वैश्विकी : भारत के साथ संजीदा दिखे रूस

Last Updated 26 Dec 2021 12:10:04 AM IST

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन की हालिया भारत यात्रा चीन के लिए एक संदेश होनी चाहिए।


वैश्विकी : भारत के साथ संजीदा दिखे रूस

उस चीन के लिए जो भारत की सरहदों पर बार-बार अतिक्रमण की कोशिश करने से बाज ही नहीं आ रहा है। पुतिन की नई दिल्ली यात्रा के दौरान दोनों के दरम्यान अनेक अहम मसलों पर समझौते हुए  लेकिन, अगर साफ तौर पर या संकेतों में ही चीन को यह बता दिया जाता कि भारत-रूस हरेक संकट में एक-दूसरे के साथ खड़े रहेंगे, तो बेहतर होता।
देखिए कि जब से दुनिया कोविड के शिकंजे में आई है तब से पुतिन सिर्फ  दो ही देशों में गए हैं। पहले वे अमेरिका के राष्ट्रपति जोसेफ रॉबिनेट बाइडेन से मिलने जेनेवा गए थे। उसके बाद वे भारत आए। इसी उदाहरण से समझा जा सकता है कि वे और उनका देश भारत को कितना महत्त्व देता है। इसलिए पुतिन की इस यात्रा को सामान्य या सांकेतिक यात्रा की श्रेणी में रखना तो भूल ही होगी। दरअसल, भारत-रूस के बीच मौजूदा संबंधों में आई गर्मजोशी की जमीन तैयार करने में दोनों देशों के विदेश मंत्री क्रमश: एस.जयशंकर और सर्गेई लावरोव ने अहम रोल अदा किया है। दोनों देशों की यह चाहत है कि इनके बीच आपस में आगामी 2025 तक 30 अरब डॉलर का कारोबार और 50 अरब पूरा डॉलर के निवेश का लक्ष्य हो जाए।

कोविड की चुनौतियों के बावजूद भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय संबंधों और सामरिक भागीदारी में कोई बदलाव नहीं आया है। कोविड के खिलाफ लड़ाई में भी दोनों देशों के बीच सहयोग रहा है। हालांकि कुछ जानकार मान रहे थे कि भारत-चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में हुई झड़प के बाद रूस की तटस्थ नीति के चलते दोनों देशों के संबंध अब पहले की तरह तो नहीं रहेंगे। पूर्वी लद्दाख में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प पर रूस ने कहा था कि वो भारत-चीन के बीच बढ़ते तनाव के कारण चिंता में है, लेकिन उसे उम्मीद है कि दोनों पड़ोसी देश इस विवाद को आपस में सुलझा सकते हैं। भारत-पाकिस्तान के बीच 1971 की जंग के समय सोवियत संघ ने भारत का साथ दिया था। यह बात भी सच है कि इन पचास वर्षो के दौरान दुनिया बहुत बदली है, पर इतनी भी नहीं बदली जितना कि रूस बदला। कायदे से उसे पूर्वी लद्दाख में झड़प के समय भारत के हक में खुलकर आगे आना चाहिए था, लेकिन उसने महज औपचारिक किस्म का एक बयान जारी किया। फिर कुछ हलकों में यह भी कहा जा रहा था कि आतंकवाद से लड़ने के मामले में भी भारत को रूस का अपेक्षित साथ नहीं मिला। ब्रिक्स देशों के मंच पर भी नहीं। सारी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान आतंकवाद की फैक्टरी बन चुका है और चीन का उसे खुला समर्थन मिलता है। चीन भी तो ब्रिक्स का सदस्य ही है। इसके बावजूद रूस ने कभी चीन को इस बिंदु पर सलाह नहीं दी कि वह पाकिस्तान से दूरियां बनाएं।
आतंकवाद के मसले पर सभी ब्रिक्स देशों को चीन और पाकिस्तान के खिलाफ समवेत स्वर से बोलना चाहिए था, लेकिन यह अबतक तो कभी नहीं हुआ। चीन ब्रिक्स आंदोलन को लगातार कमजोर करता रहा है। चीन के इस रवैये पर रूस चुप ही रहता है। भारत रूस से यह उम्मीद तो नहीं करता कि वह चीन से अपने सभी संबंध तोड़ ले, पर इतनी अपेक्षा तो कर सकता है कि वह सही मसले पर बोले। भारत- रूस का दायित्व है कि वे धूर्त चीन पर लगाम लगाने के लिए रणनीति बनाएं। यह सारी दुनिया में शांति स्थापित करने के लिए जरूरी है।
बहरहाल,  साल 2021 भारत-रूस  द्विपक्षीय संबंधों के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण रहा। इस साल 1971 की ट्रीटी ऑफ पीस फ्रेंडशिप एंड कोऑपरेशन के पांच दशक और हमारी सामरिक भागीदारी के दो  दशक पूरे हो रहे हैं। पिछले साल दोनों देशों के बीच व्यापार में 17 फीसद की गिरावट हुई थी, परन्तु इस साल पहले 9 महीनों में व्यापार में 38 फीसद की बढ़ोतरी देखी गई है।
दोनों देश स्वाभाविक रूप से सहयोगी हैं और बहुत महत्त्वपूर्ण चीजों पर काम कर रहे हैं, जिसमें ऊर्जा क्षेत्र, अंतरिक्ष सहित उच्च तकनीक के क्षेत्र शामिल हैं। यहां तक तो सब ठीक है। भारत-रूस संबंध सारी दुनिया के लिए उदाहरण होने चाहिए। अगर वे सिर्फ  आपसी व्यापार में वृद्धि की ही बातें करेंगे और तब नेपथ्य में चले जाएंगे और जब दोनों पर संकट होगा तो फिर इस तरह की दोस्ती का मतलब ही क्या रहेगा?

डॉ. आर.के. सिन्हा


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