पश्चिम एशिया : मोसाद का मिशन ईरान
जर्मनी के सेनानायक तथा मशहूर सैन्य रणनीतिकार वॉन क्लॉजविट्ज ने अपनी किताब ‘ऑन वॉर’ में लिखा है, ‘‘शत्रु को अपनी इच्छा पूर्ति हेतु बाध्य कर देना युद्ध का प्रमुख उद्देश्य है।
पश्चिम एशिया : मोसाद का मिशन ईरान |
इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए शक्ति एवं हिंसा एक साधन है तथा शत्रु को शस्त्र विहीन कर देना ही इस शक्ति एवं हिंसा का एकमात्र लक्ष्य होता है।’’ मध्य पूर्व की शक्ति को नियंत्रित और केंद्रित करने की ईरान की आर्थिक तथा सामरिक कोशिशों पर सख्ती से लगाम लगाने की अमेरिकी हसरतों को कामयाब बनाने में इस्राइल की खुफिया एजेंसी मोसाद अहम किरदार अदा कर रही है। दो साल पहले इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने ईरानी नागरिक मोहसिन फखरीजादेह को ईरान के परमाणु कार्यक्रम का प्रमुख वैज्ञानिक करार देते हुए कहा था कि ‘इस नाम को याद रखें।’ फखरीजादेह की हाल ही में ईरान की राजधानी तेहरान के पास अज्ञात बंदूकधारियों ने हत्या कर दी। ईरान में जहां फखरीजादेह की हत्या की गई है, वहां से परमाणु और मिलिट्री साइट्स पास ही हैं। फखरीजादेह बेहद कड़ी सुरक्षा घेरे में रहते थे, देश की मीडिया समेत कहीं भी उनका जिक्र नहीं था और उनकी तस्वीर भी सिर्फ एक बार तभी छपी थी जब उन्होंने एक बार ईरान के सुप्रीम लीडर से मुलाकात की थी। जाहिर है फखरीजादेह की हत्या बेहद गोपनीय मिशन के तहत सुनियोजित रणनीति से की गई और ऐसे सनसनीखेज काम करने के लिए मोसाद कुख्यात रही है।
इसके पहले इस साल की शुरु आत में बगदाद में एक अमेरिकी ड्रोन हमले में ईरान के टॉप मिलिटरी कमांडर जनरल कासिम सुलेमानी मारे गए थे। सुलेमानी ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड की कुद्स फोर्स के प्रमुख थे, जो दुनिया भर में ईरान विरोधी ताकतों को निशाना बनाती रही है। ईरान की रिवॉल्यूशनरी गार्डस की स्पेशल आर्मी कुद्स फोर्स विदेशों में संवेदनशील मिशन को अंजाम देती थी और इसे दुनिया में शिया प्रभाव कायम करने का बड़ा माध्यम माना जाता था। इसके लड़ाके सीरिया और ईरान में कट्टरपंथी सुन्नी एकाधिकार को चुनौती दे रहे हैं, यमन के हुती विद्रोही शिया प्रभाव को उस इलाके में काबिज रखे हुए है, वहीं लेबनान का हिजबुल्ला आतंकी संगठन इन्हीं के द्वारा नियंत्रित माना जाता है जो इस्राइल को सीमा पर परेशान करता रहा है।
दरअसल, पश्चिम एशिया से अरब राष्ट्रवाद और इस्लामिक दुनिया के नेतृत्व का द्वार खुलता है। महाशक्तियों के नियंत्रण और संतुलन की रणनीति में ईरान की भूमिका आक्रामक होकर चुनौतीपूर्ण रही है, इसीलिए शिया बाहुल्य यह देश अमेरिका और सऊदी अरब के निशाने पर रहा है। वहीं, ईरान को अस्थिर करने में महत्वपूर्ण भूमिका इस्राइल निभा रहा है। अमेरिका और सऊदी अरब ईरान पर आर्थिक और सामरिक दबाव की कूटनीति पर काम कर रहे हैं, वहीं इस्राइल की खुफिया एजेंसी मोसाद ईरान के प्रमुख सामरिक ठिकानों और अति महत्वपूर्ण लोगों को निशाना बना कर ईरान पर मनौवैज्ञानिक दबाव बनाने की रणनीति पर काम कर रही है।
