कोरोना संक्रमण : घातक हो सकती है बेफिक्री

Last Updated 02 Dec 2020 12:53:09 AM IST

भले ही जनसंख्या के लिहाज से हमारे भारत में कोरोना महामारी की रिकवरी रेट और इसकी गिरफ्त में आकर दम तोड़ने वालों की संख्या अन्य देशों से बेहतर हो; बावजूद इसके इस खतरे को जरा भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि जैसे-जैसे अनलॉक की प्रक्रिया आगे बढ़ रही है, देश में कोरोना मरीजों की संख्या भी बढ़ती जा रही है।


कोरोना संक्रमण : घातक हो सकती है बेफिक्री

नए-नए इलाके तेजी से संक्रमण की जद में आते जा  रहे हैं। कोरोना वैक्सीन के जल्द उपलब्ध हो जाने की बात व्यापक स्तर पर प्रचारित-प्रसारित होने से इस दिशा में एहतियात बरतने के प्रति देशवासी लापरवाह होते जा रहे हैं। लेकिन यह स्थिति वाकई बेहद चिंताजनक है। भारत दुनिया में कोरोना वायरस का नया हॉटस्पॉट बनता जा रहा है। दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश व केरल जैसे तमाम प्रदेशों में  स्थिति गंभीर है। नीति आयोग के सदस्य और कोरोना एर्क्‍सपट्स पैनल के प्रमुख डॉ वीके पॉल का यह कथन काबिलेगौर है कि सर्दियों में संक्रमण की दूसरी लहर आने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। सर्दियों में सांस लेने में परेशानी पैदा करने वाला यह वायरस और खतरनाक हो सकता है। हमें यह भी याद रखना होगा कि सर्दी के ही कारण यूरोपीय देशों में यह संक्रमण एक नए पीक की तरफ बढ़ रहा है।

एम्स (दिल्ली) के निदेशक डॉक्टर गुलेरिया ने हाल ही में देशवासियों को आगाह करते हुए कहा था कि अगर कोरोना से बचाव के पूरे प्रोटोकॉल का पालन किया गया, तो देश फरवरी 2021 के अंत तक महामारी के प्रसार को रोकने में काफी हद तक सफल हो सकता है। मगर बड़ी तादात में देशवासी इस महामारी के प्रति बेफिक्र  दिख रहे हैं। लगता है मानो लोगों ने ‘अनलॉक’ शब्द का मतलब ही गलत समझ लिया, जबकि अनलॉक के दौरान सावधानी की जरूरत पहले से कहीं ज्यादा है। अब  हर जगह  पहले की तरह भीड़-भाड़ नजर आने लगी है। कोरोना के नियमों का खुलेआम उल्लंघन दिख रहा है। कोरोना को लेकर कोई बंदिश लोग मानने को तैयार नहीं हैं। लोगों में भारी जुर्माने का भी कोई खौफ नहीं है। लोग मास्क पहनने में कोताही बरतने लगे हैं। ये हालत तब है, जब डॉक्टरों ने मास्क को संक्रमण से बचाव का सबसे कारगर तरीका बताया है। फिजिकल डिस्टेंसिग व हाथ धोने के प्रति भी ज्यादातर लोग अब सचेत नजर नहीं आते। सड़कों पर थूकना, पेशाब करना, कूड़ा फेंकना जारी है। तमाम लोग यह कहते हैं कि सरकार ने कुछ सोच कर ही तो ‘अनलॉक’  किया होगा, तो ये बंदिशें क्यों? कई लोग तो इन हिदायतों का यह कहकर पालन करने से मना कर रहे हैं कि ये मास्क और सैनेटाइजर सिर्फ  कमाई के चोंचले हैं। आम धारणा बन रही है कि अगर संक्रमण होना है तो होकर रहेगा और नहीं होना होगा तो नहीं होगा। दूसरा तर्क यह चल पड़ा है कि हमें कुछ नहीं होगा, क्योंकि हमारा शरीर मजबूत है। इस बेपरवाही भरे व्यवहार को बदलना ही होगा। समझना होगा कि देशवासियों का यह गैर-जिम्मेदाराना रवैया वाकई आत्मघाती है। कोरोना से बचाव के निर्धारित दिशा निर्देशों का पालन न करना एक तरह से ढिठाई व स्वार्थी मानसिकता है।  
बताते चलें कोरोना संक्रमण के प्रति समाज में जन जागरूकता फैलाने ले लिए बीते दिनों काशी के एक प्राइवेट स्कूल का एक प्रयोग खूब लोकप्रिय हुआ। स्कूल की शिक्षिका जयश्री गुप्ता के मुताबिक वाराणसी में कोरोना वायरस के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए हमने इस कोरोना वायरस से बचाव को लेकर एक सूची बनाई और उसे  ‘करो ना‘ का नाम दिया।  इस सूची में बच्चों को हाथ न मिलाने, एक-दूसरे से गले न लगने, अपना टिफिन और पानी साझा न करने के लिए कहा गया। साथ ही यह भी हिदायत दी गई कि एक-दूसरे का तौलिया और रु माल भी इस्तेमाल न करें। बच्चों को सलाह दी गई कि वे समय-समय पर अपना हाथ धुलते रहें। अगर बच्चे अस्वस्थ महसूस करें, तो तत्काल अपने शिक्षकों या अभिभावकों को इसकी सूचना दें। बच्चों को इस सूची का नाम काफी मनोरंजक लगा और उन्होंने सूची में दी गई सावधानियों व  जानकारियों पर न सिर्फ  खुद अमल किया, वरन इन्हें अपने अभिभावकों से भी साझा कर उन्हें भी जागरूक किया। वे कहती हैं कि स्थानीय लोगों को इस वायरस के प्रकोप के बारे में तथा इनसे बचाव के तरीके पता ही होने चाहिए। यदि काशी जैसे ये प्रयोग देश के सभी विद्यालयों में होने लगें, तो इस दिशा में व्यापक जन जागरूकता फैलाई जा सकती है।

पूनम नेगी


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