बतंगड़ बेतुक : गुर्रावन और खोखियावन के बीच झल्लन

Last Updated 28 Feb 2021 02:12:34 AM IST

हमारे झल्लन को न जाने क्या सूझा कि वह हालिया दिन एक टीवियाई उछलबच्चे एंकर का चोला चढ़ा आया, साथ में एक ठो भाजपाई और एक ठो कांग्रेसी पटेबाज प्रवक्ता को भी पकड़ लाया, दोनों को आमने-सामने ला बिठाया और चटकती-कड़कती आवाज में बोला, ‘आज देश आपको देखेगा, भारत आपसे सबसे बड़ा सवाल पूछेगा, इसलिए हम एक चैनल की हालिया पटेबाजी की तरह आप से एक-दूसरे पर जूता-चप्पल नहीं चलवाएंगे, न आपको लड़ाएंगे-भिड़ाएंगे, और चूंकि एक-दूसरे से आपकी हिफाजत करना हमारी चैनलिया जिम्मेदारी है इसलिए आपके हाथ में भाला-बरछी नहीं पकड़ाएंगे, बस, अपने कुंद दिमाग दर्शकों और अपनी टीआरपी की खातिर आप दोनों को थोड़ा हड़काएंगे, थोड़ा भड़काएंगे और आप दोनों के बीच जोरदार जिा-जंग करवाएंगे, एक-दूसरे पर हल्ला बुलवाएंगे और जो जनता कभी कोई सही फैसला नहीं करती, आपकी हार-जीत का फैसला उसी जनता से करवाएंगे।’


बतंगड़ बेतुक : गुर्रावन और खोखियावन के बीच झल्लन

फिर एंकर झल्लन का चेहरा कैमरे की ओर हुआ और वह दर्शकों से मुखातिब हुआ, ‘तो प्यारे दर्शकों, आज की जिा-जंग में बीजेपी की तरफ से भाग ले रहे हैं श्री गुर्रावन जी और कांग्रेस की तरफ से भाग ले रहे हैं श्री खोखियावन जी। अब हम अपने पहले राष्ट्रीय सवाल की शुरुआत खोखियावन जी से करते हैं -तो बताइए खोखियावन जी, आप किसान आंदोलन का छातीकूट समर्थन कर रहे हैं, उधर आपके परम पूज्य टिकाऊ जी किसान नेता घोषणा कर रहे हैं कि वे गोदाम गिराएंगे, फसल जलाएंगे और चालीस लाख ट्रैक्टर लेकर संसद पर चढ़ जाएंगे। अगर दिल्ली पर ट्रैक्टर चढ़ाई हुई तो परिणाम क्या होगा, हिंसा हुई तो जिम्मेदार कौन होगा?’

