जीयर स्वामी : आज भी जन्म लेते हैं युग पुरुष

Last Updated 21 Feb 2022 12:55:22 AM IST

गत फरवरी से सारे भारत के सनातनधर्मिंयों का ध्यान हैदराबाद हवाई अड्डे के पास स्थित रामानुज संप्रदाय के सम्मानित संत श्री श्री श्री त्रिदंडी चिन्ना जीयर स्वामी के आश्रम पर केंद्रित है, जहां उन्होंने एक इतिहास रच दिया है।


जीयर स्वामी : आज भी जन्म लेते हैं युग पुरुष

सौ एकड़ में फैले परिसर में जीयर स्वामी जी ने श्री रामानुजाचार्य की 216 फुट ऊंची प्रतिमा की स्थापना की है। डेढ़ सौ किलो सोने की पालिश और पंच धातुओं से बनी बैठी मुद्रा में यह विश्व की दूसरी सबसे बड़ी मूर्ति है। इस मुद्रा में इससे ऊंची मूर्ति थाईलैंड में भगवान बुद्ध की है। चौदह फरवरी तक चले महोत्सव में सारे भारत से भक्त और संतगण के साथ ही देश के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री भी इस प्रभावशाली विग्रह के दर्शन करने पहुंचे।    
जीयर स्वामी ने इस मूर्ति को ‘स्टैच्यू ऑफ इक्वालिटी’ का नाम दिया है यानी ‘समता मूर्ति’। इस महोत्सव में दो दिन के लिए पुण्य लाभ प्राप्त करने के लिए मैं भी हैदराबाद गया क्योंकि जीयर स्वामी का हम पर विशेष अनुग्रह रहा है। उनके ही आशीर्वाद से मथुरा के गोवर्धन क्षेत्र में हमने ‘संकषर्ण कुंड’ का जीर्णोद्धार किया था और उन्हीं के द्वारा वहां 34 फुट ऊंची काले ग्रेनाइट की संकषर्ण भगवान की मूर्ति स्थापित की गई जिसे जीयर स्वामी ने ‘द ब्रज फाउंडेशन’ के लिए तिरुपति बालाजी में बनवाया (तराशा) था। हालांकि 2017 में इसे नष्ट-भ्रष्ट कर दिया गया जिसका ब्रजवासियों को ही नहीं, बल्कि जीआर स्वामी को भी भारी दु:ख है।

