बदलाव : अंग्रेजों के कानूनों से निजात

Last Updated 25 Dec 2023 01:02:57 PM IST

अंग्रेजों के जमाने से चला आ रहे औपनिवेशिक कानूनों से आखिरकार, जनता को मुक्ति मिलंही गई। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने गुलामी के प्रतीक माने जाने वाले तीन प्रमुख कानूनों में आमूलचूल बदलाव के विधेयक लोक सभा एवं राज्य सभा से पारित करा लिए।


बदलाव : अंग्रेजों के कानूनों से निजात

शाह ने इन विधेयकों पर संसद में चर्चा करते हुए कहा कि इन कानूनों के लागू होने के बाद दुनिया में सबसे अधिक आधुनिक आपराधिक न्याय पण्राली भारत की होगी क्योंकि अब इनकी आत्मा में भारतीयता निहित कर दी गई है। उन्होंने अंग्रेजों के और अब के कानून में फर्क बताते हुए कहा कि अंग्रेजों के जमानों में बने कानूनों का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य के हितों की रक्षा करना था। इसलिए इनमें दंड को मूल में रखा गया था, किंतु अब न्याय पर जोर होगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले साल 15 अगस्त को लाल किले से अपने संबोधन में पांच पण्रकिए थे, इनमें एक पण्रगुलामी की निशानियों को खत्म करना था। कानून संबंधी पारित विधेयक उसी परिप्रेक्ष्य में हैं।

नये कानून महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा पर केंद्रित हैं। अब नाबालिग से दुष्कर्म और मॉब लिंचिंग के लिए फांसी की सजा दी जाएगी। राजद्रोह कानून ब्रिटिश सत्ता को कायम रखने के लिए था, इसे अब खत्म किया गया है। कुछ प्रचलित धाराओं की संख्या भी बदली गई है। जैसे धोखाधड़ी 420 धारा के अंतर्गत थी, इसे अब धारा 316 के रूप में जाना जाएगा। बलात्कार की धारा 376 को 63 में बदला जाएगा। प्रमुख रूप से अंग्रेजी राज का पर्याय बने तीन मूलभूत कानूनों में आमूलचूल परिवर्तन किए गए हैं। 1860 में बने इंडियन पेनल कोड को अब भारतीय न्याय संहिता, 1898 में बने दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और 1872 में बने इंडियन एविडेंस कोड को अब भारतीय साक्ष्य संहिता के नाम से जाना जाएगा। कुल 313 धाराएं बदली गई हैं।

सबसे बड़ा परिवर्तन 1860 में लागू औपनिवेशिक कानून ‘राजद्रोह’ में किया गया है। बदलाव के इस प्रस्ताव से पहले कोई भी सरकार इस कानून में परिवर्तन की हिम्मत नहीं जुटा पाई थी। दरअसल, जब 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम पूरे राष्ट्र में एकजुटता के साथ उभरा था तो उसमें आम जन की बड़ी भागीदारी थी। इसी आम जन को दंडित करने के लिए ही इस दमनकारी कानून को वजूद में लाया गया था। कानून की धारा 124-ए के अंतर्गत लिखित या मौखिक शब्दों, चिह्नों, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर से नफरत फैलाने या असंतोष जाहिर करने पर देशद्रोह का मामला दर्ज किया जा सकता है। इस धारा के तहत आरोप साबित हो जाए तो तीन साल के कारावास तक की सजा हो सकती है। 1962 में शीर्ष न्यायालय के सात न्यायाधीशों की खंडपीठ ने ‘केदारनाथ बनाम बिहार राज्य’ प्रकरण में राजद्रोह के संबंध में ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि ‘विधि द्वारा स्थापित सरकार के विरुद्ध अव्यवस्था फैलाने या फिर कानून या व्यवस्था में गड़बड़ी पैदा करने या फिर हिंसा को बढ़ावा देने की प्रवृत्ति या मंशा हो तो उसे राजद्रोह माना जाएगा।’ इसी परिभाषा की परछाई में हार्दिक पटेल बनाम गुजरात राज्य से संबंधित मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ‘यदि कोई व्यक्ति अपने भाषण या कथन के मार्फ्त विधि द्वारा स्थापित सरकार के खिलाफ हिंसा फैलाने का आह्वान करता है, तो उसे राजद्रोह माना जाएगा।’

अदालत के इन फैसलों के अनुक्रम में किसी अन्य देश की प्रशंसा, परमाणु संयंत्रों का विरोध, राष्ट्रगान के सम्मान में खड़े नहीं होना, जैसे आचरण जरूर राजद्रोह नहीं कहे जा सकते लेकिन ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे हजार’, जैसे नारे न केवल राजद्रोह हैं, बल्कि राष्ट्रद्रोही भी हैं।’ इस परिप्रेक्ष्य में यह समझ लेना भी जरूरी है कि संविधान का अनुच्छेद 19-1 अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी जरूर देता है, लेकिन इस पर युक्तियुक्त प्रतिबंध भी लगाया गया है। नये कानून में पहली बार आतंकवाद की इबारत को परिभाषित किया गया है। कोई व्यक्ति देश की एकता, अखंडता, संप्रभुता और सुरक्षा को संकट में डालने के इरादे से कोई कृत्य करता है, तो उसे नये कानून के हिसाब से सजा मिलेगी। अतएव देश के अस्तित्व को चुनौती देने वाले बाहरी या भीतरी असामाजिक तत्व कानूनी शिकंजे से बचने न पाएं, इसकी व्यवस्था के प्रावधान किए गए हैं।

यही कानूनी प्रावधान वृहत्तर सामाजिक हित राज्य को भारत की संप्रभुता, अखंडता तथा राज्य की सुरक्षा से जोड़ते हैं। भारत के विरुद्ध सांप्रदायिक कट्टरता फैलाने और सरकार के लिए नफरत के हालात बनाने में भारत विरोधी विदेशी ताकतें सोशल मीडिया का मनचाहा एवं गलत दुरुपयोग करती हैं, इसलिए नये कानून में देश तोड़ने की कोशिश करने वाली ताकतों पर अंकुश के लिए कठोर कानूनी प्रावधान नये कानून में किए गए हैं। 

प्रमोद भार्गव


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