्रज तेजी से कंक्रीट का जंगल बनता जा रहा है। इससे ब्रज के रसिक संत और ब्रज भक्त बहुत आहत हैं। हमारे यहां तो कहावत है, ‘वृंदावन के वृक्ष को मरम न जाने कोय, डाल-डाल और पात पे राधे लिखा होय।’ यहां एक और गंभीर विषय उठाना आवश्यक है। वह यह कि नव निर्माण के उत्साह में प्राचीन मंदिरों के प्राण प्रतिष्ठित विग्रहों को अपमानित या ध्वस्त न किया जाए, बल्कि उन्हें ससम्मान दूसरे स्थान पर ले जाकर स्थापित कर दिया जाए।
यहां यह याद रखना भी आवश्यक है कि किसी भी प्राण प्रतिष्ठित विग्रह की उपेक्षा करना, उनका अपमान करना या उनका विध्वंस करना सनातन धर्म में जघन्य अपराध माना जाता है। इसे ही तालिबानी हमला कहा जाता है। जैसा अनेक मुसलमान शासकों ने मध्य युग में और हाल के वर्षो में कश्मीर, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में मुसलमानों ने किया। इतिहास में प्रमाण हैं कि कुछ हिन्दू राजाओं ने भी ऐसा विध्वंस बौद्ध विहारों का किया था। अगर किसी कारण से किसी प्राण प्रतिष्ठित विग्रह को या उसके मंदिर को विकास की योजनाओं के लिए वहां से हटाना आवश्यक हो तो उसका भी शास्त्रों में पूरा विधि-विधान है जिसका पालन करके उन्हें श्रद्धापूर्वक वहां से नये स्थान पर ले जाया जा सकता है। पर उन्हें यूं ही लापरवाही से उखाड़ कर कूड़े में फेंका नहीं जा सकता। यह सनातन धर्म के विरुद्ध कृत्य माना जाएगा। हर हिन्दू इस पाप को करने से डरता है।
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