‘पंचधातु’ से बनी ‘स्टैच्यू ऑफ इक्वालिटी’ भक्ति काल के संत रामानुजाचार्य के 1000वें जयंती (1017-2017) समारोह यानी श्री रामानुज सहस्रब्दि समारोह का हिस्सा है। इसमें सोना, चांदी, तांबा, पीतल और जस्ता का संयोजन है, लोहा नहीं डाला गया है। यह मूर्ति 54 फुट ऊंचे आधार भवन पर स्थापित है, जिसका नाम ‘भद्र वेदी’ है। इस परिसर में वैदिक डिजिटल पुस्तकालय और अनुसंधान केंद्र, प्राचीन भारतीय ग्रंथागार, थिएटर और शैक्षिक दीर्घा है, जो दर्शनार्थियों को सदियों तक संत रामानुजाचार्य के जीवन और शिक्षाओं के विषय में व्यापक जानकारी देगी। रामानुजाचार्य जी ने लिंग, नस्ल, जाति या पंथ की परवाह किए बिना सबको आध्यात्मिक चेतना और ज्ञान प्रदान किया था। समानता का संदेश दिया था।  मुख्य प्रतिमा के चारों तरफ चार कोनों में 27-27 मंदिरों के चार समूह हैं। दक्षिण भारत की स्थापत्य कला से निर्मिंत ये 108 मंदिर पूरे भारत में स्थित 108 दिव्य देशों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनमें स्थापित भगवान के विग्रह उन्हीं दिव्य देशों में हुई भगवान या भक्तों की लीलाओं से संबंधित हैं। इन मंदिरों में 15 फरवरी से 250 पुजारी नियमित सेवा-पूजा कर रहे हैं। यह अपने आप में अद्भुत अनुभव है। देश में शायद ऐसा कोई दूसरा धर्मस्थल न होगा जहां 108 मंदिरों में विधि-विधान से एक ही समय पर पूजा की जाती हो। रामानुजाचार्य स्वामी के इस विग्रह को बनवाने में जीआर स्वामी को वर्षो काफी परिश्रम करना पड़ा। वे चाहते थे कि यह विग्रह अगले 1000 साल तक भक्तों पर अनुग्रह करता रहे।
इस स्तर की कारीगरी करने वाले विशेषज्ञ उन्हें भारत में नहीं, चीन में मिले।  मूर्ति के 1500 भागों को चीन से लाकर हैदराबाद में जोड़ा गया जिसके ऊपर फिर सोने की पॉलिश की गई। एक हजार करोड़ रुपये के इस प्रोजेक्ट में भारी मात्रा में आर्थिक और प्रशासनिक सहयोग हैदराबाद के मशहूर उद्योगपति रामेर राव और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रोखर राव ने किया क्योंकि दोनों ही जीआर स्वामी के दीक्षित शिष्य हैं। इतने महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य का संकल्प लेना, योजना बनाना, संसाधन जुटाना और उसके क्रियान्वयन के लिए वर्षो रात-दिन जुटे रहना चुनौतीपूर्ण कार्य था। इस असंभव कार्य को जीयर स्वामी ने तप बल से पूरा कर दिखाया। जिस समय जीयर स्वामी संतगण, बाबा रामदेव और मुझे 108 दिव्य देशों का दर्शन करवा रहे थे, तो बाबा रामदेव और मैं आश्चर्य कर रहे थे कि धरती पर चटाई बिछा कर सोने वाले, स्वयं पकाई हुई खिचड़ी खाने वाले और 24 में से 22 घंटे भजन, प्रवचन और इस परियोजना के निर्माण के निर्देश देने वाले जीआर स्वामी साधारण मानव नहीं, युग पुरुष हैं। जीयर स्वामी के प्रशंसकों में कई जातियों और धर्मो के लोग भी हैं, जिनमें हैदराबाद के मुसलमान और नक्सलवादी तक शामिल हैं। जीआर स्वामी अपने परिकरों सहित दो बार मेरे वृंदावन आवास पर ठहर कर हमें संत सेवा का सुख प्रदान कर चुके हैं।
पहली बार 2012 में वे रामेर राव परिवार और आंध्र प्रदेश के सैकड़ों भक्तों के साथ तब आए थे, जब पौराणिक संकषर्ण कुंड (गोवर्धन) दुर्गधयुक्त, भयावह स्थिति में, दशकों से उपेक्षित पड़ा था जिसके जीर्णोद्धार का श्रीगणोश जीयर स्वामी ने ही किया था। दूसरी बार 2017 में फिर उसी तरह लाव-लश्कर के साथ पधार कर जीयर स्वामी ने द ब्रज फाउंडेशन द्वारा नवनिर्मिंत संकषर्ण कुंड का लोकार्पण किया था। कुंड की भव्यता देख कर स्वामी जी और सैकड़ों संतगणों और हजारों भक्तों ने इसे अकल्पनीय और चमत्कृत करने वाला बताया था जिसे ईष्र्यावश सरकार ने तहस-नहस कर दिया। यही अंतर है सच्चे संत और संत बनने का दिखावा करने वालों के बीच।
संत और भक्त प्रभु की सेवा में निष्काम भाव से जुटे रहते हैं। लेकिन कुछ लोग हैं, जो न तो ईमानदारी से धर्म की सेवा करते हैं और न ही उसे अपने राजनैतिक लाभ के लिए भुनाने में संकोच करते हैं। आज हिंदू समाज को तय करना है कि वो वैदिक परंपराओं में पले-बढ़े और दीक्षित त्यागी संतों के मार्ग पर चल कर अपनी आध्यात्मिक चेतना का विस्तार करेगा और भारतीय संस्कृति की सच्चे अथरे में सेवा करेगा या राजनैतिक स्वाथरे के लिए सनातनी मूल्यों का बलिदान करने वालों के भ्रम जाल में फंस कर आने वाली पीढ़ियों को धार्मिक विद्वेष का विष सौंप कर जाएगा। कहने की जरूरत नहीं कि हजारों साल से वैदिक संस्कृति और सनातन धर्म इसीलिए टिका रहा है क्योंकि हमारे संतों और आचायरे ने शास्त्रीय ज्ञान का ज्यों का त्यों पालन किया, उसमें अपने मनोरथ का घाल-मेल करके उसे प्रदूषित नहीं किया।

विनीत नारायण


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