मोटा अनाज : क्यों दूर हो गया हमारी थाली से?
वर्ष 2022-23 का बजट पेश करते हुए वित मंत्री निर्मला सीतारमण ने वर्ष 2023 को ‘मोटा अनाज वर्ष’ के रूप में मनाने की बात कही है।
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भारत के प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा भी यह निर्णय लिया गया कि वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष के रूप में मनाया जाएगा। इससे पहले भी भारत 2018 को मोटा अनाज वर्ष के रूप में मना चुका है। इसका प्रमुख उद्देश्य मोटा अनाज जैसे ज्वार, बाजरा, रागी (मडुआ), सवां, कोदों और इसी तरह की अन्य फसलों के पोषण और स्वास्थ्य लाभों के बारे में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जागरूकता को बढ़ाने के साथ-साथ इन पोषक अनाजों की मांग को बढावा देकर इसके उत्पादन को भी बढ़ाना है।
आज भारत सरकार मोटा अनाज को प्रोत्साहन देने के लिए जितनी तत्परता दिखा रही है वही मोटा अनाज कभी भारतीय खाद्य संस्कृति का हिस्सा हुआ करता था। इनका उल्लेख यजुर्वेद में भी नहीं मिलता है बल्कि यह अनाज धार्मिंक अनुष्ठानों का भी हिस्सा भी हुआ करते थे। हरित क्रांति के बाद पश्चिमी शहरी उपभेक्ताओं की खाद्य संस्कृति में बदलाव के साथ मोटा अनाज थाली से बाहर होता गया। आज यह गांवों की भोजन थाली से भी दूर हो चुका है। इंडियास्पेंड की अगस्त 2016 की रिपोर्ट के अनुसार 1960 के दशक के बाद औसत भारतीय की थाली से ज्वार और बाजरा को गेहूं और चावल द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया था। सरकार की उदासीनता के कारण बाजार में इसकी मांग घटने लगी। उचित मूल्य न मिलने से मोटा अनाज उगाने के प्रति किसानों का मोहभंग होने लगा।
1960 में मोटे अनाज का उत्पादन 7087 मिलियन टन था जो 1970 में बढ़कर 12172 मिलियन टन तक पहुंच गया था। 2021 में इसका उत्पादन 11500 मिलियन टन हुआ है। 2003 के इसके उच्चतम स्तर 14639 मिलियन टन को छोड़ दें तो पिछले पांच दशकों से इसका उत्पादन लगभग स्थिर सा ही रहा है। 1952-54 के दौरान, बाजरा राष्ट्रीय खाद्यान्न उत्पादन का 20 प्रतिशत था, जो अब घटकर केवल 6 प्रतिशत ही रह गया है। अंतरराष्ट्रीय फसल अनुसंधान संस्थान द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, 1962 और 2010 के बीच, भारत में बाजरा की प्रति व्यक्ति खपत 32.9 किलोग्राम से गिरकर 4.2 किलोग्राम प्रति वर्ष ही रह गई है। कोरोना काल में मोटे अनाज की मांग इम्यूनिटी बूस्टर के रूप में बढ़ी है। फाइबर, कैल्शियम, लोहा, मैग्नीशियम, फास्फोरस, पोटेशियम और सेलेनियम जैसे खिनजों के साथ-साथ फोलेट, पैंटोथेनिक एसिड, नियासिन, राइबोफ्लेविन और विटामिन बी 6, सी, ई और के जैसे आवश्यक विटामिनों से भरपूर होने के कारण आज मोटे अनाज से बनने वाले व्यंजनों को ‘स्मार्ट फूड’ का नाम दिया गया है।
यह एक स्वस्थ भारत की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। मोटे अनाज को भोजन का हिस्सा बनाने के लिए अनेक प्रकार के बेहतर व्यंजनों को बनाने पर जोर दिया जा रहा है। आज बाजरे के कुकिंज, चिप्स, पफ आदि अन्य चीजें सुपर मार्केट में बिकने लगी है। इन सबके बीच महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह है कि आर्थिक विकास के बावजूद भारत अभी भी अपनी एक बड़ी आबादी को खिलाने के लिए संघर्ष कर रहा है। आज जब गेहूं और चावल की तुलना में बाजरा अधिक महंगा है, ऐसे में प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि गांव की थाली से दूर हो चुका मोटा अनाज क्या वापस लौट पाएगा? वह भी ऐसे समय में जब वर्तमान में भारत का आम आदमी पहले से ही मुद्रास्फीति और बढ़ती खाद्य तेल की कीमतों के जाल में उलझा हुआ है। ज्वार और बाजरा फिर खेतों में वापस लाने के लिए सरकार को रणनीतिक पहल करनी होगी। इसके लिए कमजोर कम आय वाले समूहों को बेहतर ढंग से लक्षित कर नीतियों का निर्धारण करना होगा। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ने वाले मोटे अनाज की मांग का लाभ लेने के लिए बड़ी तैयारी करनी होगी। मोटे अनाजों विशेष रूप से ज्वार और बाजरा की खेती और विपणन को बढ़ाने के लिए विभिन्न एजेंसियों के एकीकृत दृष्टिकोण और नेटवर्किंग को मजबूत करने पर बल देना होगा।
मोटे अनाज के व्यावसायिक उपयोग को अधिक बढावा देने के लिए उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का प्रावधान और छोटे पैमाने के स्थानीय उद्यमियों के समर्थन में विकेंद्रीकृत प्रसंस्करण के लिए बुनियादी ढांचे के विकास पर विशेष ध्यान देना होगा। मोटे अनाजों में सूक्ष्म पोषक तत्वों की जैव उपलब्धता बढ़ाने के लिए अतिरिक्त शोध की आवश्यकता है। जिसके लिए दीर्घकालिक निवेश को बढावा देना होगा, जिसका प्रत्यक्ष लाभ किसानों की आय बढोत्तरी के रूप में भी होगा। भारत में लगभग 8 करोड़ डायबटीज के मरीज है, प्रतिवर्ष 1.7 करोड लोग हृदय रोग के कारण दम तोड़ देते हैं। 33 लाख से अधिक बच्चे कुपोषण के शिकार हैं, जिसमें आधे से अधिक गंभीर रूप से कुपोषित हैं। ऐसी स्थिति में एक स्वस्थ समाज के निर्माण में सरकार यदि किसान, उपभोक्ता, आधुनिक तकनीक आदि के द्वारा एक समन्वित साझा दृष्टिकोण के साथ नीतियों को क्रियान्वित करेगी तो न सिर्फ प्रत्येक की थाली में मोटा अनाज प्रमुखता के साथ होगा बल्कि भारत से कुपोषण की समस्या का अंत भी किया जा सकेगा।
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