2015 में ओबामा प्रशासन द्वारा ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर हुए समझौते की इस्राइल और सऊदी अरब ने कड़ी आलोचना की थी। इसके बाद 2018 में इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने यह दावा कर सनसनी फैला दी कि उनके पास तेहरान के एक गुप्त स्टोरेज से इस्राइली खुफिया विभाग को मिली डेटा की ‘कॉपियां’ हैं। नेतन्याहू ने इस डेटा को ईरान के गुप्त परमाणु हथियार कार्यक्रम ‘प्रोजेक्ट अमाद’ से संबंधित बताते हुए कहा कि ईरान परमाणु समझौते को ठेंगा दिखाकर गुपचुप तरीके से परमाणु हथियारों का जखीरा बनाने की ओर अग्रसर है। ट्रंप प्रशासन ने इसके बाद ईरान से समझौता तोड़ दिया और उस पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए। कासिम सुलेमानी के अमेरिकी हवाई हमले में मारे जाने के बाद ईरान ने परमाणु समझौते से अपने को पूरी तरह अलग कर लिया था। ईरान ने इसके जवाब में अपने परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ाने की धमकी दी थी। इस साल जुलाई में ईरान के भूमिगत परमाणु स्थल नतांज पर रहस्यमय तरीके से आग लग गई थी, जिससे एक नया सेंट्रीफ्यूज असेंबली सेंटर तबाह हो गया था। इसके साथ ही ईरान के भूमिगत केमिकल वेपन रिसर्च सेंटर और एक सैन्य उत्पादन केंद्र में विस्फोट की घटनाएं भी हुई। अंतरराष्ट्रीय हलकों में इसे मोसाद का काम बताया गया, वहीं मोसाद ने ईरान पर यह आरोप लगाकर दबाव बनाने की कोशिश की कि इस्राइली दूतावासों पर ईरानी हमले की साजिश को विफल कर दिया गया है। इस्राइल की खुफिया एजेंसी मोसाद ने न केवल अमेरिका के ईरान से हुए समझौते को तोड़ने में भूमिका निभाई है, बल्कि सऊदी अरब के साथ इस्राइल के मजबूत संबंध स्थापित करके अरब-इस्राइल संघर्ष को शिया-सुन्नी संघर्ष में बदलने में भी बड़ी भूमिका निभाई है।
बहरहाल, अमेरिका, सऊदी अरब और इस्राइल की आक्रामक रणनीति से ईरान में अस्थिरता की आशंका बढ़ गई है। इससे भारत को नई सामरिक और आर्थिक चुनौती से जूझना पड़ सकता है। ईरान, यूरेशिया और हिन्द महासागर के मध्य एक प्राकृतिक प्रवेश द्वार है, जिससें भारत रूस और यूरोप के बाजारों तक आसानी से पहुंच सकता है। भारत, ईरान और रूस के मध्य इस सम्बन्ध में एक समझौता हुआ था, जिसके द्वारा ईरान होकर मध्य एशियाई राज्यों तक निर्यात करने के लिए एक उत्तर दक्षिण कॉरिडोर का निर्माण किया जा सके। पाकिस्तान पर दबाव बढ़ाने के लिए भी ईरान भारत का मददगार है। पाकिस्तान की भारत के साथ सबसे लंबी सीमा रेखा है, वहीं इसके बाद अफगानिस्तान और ईरान है। ये तीनों राष्ट्र पाकिस्तान की सामरिक घेराबंदी कर भारत के पारंपरिक शत्रु पर दबाव डाल सकते हैं। जाहिर है इस्राइल भारत का महत्वपूर्ण और विसनीय साथी है, वहीं सामरिक और आर्थिक रूप से ईरान का स्थिर और सुरक्षित रहना भी भारत के लिए जरूरी है। आने वाले समय में मध्य पूर्व को लेकर भारत को बेहद सतर्क रहने और नियंत्रण व संतुलन की नीति अपनाने की जरूरत होगी।
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