खोखियावन त्योरियां चढ़ाकर बोला, ‘झल्लन भाई, हम किसानों के साथ थे, किसानों के साथ हैं, किसानों के साथ रहेंगे, कभी पीछे नहीं हटेंगे। रही हिंसा की बात तो किसान हिंसा नहीं करता है, उस पर हिंसा का असत्य आरोप लगता है, फिर भी हिंसा होती है तो हम इसे सीधे-सीधे बीजेपी का षड्यंत्र बताएंगे और हिंसा, अराजकता तथा उत्पात का जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ सरकार को ठहराएंगे।’ गुर्रावन ने अपनी बांहें चढ़ाई, भुजाएं फड़काई और वह गुर्राकर बोला, ‘सुनिए झल्लन जी सुनिए, ये क्या कह रहे हैं, कैसी दोगली बात कर रहे हैं। ये पहले झूठ फैलाएंगे, किसानों को भड़काएंगे, हिंसा का षड्यंत्र खुद रचाएंगे, दोष हम पर लगाएंगे ताकि हमारी बहुमतिया सरकार गिर जाये और इनकी राष्ट्र विरोधी मंशा पूरी हो जाये। पर हम ऐसा होने नहीं देंगे, इनकी मक्कारी चलने नहीं देंगे।’ खोखियावन खौखियाया, ‘मक्कार किसे कह रहा है बे, मक्कार तू तेरा बाप..।’
झल्लन जोर से झल्लाया, ‘रुकिए, रुकिए, रुकिए! हमारे जिम्मेदार चैनल में ऐसी बात नहीं होंगी, भाषा की मर्यादा रखनी होंगी। तो अगला सवाल गुर्रावन जी आपसे-ठीक है आपने मोटेरा स्टेडियम का भव्य निर्माण करवाया, पर उसका नाम आपने प्रधानमंत्री के नाम पर क्यों रखवाया?’ गुर्रावन के बोलने से पहले ही खोखियावन फिर खौखियाया, ‘ठीक यही सवाल हम पूछ रहे हैं, इन्होंने सरदार पटेल का घोर अपमान किया है जिसे गुजराती नहीं सहेंगे और स्टेडियम का नाम अपने बबुआ के नाम पर रखवाकर रहेंगे।’ गुर्रावन गुर्राया, ‘अबे, पटेल साहब की हम से बड़ी मूर्ति बनवाकर दिखाओ तब उनके मान-अपमान की बात उठाओ। रही स्टेडियम की बात तो स्टेडियम क्या तुम्हारे बाप ने बनवाया है, हमने बनवाया है सो हमने इसे अपने प्रधानमंत्री के नाम करवाया है। खुद तो कुछ कर नहीं पाते हैं और जब हम करते हैं तो इन्हें चुनने लग जाते हैं।’ खोखियावन ने फिर बांहें चढ़ायीं तो झल्लन ने टोका, ‘देखिए, हमारे जिम्मेदार चैनल पर यह नहीं चलेगा, कोई एक-दूसरे को बीच में उंगली नहीं करेगा, जब एक बोलेगा तो दूसरा चुप रहेगा। तो अगला सवाल आपसे गुर्रावन जी-लोग बताते हैं कि इधर देश की हवा बहुत खराब हो रही है, लोगों की सेहत जवाब दे रही है?’ गुर्रावन ने हाथ नचाया, ‘आपने यह सवाल तब नहीं उठाया जब देश की हवा सत्तर साल तक खराब होती रही और लोगों की जिंदगी तबाह होती रही। अरे, जब से हम सत्ता में आये हैं तब से सत्तर साल की दुर्गध दूर कर शुद्ध हवा लाये हैं।’ खोखियावन फिर खौखियाया, ‘बेशर्मी की भी कोई हद होती है, सरासर झूठ बोल रहे हैं, हवा खुद ने बिगाड़ी है, आरोप हम पर थोप रहे हैं।’ झल्लन ने फिर टोका और खोखियावन से पूछा, ‘इधर सुनने में आया है कि सूरज की रोशनी कुछ कम हुई है और चांदनी भी कुछ फीकी हुई है।’ खोखियावन बोला, ‘एकदम सही आंकड़ा है आपके पास, जब से ये सत्ता में आये हैं तब से सूरज अपना ताप खो रहा है और चंद्रमा लगातार फीका हो रहा है।’ गुर्रावन गुर्राते हुए कुर्सी से उठ खड़ा हुआ, लगा कि अभी कुछ हुआ, पर वह दांत किटकिटाकर बोला, ‘तू और तेरी पार्टी सिर्फ झूठ बोलते हैं, सिर्फ भ्रम फैलाते हैं, कुकर्म खुद करते हैं और उंगली हम पर उठाते हैं। सत्तर साल से सूरज काला पड़ रहा था और चंद्रमा उजड़ रहा था। वो तो हमारे सत्ता में आने के बाद उनकी चमक वापस आ रही है तिस पर भी इनकी आंत मरोड़ खा रही है। और झल्लन भाई, अब हम जा रहे हैं, इस आदमी को कभी हमारे सामने मत बिठाना और इसे बुलाओ तो हमें मत बुलाना।’

विभांशु दिव्याल


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