सरोकार : महिला रोजगार : ओल्ड ब्वॉय नेटवर्क तोड़ना जरूरी

Last Updated 28 Feb 2021 02:07:56 AM IST

इस बार एक अच्छी खबर है। ब्रिटेन की एफटीएसई-100 कंपनियों में पिछले पांच सालों में महिला निदेशकों की संख्या में 50 फीसद बढ़ोतरी हुई है।


सरोकार : महिला रोजगार : ओल्ड ब्वॉय नेटवर्क तोड़ना जरूरी

एफटीएसआई यानी फाइनांशियल टाइम्स स्टॉक एक्सचेंज। यह लंदन स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध 100 कंपनियों का इंडेक्स है। इसके अलावा ब्रिटेन की टॉप 350 कंपनियों के बोर्डरूम्स में भी एक तिहाई से ज्यादा पदों पर महिलाएं हैं। भी ब्रिटेन के सरकार समर्थित रिव्यू में महिलाओं के लिहाज से अच्छे नतीजे सामने आए हैं।  
इस रिव्यू को 2016 में इस उद्देश्य से शुरू किया गया था कि यूके की कंपनियों में महिलाओं को बेहतर प्रतिनिधित्व मिले। रिव्यू ने 2020 के अंत तक एफटीएसई 100 और एफटीएसई 250 कंपनियों में बोर्ड के स्तर पर 33 फीसद के लक्ष्य को पूरा कर लिया है। रिव्यू के पिछले पांच सालों के दौरान इन कंपनियों के बोर्ड में महिलाओं की संख्या 682 से बढ़कर 1026 हो गई है। हालांकि रिव्यू में कहा गया है कि इस प्रगति को बरकरार रखने के लिए कंपनियों को अधिक से अधिक औरतों को नौकरियां देनी होंगी तभी धीरे-धीरे वे उच्च पदों पर पहुंचेंगी। महिलाएं सक्षम भी हैं, और अनुभवी भी।   

अब थोड़ा रुख भारत की तरफ भी कर लें। हमारे यहां तो औरतों का नौकरियां छोड़ देना भी मिसाल है। विश्व बैंक की 2017 की रिपोर्ट-प्रिकेरियस ड्रॉप- रीएसेसिंग पैटर्न्‍स ऑफ फीमेल लेबर फोर्स पार्टििसपेशन इन इंडिया में कहा गया है कि 2004 से 2012 के बीच एक करोड़ 96 लाख महिलाओं ने नौकरियां छोड़ीं या उन्हें नौकरियां छोड़नी पड़ीं। यह प्रवृत्ति हर किस्म के क्षेत्र में देखी गई-औपचारिक या अनौपचारिक, ग्रामीण और शहरी, निरक्षर और पोस्ट ग्रैजुएट। इसके अलावा एक प्रवृत्ति और है। र्वल्ड बैंक ने जनगणना 2011 और राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन के आंकड़ों के आधार पर एक रिपोर्ट में मालूम चला कि पहले तो हमारे देश में सेल्फ इंप्लॉयड और घरेलू कामगार औरतों को श्रम शक्ति माना ही नहीं जाता यानी घर पर रहकर छोटा-मोटा काम करने वाली औरतों-सिलाई बुनाई करने वाली, पापड़ अचार बनाने वाली, लंच का डिब्बा बनाकर बेचने वाली, सफाई-बर्तन करने वाली, कुक का काम करने वाली-को एनएसएसओ के आंकड़ों में श्रम शक्ति नहीं माना जाता। इसके अलावा सेकेंडरी से कम की पढ़ाई करने वाली औरतों की संख्या श्रम शक्ति में काफी अधिक है। एक और मजेदार तथ्य सामने आया है-जब परिवारों का जीवन स्तर अच्छा होता जाता है तो परिवार की औरतें बाहर जाकर काम करना बंद करने लगती हैं। घर पर रहकर काम करना उन्हें ज्यादा रास आता है। लेकिन हमारे आंकड़ों में ऐसी औरतों को शुमार ही नहीं किया जाता। कई बार इनकम टैक्स बचाने के लिए-कई बार उनके काम को टाइमपास मानकर। ज्यादा पढ़ी-लिखी औरतों के लिए श्रम बाजार में रोजगार हैं भी नहीं।
कॉरपोरेट सेक्टर में वरिष्ठ पदों पर औरतों की भागीदारी 18 फीसद है, सीएक्सओ स्तर पर 8 फीसद और बोर्ड स्तर पर सिर्फ 1 फीसद। अध्ययनों से पता चलता है कि उच्च पदों पर बैठे पुरु ष पुरु षों को पसंद करते हैं,  औरतों को नहीं। यहां तक कि औरतें भी। पुरु ष अधिकारी 91 फीसद पुरु षों को चुनते हैं, 9 फीसद औरतों को। जबकि महिला अधिकारी 65 फीसद पुरुषों को चुनती हैं, 35 फीसद औरतों को। मशहूर उद्यमी किरण मजूमदार शॉ इसे ओल्ड ब्वॉय नेटवर्क कहती हैं, जिसे तोड़ा जाना जरूरी है। तो, औरतों को रोजगार मिलना मुश्किल होता जाता है। अपनी मर्जी से वे घर पर बैठती नहीं-हां, उनके लिए ऐसी स्थितियां पैदा की जाती हैं कि उन्हें घर बैठना ज्यादा मुनासिब लगता है।

माशा


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