वैश्विकी : मानवाधिकार के नाम पर..

Last Updated 28 Feb 2021 02:15:11 AM IST

भारत के आंतरिक मामलों में अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं, मानवाधिकार संगठनों और नामी-गिरामी हस्तियों की आलोचनात्मक टिप्पणियों से विदेश मंत्रालय के सामने नई चुनौती उपस्थित हुई है।


वैश्विकी : मानवाधिकार के नाम पर..

अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं ही नहीं विदेशी सरकारें भी पूर्व में गाहे-बगाहे भारत के आंतरिक मामलों में प्रतिकूल टिप्पणियां करती रहीं हैं। अमेरिकी संसद और वहां के विदेश मंत्रालय की मानवाधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता संबंधी वाषिर्क रिपोर्टों में भारत की आलोचना होती रही हैं। भारत की ओर से इन्हें खारिज भी किया जाता रहा है। यह पूरा घटनाक्रम केवल खानापूर्ति के लिए होता रहा है तथा विदेश नीति पर इसका खास असर नहीं पड़ता, लेकिन पिछले कुछ महीनों में हालात बदले हैं और इस बात के संकेत हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, उसकी सरकार, देश की लोकतांत्रिक प्रणाली और न्यायपालिका के विरुद्ध संगठित दुष्प्रचार अभियान चलाया जा रहा है। अभी तक इस बात का साक्ष्य नहीं है कि क्या इस भारत विरोधी आलोचना में विदेशी सरकारों की शह है या नहीं।

नई दिल्ली के ईर्द-गिर्द चल रहे किसान आंदोलन और उसके पहले नागरिकता संशोधन कानून, अनुच्छेद 370 को लेकर अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा सहित पश्चिमी देशों में दुष्प्रचार अभियान चलाया गया। अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के हटने और जो बाइडेन प्रशासन आने के बाद भारत विरोधी अभियान में तेजी आई है। चुनाव जीतने के पहले जो बाइडेन और कमला हैरिस कश्मीर और मानवाधिकारों के संबंध में ऐसे बयान देते रहे थे जो भारत के पक्ष में नहीं थे। चुनाव जीतने के बाद अभी तक उनकी ओर से कोई प्रतिकूल टिप्पणी सामने नहीं आई है, लेकिन यह भी स्पष्ट है कि उनकी डेमोक्रेटिक पार्टी से जुड़े लोग और समर्थक प्रधानमंत्री मोदी के विरुद्ध बढ़-चढ़कर बयानबाजी करते रहे हैं। किसान आंदोलन के संबंध में टूलकिट दस्तावेज सामने आने के बाद दिल्ली पुलिस की ओर से यह कहा गया कि इस आंदोलन की आड़ में बहुत सी शक्तियां परदे के बाहर और परदे के पीछे से सक्रिय हैं। टूलकिट दस्तावेज में इस मंसूबे के बारे में लिखा गया कि ‘हमें भारत की चाय और योग की छवि बदलना है।’ स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने इसके लिए एफडीआई (फॉरेन डिस्ट्रक्टिव आइडियोलॉजी) पर निशाना साधा। यह गौर करने वाली बात है कि नरेन्द्र मोदी के पहले सन उन्नीस सौ सत्तर और अस्सी के दशक में इंदिरा गांधी को भी ऐसे ही अंतरराष्ट्रीय आलोचना का सामना करना पड़ा था। बांग्लादेश के मुक्ति संघर्ष और सिक्किम के भारत में विलय जैसे फैसलों के विरुद्ध पश्चिमी देशों की सरकारों और वहां की मीडिया ने इंदिरा गांधी को निशाना बनाया था। उस समय मोदी की तत्कालीन राजनीतिक पार्टी भारतीय जनसंघ इंदिरा गांधी के विरुद्ध इसी अंतरराष्ट्रीय आलोचना का हवाला देती थी। पर विडम्बना है कि आज नरेन्द्र मोदी निशाने पर हैं और कांग्रेस पार्टी विदेश में होने वाले आलोचना का हवाला दे रही है।
शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के चालीसवें सत्र में भारत की मानवाधिकार स्थिति को लेकर तीखी नोंक-झोंक हुई। परिषद के इस अधिवेशन की शुरुआत में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने आगाह किया था कि मानवाधिकारों के नाम पर किसी देश के आंतरिक मामलों और संप्रभुता पर हस्तक्षेप नहीं किया जाए। इसके बावजूद मानवाधिकार संबंधी संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त मिशेल बचलेट ने अधिवेशन में भारत को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की। किसान आंदोलन के बारे में सरकार के रवैये की आलोचना के साथ ही उन्होंने राजद्रोह के आरोप में पत्रकारों की गिरफ्तारी को लेकर सरकार की आलोचना की। कश्मीर के बारे में भी उन्होंने पश्चिमी देशों के रटे-रटाये आरोपों को दोहराया। भारतीय प्रतिनिधि ने मानवाधिकार उच्चायुक्त को मुंहतोड़ जवाब दिया। भारतीय प्रतिनिधि इंद्रमणि पाण्डेय ने कहा कि उच्चायुक्त का बयान न तो निष्पक्ष है और न ही तथ्यों पर आधारित है। इस तरह के बेबुनियाद आरोपों से इस अंतरराष्ट्रीय संस्था की साख पर धब्बा लगता है। उन्होंने कहा कि यह आश्चर्य की बात है कि संयुक्त राष्ट्र अधिकारी ने दिल्ली के लाल किले पर 26 जनवरी को हुए कांड पर एक शब्द नहीं बोला। भारतीय प्रतिनिधि ने जवाबी हमला करते हुए कहा कि इसके पहले भी मिशेल बचलेट आतंकवाद के खतरे के बारे में आंख मूंदकर बैठी रहीं।

डॉ. दिलीप चौबे


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment