मीडिया : सोशल मीडिया और आत्मनियमन

Last Updated 28 Feb 2021 02:17:54 AM IST

पहली बार सोशल मीडिया प्लेटफार्म यथा फेसबुक, व्हाट्सएप, ट्विटर, यूट्यूब, इंस्टाग्राम लिंक्डइन आदि तथा ओटीटी वेबसीरीज और भारत सरकार आमने-सामने हैं।


मीडिया : सोशल मीडिया और आत्मनियमन

सरकार चाहती है कि जो ‘पोस्टें’ या संदेश, देश की संप्रभुता अखंडता, एकता को चुनौती देने वाली हों, जो एक दूसरे के प्रति घृणा फैलाने वाली, हिंसा के लिए उकसाने वाली हों, अराजकता पैदा करने वाली हों यानी कि जो आपत्तिजनक हों उनको सोशल मीडिया को तुरंत हटा देना चाहिए।
सब जानते हैं कि भारत सोशल मीडिया का सबसे बड़ा उपभोक्ता बजार है। भारत में सोशल मीडिया  व ओटीटी का उपयेग करने वालों की संख्या करीब 140 करोड़ बताई जाती है। एक हिसाब से अपने यहां 54 करोड़ व्हाट्सएप का इस्तेमाल करने वाले हैं तो 44 करोड़ यूट्यूब का उपयोग करने वाले हैं, जबकि 41 करोड़ फेसबुक का उपयोग करने वाले हैं। ट्विटर का उपयेग करने वाले भी सात आठ करोड़ के लगभग हैं। इतनी जनसंख्या सभी तरह के संदेशों के लिए उपलब्ध और खुली नजर आती है। सोशल मीडिया के जरिए कोई भी ‘षड्यंत्री’  इस विराट जनता में से बहुत को खुराफाती बना सकता है जैसा कि 26 जनवरी को होता दिखा।  याद करें, जब 6 जनवरी को अमेरिका के कैपिटोल हिल पर सोशल मीडिया से आंदोलित किए सशस्त्र समूहों ने हमला किया तो उसमें ऐसे ही सोशल मीडिया प्लेटफार्मो की भूमिका नजर आई। ऐसे ही 26 जनवरी को लालकिले पर जो हिंसा हुई वह इसी तरह के सोशल मीडिया के माध्यम से संभव हुई। बाद में एक ‘टूलकिट’ का रहस्य खुला और पुलिस ने देशद्रोह के केस में कइयों को अंदर किया और कई जमानत पर आकर और हीरो बन गए।

इन उदाहरणों से सबक लेकर सरकार चाहती है कि नितांत स्वतंत्र सोशल मीडिया प्लेटफार्म, जो हमारे समाज को दिन-रात प्रभावित करते हैं, का कुछ नियमन किया जाए। सबसे अच्छा तो यही है कि वो अपना नियमन स्वयं करे। वो आपस में घृणा फैलाने वाली, विद्वेष, वैमनस्य, कोध्र और हिंसा उकसाने वाली, देश की एकता अखंडता को चुनौती देने वाली पोस्टों को हटाने का स्वयं ही इंतजाम करे। वो स्वयं इसके लिए एक  ‘शिकायत केंद्र’ बनाएं। क्या दिखाने योग्य है क्या नहीं, इसके लिए एक कमेटी बनाएं, कमेटी का अध्यक्ष किसी सीनियर न्यायाधीश को बनाएं जो समय-समय पर इन चीजों को मॉनिटर करें और निर्णय लें और जो खुराफात करने के लिए जिम्मेदार हो उनको पकड़ा जा सके।  ध्यान रहे न तकनीक तटस्थ होती है न तकनीकी संचलित मीडिया तटस्थ है। इनके मालिकों के भी न्यस्त स्वार्थ हो सकते हैं और हैं! इतना ही नहीं, इन दिनों ये सोशल मीडियों प्लेटफार्म इतने ताकतवर हैं वे चाहें तो किसी भी देश या सरकार को हिला सकते हैं। चूंकि समाज के बहुत से लेग इन प्लेटफार्मो को अपना समझते हैं इसलिए सरकारों के लिए उनको बहुत दिनों तक बैन करना भी संभव नहीं होता।
ये बात सोशल मीडिया मालिक जानते हैं कि वे जनता की जरूरत हैं। इसलिए अनिवार्य हैं और इसीलिए इनमें बहुत से ऐसे तत्व एक्टिव रहते हैं जो सरकारों व प्रशासनों को हिलाकर उनको ब्लैकमेल कर अपना उल्लू सीध करें, जरूरत होने पर अपने मन का नेता चुनवाएं, सरकारें बनवाएं। सोशल मीडिया के मालिक उपयोग करने वालों के डाटा को बेचकर  कमाई करते ही हैं। इन दिनों वे शायद दुनिया को अपने हिसाब से हांकना भी चाहते हैं। दुनिया की सरकारें सोशल मीडिया के इस ‘दुष्ट भूमिका’ से चिंतित भी हैं। सोशल मीडिया आपको सिर्फ ‘यूजर’ (उपयोगकर्ता) ही नहीं बनाता आपका ‘एब्यूज’ (दुरुपयोग) भी करता है। फेसबुक का उपयेग करने वालों में से बहुत कम को मालूम है कि उनके लिखे (कंटेट) का ‘कॉपीराइट’ उनका नहीं, फेसबुक मालिक है। व्हाट्सएप मालिक का है। वह आपके डाटा को क्लासीफाइड करके बेचकर अरबों डॉलर कमाता है। मार्क जुकरबर्ग  दुनिया का एक बड़ा धनकुबेर यों ही नहीं बन गया। जाहिर है कि सोशल मीडिया हमारे दिमाग पर राज्य करता है।
एक राज्य वह है, जिसे हम चुनते हैं। दूसरा वह साइबर राज्य है, जिसमें हम ‘रमते’ हैं। एक हमारा बनाया है दूसरा हमें बनाता है, जो हमारे दिमाग पर, हमारी जेब पर राज करता है। सारे देशों की सरकारें अपने नागरिकों  के इस नये ‘बेगानेपन’ के लिए चिंतित हैं कि हमारा ही नागरिक अब हमारा नहीं है। साइबरी जगत में खोए हुए आदमी को जमीन पर कैसे लाएं, यह आज की सबसे बड़ी चुनौती है। इसीलिए सरकार ने ‘आत्मनियमन का प्रस्ताव’ दिया है। यह दुनिया का पहला ऐसा प्रस्ताव है जो इस मीडिया को ‘आत्मनियंत्रण’ के लिए कहता है!

सुधीश पचौरी


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